Wednesday, 18 April 2018

Ghalib - Isharat e qatraa hai / इशरत ए कतरा है - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह

ग़ालिब - 59.
इशरत ए क़तरा है
दरिया में फना हो जाना !!

Isharat e qatraa hai,
Dariyaa mein fanaa ho jaanaa !!
- Ghalib.

इशरत - आनन्द

बूंद का सागर में विलीन हो जाना ही आंनद की प्राप्ति है।

ग़ालिब का यह शेर सनातन दर्शन की अभिव्यक्ति है। बूंद यहां जीव और दरिया सागर या सरिता जो भी समझ लें ब्रह्म का प्रतीक है। जीव ब्रह्म में विलीन होने के लिये सदैव इच्छुक रहता है। जीव का लक्ष्य ही ब्रह्म में विलीन हो जाना है। लक्ष्य के प्राप्त हो जाने से परम आंनद क्या हो सकता है ?

जीव, ब्रह्म, माया आदि इन जटिल दार्शनिक सवालों का जबाब ढूंढते-ढूंढते वेदांत दर्शन के अनेक सम्रदाय बन गए है । अद्वैतवाद कहता है ,जीव और ब्रम्ह एक है । विशिष्टाद्वैत कहता है, एक ही ब्रम्ह में जीव तथा अचेतन प्रकृति विशेषण रूप में विद्यमान है । द्वैतवाद जीव और ब्रम्ह को दो अलग- अलग मानता है और द्वैताद्वैत किसी दृष्टि से दो और किसी दृष्टि से नहीं मानते है ,लेकिन वास्तव में ईश्वर और जीव दो तात्विक रूप में ब्रह्म ही है लेकिन उपाधि भेद के कारन दोनों में अंतर है । ईश्वर की उपाधियाँ शाश्वत ,अपरिमेय ज्ञान और शक्तिशाली है और जीव की उपाधियाँ अविद्या , काम और मन का शारीरिक तंत्र है ,जीव उपासक है और ईश्वर उपास्य है तथा जीव प्राप्तकर्ता है और ईश्वर जिसे काल ब्रम्ह भी कहते है वह प्राप्य है ।

अब इसी से जुलते मिलते कबीर के एक दोहे पर नज़र डालें। कबीर का भी दार्शनिक पक्ष कम जटिल नहीं रहा है। वे थे भी काशी के ही। जहां का हर व्यक्ति गंगा के किनारे जीव, ब्रह्म, माया आदि की ही बातें करता है। फिर कबीर तो कबीर ही है। कबीर का यह दोहा पढ़ें ।

उदक समुंद सलिल की सास्य, नदी तरंग समावाहिगे,
सुन्न हि सुन्न मिल्या, समदर्शी , पवम रूप होंहि जाबहिगे !!
( कबीर  )

जल, सागर, सरिता, इन सबके समान हम नदी में समाहित हो जाएंगे । जैसे शून्य में शून्य समा कर विलीन हो जाता है, वैसे ही हम समदर्शी हो परमपद को प्राप्त हो जाएंगे।

ग़ालिब का ' कतरे का दरिया में फना ' हो जाना भी एक प्रकार की परमपद की प्राप्ति है। कबीर और ग़ालिब के काल खंड में ढाई सौ साल का अंतर है। स्थान का भी अंतर है। ग़ालिब दिल्ली में थे और कबीर काशी में। ग़ालिब एक सामंती पृष्ठभूमि के पढ़े लिखे आभिजात्य थे, पर कबीर मसि कागद छुयो नहीं कलम गह्यो नहीं हांथ , पर यह अद्भुत दार्शनिक समता दोनों ही महान कवियों में है ।

© विजय शंकर सिंह

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