ग़ालिब - 60
इशरत ए क़त्ल गाहे अहले तमन्ना मत पूछ,
ईद ए नज़्ज़ारा है, शमशीर का उरियाँ होना !!
इशरत ए क़त्ल गाहे अहले तमन्ना मत पूछ,
ईद ए नज़्ज़ारा है, शमशीर का उरियाँ होना !!
Isharat e qatl gahe ahle tamannaa mat poochh,
Eid e nazzaaraa hai, shamasheer kaa uriyaan honaa !!
- Ghalib
Eid e nazzaaraa hai, shamasheer kaa uriyaan honaa !!
- Ghalib
इशरत - आनन्द
ईद ए नज़्ज़ारा - प्रसन्नता का प्रदर्शन
उरियाँ - प्रगट. ज़ाहिर
शमशीर - तलवार, खड्ग
ईद ए नज़्ज़ारा - प्रसन्नता का प्रदर्शन
उरियाँ - प्रगट. ज़ाहिर
शमशीर - तलवार, खड्ग
प्राणों का उत्सर्ग करने के उत्सुक लोगों के लिये बधस्थल पर पहुंच कर भी आनन्द की अनुभूति होती है। उनके लिये बधिक की तलवार का म्यान से निकलना किसी उत्सव के दृश्य से कम नहीं होता है।
यहां तो क़त्ल होने में ही ग़ालिब को आंनद प्राप्त हो रहा है। क़ातिल हो या कत्लगाह या उरियाँ शमशीर यानी खुली हुयी तलवार, जान लेने और जान देने के ये सब सामान भी आंनद की अनुभूति दे सकते हैं यह कल्पना तो गालिब ही कर सकते हैं ! जब मौत को ही लक्ष्य मान लिया जाय तो लक्ष्य की प्राप्ति का आनंद तो अपरिमित होता है। पर क़ातिल, कत्लगाह और उरियाँ शमशीर किस बात के प्रतीक है ?
इस शेर को आलोचकों ने आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी देखा है और इश्क़ ओ मुहब्बत के प्रचलित नुक़्ता ए नज़र से भी। क़त्ल कत्लगाह और उरियाँ शमशीर यहां प्रेयसी, मिलन स्थल और प्रेयसी की भ्रू भंगिमा है। जब इन तीनों का ही एक जगह मेल हो जाय तो ग़ालिब क्या किसी का भी बचना मुश्किल हो जाय। ऐसे क़ातिल, ऐसे कत्लगाह और ऐसी शमशीर का साम्म्ना करने के लिये वे खुशी खुशी निकल पड़ते है ।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखें से तो, जब ईश्वर के दर पर जाना हो तो और उसका दर्शन सुलभ हो तो मुक्ति तो होनी ही है। ऐसी मुक्ति जो सभी बंधनो से मुक्त कर दे स्वतः आनन्द का कारण है । गालिब के शेर भी बहुधा कई अर्थ समेटे रहते हैं। हमारे अमर शहीदों को ही देखिये, जिनका वज़न फांसी की तिथि को बढ़ जाता था और वह बधिक स्थल भी उन्हें आह्लादित कर देता था।
© विजय शंकर सिंह
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