क्या कोई एक फौजी इतना तगड़ा योद्धा हो सकता है की वो अपने देश की आर्मी से हज़ारों गुना ताकतवर आर्मी को अकेले रोक सकता हो ?
इसका जवाब है हाँ !
एक हुआ है, फ़िनलैंड का फौजी सिमो हयहा ! हयहा दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा स्नाइपर हुआ है। उस से ज्यादा दुश्मन फौजी अकेले किसी ने नहीं मारे। उसके अलावा कोई फौजी ऐसा नहीं है जिसने पूरा साल अपने से हज़ारों गुना ताकतवर फौज को अकेले रोके रखा हो !
हयहा एक बर्फीले इलाके में 1905 में पैदा हुआ बच्चा था, जोकि टीनएज आते आते एक बेहतरीन शिकारी बन चुका था। उसके गाँव में ठण्ड इतनी ज्यादा पड़ती थी की उसमे आप और मैं सर्वाइव भी नहीं कर सकते हैं। एक छोटा सा घाव आपकी ज़िन्दगी ले सकता है वहाँ !
सिमो हयहा एक छोटी बोल्ट एक्शन राइफल से शिकार किया करता था, जो कि उस समय तक ऑउटडेटेड भी हो चुका था और 1928 में उसकी मैन्युफैक्चरिंग भी बंद हो गयी थी !
फ़िनलैंड एक छोटा सा देश है, इसलिए बाकियों की तरह सिमो हयहा को भी जरूरी मिलिट्री ट्रेनिंग लेनी पड़ी, जोकि उसके जैसे योद्धा को फिनेस्स देने में सहायक हुई। वह रेगुलरली आर्मी में भी स्कीइंग और शूटिंग के कम्पटीशन जीतता रहता था। उसके निशाने इतने तगड़े थे की वो एक मिनट में अलग अलग जगह खड़े 16 लोगों को जहां चाहता वहाँ गोली मार के ढेर कर सकता था ! वह एक तगड़ा रेसर भी था और उसने आर्मी में एथलेटिक्स में भी मैडल लिए हुए थे।
फिर आया नवम्बर 30 1939, जब दुनिया की सबसे शक्तिशाली ताकत सोवियत यूनियन ने फ़िनलैंड पर हमला बोल दिया ! सिमो हयहा एक गाँव का लड़का था जिसे वर्ल्ड पॉलिटिक्स वगैरह के बारे में कुछ ख़ास नहीं पता था ना उसे इंटरेस्ट था। ना उसे स्टालिन के बारे में कुछ ख़ास नॉलेज थी, और ना ही सोवियत यूनियन की ताकत का कुछ ख़ास अंदाज़ा था। उसे बस एक आउटडेटेड बन्दूक चलानी आती थी जिसमे निशाना लगाने के लिए ऊपर लेंस भी नहीं हुआ करता था, लेकिन उससे वह बहुत बहुत ही ज्यादा अच्छे तरीके से चला सकता था।
उसने कोला रीजन में 34 वीं इन्फैंट्री रेजिमेंट ज्वाइन कर ली, जहां पर, सोवियत हमला करने वाले थे ! सोवियत की आठवीं आर्मी पूरे इलाके को रौंदते हुए आ रही थी। उनके पास एक से बेहतर एक फौजी था, स्नाइपर थे, फ़िनलैंड की सेना से कई गुना बड़ी आर्मी थी। लेकिन उनके पास सिमो हयहा नहीं था।
पूरे इलाके में बर्फ थी और जंगल था,
और उस साल बर्फ भी तगड़ी गिरी हुई थी, लगभग 2 मीटर गहरी, और टेम्परेचर माइनस 30 डिग्री पहुंचा हुआ था। सिमो हयहा ने मांगकर अपनी फेवरेट बन्दूक Finnish Mosin Nagant M28 ली। उसके अफसरों ने कहा की ये बन्दूक कचरा है, और 11 साल से इसकी प्रोडक्शन तक बंद है, यह छोटी भी है और भारी भी, आजकल तो मॉडर्न स्नाइपर राइफल्स का ज़माना है, बिना लेंस के दूर का शिकार तुम्हे दिखेगा ही नहीं निशाना लगाने के लिए।
लेकिन सिमो हयहा अड़ा रहा की उसे तो यही बन्दूक चाहिए, और अंत में उसे वो बन्दूक दे दी गयी !
सिमो हयहा एक नेचुरल शिकारी था, उसको पता था की इतनी ठण्ड में हाथ काँप सकते हैं इसलिए बन्दूक का वजन स्नाइपर के हक़ में काम करेगा ! यह ऐसा ही था जैसे क्रिकेट में भारी बैट, जिसे चलाना आता है उसके लिए वरदान है, जिसे नहीं आता वो जल्द गेंद को निक करके चलता बनेगा !
सोवियत के पास टैंक थे, आदमी बहुत ज्यादा थे, आर्टिलरी थी, जबकि फ़िनलैंड के पास कुछ नहीं था, या अभी तक उन्हें पता नहीं चला था की उनके पास क्या है !
सोवियत आर्मी आगे बढे जा रही थी,
सिमो हयहा ने अपने आपको भारी सफ़ेद स्नो सूट में बाँध लिया था, और स्नाइपर मास्क पहन लिया था,
और बर्फ में छुपकर लेट गया था एक जगह पर। उसने अपने अफसरों को बोल दिया था की वो अकेले काम करता है, इसलिए उसके इलाके में किसी और को अभी तैनात ना करे, क्यूंकि हो सकता है वो भी उसकी गोली का शिकार हो जाएगा।
अफसरों को लगा की यह पागल है ससुरा,सोवियत इसको पहले ही दिन मार गिराएंगे, लेकिन उसकी बात मान ली गयी, क्यूंकि एक तो वो लोकल था, दूसरा उसके निशानों पर लोगों को विश्वास था वो मिलिट्री में कई मैडल जीत चुका था।
सिमो हयहा के अनुसार एक स्नाइपर के लिए सबसे जरूरी चीज़ है पेशेंस,
जोकि अच्छे निशाने से भी ज्यादा जरूरी है। एक स्नाइपर को यह मान के चलना चाहिए कि, दिन रात कोई गोली उसका इंतज़ार कर रही है, किसी पेड़ पर, किसी गड्ढ़े में, किसी पत्थर के पीछे,
इसलिए उसे अपनी इंस्टिंक्ट और पेशेंस पर हमेशा कायम रहना चाहिए।
सिमो हयहा अपने साथ एक दिन का खाना रखता था, और 50 से 60 राउंड गोलियां, ,लक्यूंकि वो अपनी मोबिलिटी के साथ कोई कोम्प्रोमाईज़ नहीं करना चाहता था और ना ही दुश्मन के लिए कोई सुराग छोड़ना चाहता था, कि यहां सिमो हयहा आया था ! जब वह किशोरावस्था में शिकार किया करता था तो उसने अपने स्पॉट्स पहचान कर तय कर रखे थे, जहां पर वो बर्फ का किला बनाता था, ताकि जानवर को अंदाजा ही ना हो सके कि, यहां कोई बैठा भी हुआ है।
वह एक कपडे में बर्फ लपेट कर अपने मुंह में डाल लेता था, ताकि उसकी सांस किसी को दिखाई ना दे। बर्फीले इलाकों में सांस दूर से ही नजर आ जाती है। वह जहां बन्दूक रखता था, वहाँ बर्फ को अच्छे से सख्त कर लेता था, ताकि एक तो बन्दूक न हिले, और दूसरा बर्फ भी ना हिल पाए, क्यूंकि हिलती हुई बर्फ दीखते ही दूसरी तरफ का जानवर सतर्क हो जाएगा। इस मामले में दूसरी तरफ के स्नाइपर सतर्क हो जाते उसकी सांस और बर्फ के हिलने से।
सिमो हयहा 150 मीटर तक की दूरी तक 1 मिनट में 16 लोगों को ढेर कर सकता था, और हुआ भी वही। सोवियत आये और सिमो हयहा ने एक पूरी यूनिट मार गिराई ! सोवियत फौजी इस से पहले की बन्दूक से निशाना भी कर पाते उनका मुंह आसमान देख रहा होता था।
खबर सोवियत आर्मी तक भी पहुंची और फ़िनलैंड आर्मी तक भी। फ़िनलैंड आर्मी के अफसरों को यकीन नहीं हुआ की सिमो हयहा ने पूरी यूनिट उड़ा दी है सोवियत की। लेकिन सोवियत फ़ौज़ियों ने लाशें देख ली थी और उन्हें पता चल गया था की आगे यमराज उनका इंतज़ार कर रहा है।
इस प्रकार ऐसी ही रणनीति से, सिमो हयहा ने कई सोवियत पोजीशन की पहचान की, और सभी ठिकानों को लाशों से भर दिया। कई लाशें तो बर्फ में खड़ी ही रहीं। इतनी ठंड थी कि, कुछ तो, हाथ पाँव में घाव की वजह से ही मर गए। लेकिन ऐसे बहुत कम थे। ज्यादातर सिमो हयहा की गोली से ही मरे। सैकड़ों सोवियत फौजी बर्फ में मरे पड़े थे, क्रिसमस से पहले वाले दिन तो उसने एक ही बार में 25 सोवियत फौजी मार गिराए थे।
सिमो हयहा ने बाद में बताया की स्नाइपर राइफल के लेंस रिफ्लेक्ट करते हैं और उसी से वे निशाने पर आते ही मारे गए। इसलिए उसकी आउटडेटेड राइफल के आगे, मॉडर्न स्नाइपर राइफल बेअसर थी। दूसरा मॉडर्न स्नाइपर राइफल में लेंस बन्दूक के ऊपर होता है जिस से इंसान का सर राइफल के ऊपर लाना पड़ता है, जबकि पुराने में लेंस था ही नहीं तो उसका सर बन्दूक के नीचे रहता था ! और क्यूंकि ज्यादातर लोगों की उस पुरानी राइफल से प्रैक्टिस नहीं थी, इसलिए उसके खिलाफ उस समय कोई कम्पटीशन था ही नहीं। ना फिनलेंड की आर्मी में ना ही सोवियत आर्मी में ! वह उसका इलाका था और वह अपने इलाके का शेर था।
सोवियतस को खबर मिली और ऊपर तक खबर पहुंची तो देश के सबसे बेहतरीन स्नाइपर भेजे गए उस पोजीशन पर। सिमो हयहा ने वो सारे ढेर कर दिए।
अपनी फेवरेट बन्दूक के अलावा वो हैंड ग्रेनेड भी रखता था और एक सब मशीनगन भी उसके पास थी, जो पहले हिट के बाद उसे वह इस्तेमाल करता था।
इसके अलावा वह एक चाक़ू भी अपने पास शिकार के लिये रखता था। शेष फ़िनलैंड की फौज बहुत पीछे थी, जबकि सिमो हयहा सोवियत की फौजी पोसिशन्स पर अकेले ही मौत बरसाते घूम रहा था।
सोवियत सेना ने धीरे धीरे उस इलाके में अपनी सेना कई गुना बढ़ा दी। सोवियत सेना की दुनिया मे तगड़ी बेइज़्ज़ती होती जा रही थी। किसी को समझ में नहीं आ रहा था की फ़िनलैंड जैसा मच्छर देश सोवियत आर्मी को कैसे रोक ले रहा है ।
जैसे ही सोवियत आर्मी को शक होता था की यहां पर सिमो हयहा है वो उस डायरेक्शन में ही हैवी बॉम्बार्डमेंट कर दिया करते थे। लेकिन सिमो हयहा नहीं पकड़ा गया तो नहीं ही पकड़ा गया। वह सोवियत फौजियों को एक एक्सपर्ट शिकारी की तरह मारता रहा।
सोवियत सेना ने अब अपने सबसे अच्छे कमांडो को सिमो हयहा का शिकार करने के लिए भेजा, जिसे बर्फ में लड़ने का बहुत अनुभव था। सिमो हयहा के अनुसार वह कमांडो सच में बहुत ही टैलेंटेड था। उसने एक बार भी अपनी पोजीशन नहीं दी, लेकिन सिमो हयहा को पता था कि कोई आसपास है। इतना सन्नाटा किसी शिकारी के कारण ही हो सकता था। दोनों ही पूरा दिन एक दुसरे के इंतज़ार में पोजीशन लिए बर्फ में पड़े रहे।
उस स्नाइपर ने फ़िनलैंड के कई फौजी भी मार दिए थे। पहले वे अलग अलग जगह पोजीशन लेते लेते, लेकिन जैसे ही शाम हुई तो उस कमांडो ने एक गलती कर दी। उसने अपनी बन्दूक वापस मूव करने के लिए थोड़ी सी हिलाई और उसके लेंस से रिफ्लेक्शन आ गयी। बस वहीँ सिमो हयहा ने उसे ढेर कर दिया। सिमो हयहा ने बताया कि, उसने उस कमांडो के सम्मान में उसका चाकू उसके शरीर से ले लिया था।
सोवियत फौज ने फिर बड़ी बड़ी आयरन शील्ड के साथ इलाके में आगे बढ़ने की स्ट्रेटेजी बनाई, लेकिन सिमो हयहा उन्हें छोटे छोटे गैप से मार देता था। अधिकतर, उस बटालियन के सैनिकों के घुटने में ही गोली मिली थी।
इन सब कहानियों ने सिमो हयहा को फिनलेंड और सोवियत दोनों जगह बहुत महशूर कर दिया था। फिनलेंड ने उन्हें ढेरों अवार्ड दिए। जबकि सोवियत सेना ने उसे "WhiteDeath" यानी सफ़ेद मौत का नाम दिया। सोवियत खेमे में उसे एक भूत माना जा रहा था जो हर जगह था और तरफ था।
80 दिनों के बाद फिनलेंड ने सिमो हयहा को नेशनल हीरो डिक्लेअर कर दिया।
और उसे कोला क्रॉस दिया जो हमारे परमवीर चक्र की तरह होता है। उसके लिए उस स्पेशल पुरानी गन की प्रोडक्शन शुरू कर दी गयी जिसका आउटडेटेड कह कर मज़ाक़ बनाया गया था। उसे एक कस्टम मेड गन जो विशेषकर उसी के लिये बनाई गयी थी, उपहार में दी गयी।
यह युद्ध, फ़िनलैंड लगभग जीत चुका था , लेकिन तभी सोवियत के भाग्य से बर्फ कम होने लगी। एक दिन सोवियत आर्मी के हैवी फायर में एक गोली सिमो के जबड़े पर लगी और वह बेहोश हो गया। लेकिन तब भी सिमो की पोजीशन तब भी सोवियत सेना को नहीं मिल सकी थी। फिनलैंड के सैनिकों ने चुपके से सिमो को हॉस्पिटल पहुंचाया लेकिन सिमो कॉमा में जा चुके थे। जब उन्हें वापस होश आया तो फ़िनलैंड और सोवियत में युद्ध विराम हो चुका था।
सिमो हयहा ने अपने देश को गुलामी से बचा लिया था।
सोवियत, फिनलैंड का केवल 25,000 वर्ग मील का इलाका कब्ज़ा कर पाए थे। देश बच गया था लेकिन सिमो का घर अब सोवियत यूनियन का हिस्सा था। पूरे युद्ध मे लाखो सैनिकों को गंवाने के बाद सोवियत यूनियन को कुछ हज़ार वर्गमील ही ज़मीन मिली थी। यह सोवियत संघ की तब तक की सबसे बुरी हार मानी जाती है। और वह भी केवल एक जुझारू और बहादुर सिमो के हाथों।
किसी ने कल्पना भी नहीं की थी सकता कि फ़िनलैंड सोवियत सेना को रोक भी सकता था।
सिमो हयहा 2002 तक ज़िंदा रहे, और सोवियत संघ तथा रूस में भी एक बहादुर सैनिक की तरह सम्मान पाते रहे। उन्हें आज तक का सर्वश्रेष्ठ स्नाइपर योद्धा माना जाता है, और शायद यह सही भी है।
किशन रूमी
( Kishan Rumi )