Tuesday, 10 April 2018

Ghalib - Is nazaaqat kaa buraa ho / इस नज़ाक़त का बुरा हो - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह


ग़ालिब - 51.
इस नज़ाकत का बुरा हो, वो भले हैं, तो क्या,
हाँथ आयें तो सही, हाँथ लगाये न बने !!

Is nazaaqat kaa buraa ho, wo bhale hain to kyaa,
Haanth aayen to sahii, haanth lagaaye na bane !!
- Ghalib

वे अच्छे हैं तो, इससे क्या लाभ। वे इतने कोमल हैं कि हाँथ आ भी जाँय तो हम उन्हें छू नहीं सकते।
यह शेर कई अर्थ समेटे है। प्रेयसी कोमल हो और इतनी कोमल हो कि स्पर्श ही न की जा सके । यह कल्पना की पराकाष्ठा है। यह उन गुणवान महानुभावों के लिये भी कहा जा सकता है कि जो गुण सम्पन्न तो हैं पर उन गुणों का लाभ समाज को नहीं प्राप्त हो रहा। यह उन मित्रों के लिये भी कहा जा सकता है जो सक्षम तो हैं, मित्र भी पर उनकी सक्षमता किस काम की, कि उनसे कोई लाभ ही न मिल सके। यह शेर ग़ालिब ने किस सन्दर्भ में लिखा है यह तो मैं बता नहीं पाऊंगा। मैने सन्दर्भ ढूंढने की कोशिश की पर सन्दर्भ मुझे नहीं मिला। ग़ालिब भी तो इतने गरिष्ठ हैं कि हाँथ तो आते हैं, पर हाँथ लगाते नहीं बनते !!

विजय शंकर सिंह

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