ग़ालिब - 55.
इश्क़ ने गालिब निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के !!
इश्क़ ने गालिब निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के !!
Ishq ne Ghalib nikammaa kar diyaa,
Warnaa ham bhii aadamii the kaam ke !!
- Ghalib
Warnaa ham bhii aadamii the kaam ke !!
- Ghalib
प्रेम ने हमे बेकार बना दिया, वरना हम भी कभी काम के, किसी काम लायक, आदमी थे ।
ग़ालिब का शेर एक खूबसूरत तंज़ है। जिस इश्क़ की बात ग़ालिब कर रहे हैं, वह किसी प्रेयसी या प्रेमी से इश्क़ है या ईश्वर से होने वाला इश्क़ हक़ीक़ी है या उनकी नायाब सुखनवरी है यह हम सब अपने अपने विचार से अनुमान लगा सकते हैं। इश्क़ का यहां तात्पर्य लीन हो जाना है समा जाना है, सुध बुध खो बैठना है । प्रेम की यह प्रकृति , अपनी अपनी रुचि की ओर ही खींचती है। ग़ालिब अपनी सुखनवरी , साहित्य रचना में इतना लीन रहते थे कि कुछ और सोच भी नहीं पाते थे। वे अपने व्यावहारिक जीवन में खुद को मिसफिट पाते है। एक अच्छे खासे ज़मीन्दार घराने और बहादुरशाह ज़फर के दरबार मे अपना दखल रखते हुये भी ग़ालिब कोई दुनियावी काम नहीं कर पाए। सुखनवरी की कल्पनाशीलता उन्हें किसी अन्य लोक का ही भ्रमण कराती रहती थी। उनका जीवन अभाव में बीता। यह अभाव उन्हें जीवन भर सालता रहा। यह अलग बात है कि ग़ालिब साहित्य के क्षेत्र ने अमर हैं। वे कभी नहीं मरेंगे। सबको सब कुछ मिलता भी तो नहीं है ।
यही दीवानापन हम प्रेमी युगलों में भी ढूंढ सकते हैं तो खुद को ईश्वर की प्रिया मानने वाले सूफी और दार्शनिक सन्तो में भी। वहां भी जो लगाव का अतिरेक है सच मे किसी दुनियावी और व्यावहारिक कार्य के लिये शेष नहीं रहने देता है। ग़ालिब से पहले एक और महान शायर मीर का यह शेर पढ़ें। यह शेर भी ग़ालिब के इस शेर से मिलता जुलता है।
जिन जिन को था ये इश्क़ का आज़ार मर गये,
अक्सर हमारे साथ के बीमार मर गए !!
( मीर तक़ी मीर )
अक्सर हमारे साथ के बीमार मर गए !!
( मीर तक़ी मीर )
जिन जिन को इस प्रेम का रोग था, वे सब मर गये। हमारे साथ के लोग जो भी इस रोग से ग्रस्त हुये सभी मर गये, बस मीर को छोड़ कर।
यहां मरने का अर्थ प्रेमिका या प्रेमी या लक्ष्य को पाना भी है। ऐसा एक आलोचक मित्र ने बताया है। मीर अंत समय तक अपने प्रेम का लक्ष्य नहीं पा सके। वे अभी भी मुन्तजिर हैं जब कि उनके साथ वाले अपना अभीष्ट पा चुके हैं।
© विजय शंकर सिंह
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