भगत सिंह के जीवन और कृतित्व पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर चमन लाल ने बहुत काम किया है। भगत सिंह पर यह सीरीज़ प्रस्तुत करते समय, चमन लाल का एक लेख प्रतिष्ठित अंग्रेज़ी पत्रिका मेनस्ट्रीम के 2008 के अंक में मिला। उनके अनुसार भगत सिंह से सम्बंधित कुल 107 दस्तावेज, उनके जेल डायरी या जेल नोटबुक के अतिरिक्त और डॉन ब्रीम की पुस्तक माय फाइट विथ आयरिश फ्रीडम, My Fight With Irish Freedom, का हिंदी अनुवाद है। इन 107 दस्तावेजों में से 45 दस्तावेज़, पत्राचार के रूप में हैं। जिनमे पत्र, तार, और विभिन्न परचे शामिल हैं।भगत सिंह के पत्राचार का क्रम 1918 से प्रारम्भ होता है जब वे मात्र 11 साल के थे। उनके पत्रों को दो भागों में बांट कर अध्ययन किया गया है। एक भाग में निजी पत्र हैं और दूसरे भाग में राजनीतिक पत्र हैं । दूसरे भाग के राजनीतिक पत्र पिता, मित्रों, अखबारों के संपादकों और अन्य लोगों को लिखे गए हैं। उनके कुल 38 पत्रों ( पर्चों, तार आदि को छोड़ कर ) में से 15 पत्र बिल्कुल निजी हैं और 23 पत्र राजनीतिक दृष्टिकोण से लिखे गए हैं। 1918 से 1921 यानी जब भगत सिंह की उम्र 11 से 14 वर्ष तक की थी, तो उनके लिखे 5 पत्र उपलब्ध हैं शेष मिल नहीं पाये हैं । अपने बंदी जीवन 1930 से 1931 के बीच उन्होंने कुल 22 पत्र लिखे थे। ये 22 पत्र भगत सिंह के वैचारिक परिपक्वता को प्रदर्शित करते हैं। उन्ही में यह पत्र उन्होंने अपने भाई को लिखा है।
अब आप यह पत्र पढिये ।
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भगत सिंह का पत्र, कुलबीर सिंह के नाम ।
O
लाहौर सेण्ट्रल जेल,
3 मार्च, 1931
प्रिय कुलबीर सिंह,
तुमने मेरे लिए बहुत कुछ किया। मुलाक़ात के वक़्त ख़त के जवाब में कुछ लिख देने के लिए कहा। कुछ अल्फाज़ (शब्द) लिख दूँ, बस- देखो, मैंने किसी के लिए कुछ न किया, तुम्हारे लिए भी कुछ नहीं। आजकल बिलकुल मुसीबत में छोड़कर जा रहा हूँ। तुम्हारी जिन्दगी का क्या होगा? गुजारा कैसे करोगे? यही सब सोचकर काँप जाता हूँ, मगर भाई हौसला रखना, मुसीबत में भी कभी मत घबराना। इसके सिवा और क्या कह सकता हूँ। अमेरिका जा सकते तो बहुत अच्छा होता, मगर अब तो यह भी नामुमकिन मालूम होता है। आहिस्ता-आहिस्ता मेहनत से पढ़ते जाना। अगर कोई काम सीख सको तो बेहतर होगा, मगर सब कुछ पिता जी की सलाह से करना। जहाँ तक हो सके, मुहब्बत से सब लोग गुजारा करना। इसके सिवाय क्या कहूँ?
जानता हूँ कि आज तुम्हारे दिल के अन्दर गम का सुमद्र ठाठें मार रहा है। भाई तुम्हारी बात सोचकर मेरी आँखों में आँसू आ रहे हैं, मगर क्या किया जाए, हौसला करना। मेरे अजीज, मेरे बहुत-बहुत प्यारे भाई, जिन्दगी बड़ी सख्त है और दुनिया बड़ी बे-मुरव्वत। सब लोग बड़े बेरहम हैं। सिर्फ मुहब्बत और हौसले से ही गुजारा हो सकेगा। कुलतार की तालीम की फिक्र भी तुम ही करना। बड़ी शर्म आती है और अफ़सोस के सिवाय मैं कर ही क्या सकता हूँ। साथ वाला ख़त हिन्दी में लिखा हुआ है। ख़त ‘के’ की बहन को दे देना। अच्छा नमस्कार, अजीज भाई अलविदा... रुख़सत।
तुम्हारा खैर-अंदेश
भगत सिंह
O
Date Written: March 3, 1931
Author: Bhagat Singh
Title: Last Letter to Kulbeer (Kulbeer ke nam antim patra)
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© विजय शंकर सिंह
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