प्रसून जोशी जो फ़िल्म सर्टिफिकेशन बोर्ड के चेयरमैन हैं ने 18 अप्रैल 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू लिया। प्रधानमंत्री विदेश यात्रा के सिलसिले में लंदन में थे। उनके इस इंटरव्यू की आलोचना हो रही है। यह एक पेशेवराना इंटरव्यू नहीं लगा बल्कि लोगों को यह एक तयशुदा दोस्ताना इंटरव्यू लगा। इस धार विहीन इंटरव्यू के लिये प्रसून जोशी की सोशल मीडिया पर आलोचना भी हो रही है। लेकिन, प्रसून जोशी से यह उम्मीद ही क्यों थी कि वे एक पेशेवर पत्रकार की तरह जो असहज सवालों से ही अपने इंटरव्यू की शुरुआत करता है, सवाल पूँछेंगे ?
वे एक कवि हैं और फिल्मों के लिये भी गीत लिखते हैं। फिल्मों के लिये गीत तो स्क्रिप्ट और सिचुएशन के अनुसार लिखे जाते है। कहते हैं वहां तो धुन पर शब्द गढ़े जाते हैं, शब्द पर धुन बहुत ही कम। बहुत से साहित्यिक पुराधाओं ने अपनी लेखकीय और बौद्धिक स्वाधीनता के साथ कोई समझौता नहीं किया और फिल्मों से किनारा कर लिया। प्रेमचंद, अमृतलाल नागर आदि शासियतें इसका उदाहरण हैं। प्रसून जोशी एक सरकारी पद पर है। सरकार के कृपा पात्र हैं। व्यवस्था के अंदर रह कर व्यवस्था का विरोध सब के बस की बात नहीं होती है। उन्होंने एक तयशुदा स्क्रिप्ट और संगीत के धुनों के आधार पर अपनी प्रश्नोत्तरी बनायी और त्वदीयं वस्तु गोविन्दम कह कर इंटरव्यू ले लिया। प्रधानमंत्री जी भी लीक हुये प्रश्न पत्र के समक्ष बैठे हुये छात्र की तरह दिखे। इस इंटरव्यू में न तो उनका गला सूखा और न ही उन्होंने पानी मांगा। यह भी अच्छा हुआ क्यों कि यह इंटरव्यू लंदन में था। वहां सब ठीक ठीक होना भी चाहिये। दूसरे गांव में मलिकार असहज हों तो घर भर की साख घटती है। प्रसून जोशी ने अपनी भूमिका का निर्वाह अपने पद के अनुरूप किया। दास भाव जब नौकरशाही में बहुतायत का स्थायी भाव बन गया हो तो, प्रसून जोशी की निंदा और प्रशंसा क्या की जाय ।
प्रधानमंत्री की भी अपनी मज़बूरी है। मेज़ के जिस तरफ आप बैठते हैं वैसी ही भूमिका में आप आ जाते हैं। अभी वे दाहिने बैठे हैं तो दाहिने वाली बात करेंगे । कल जब वे बायें बैठते थे तो बामपंथी बातें करते थे। उन्हें भी अपनी सरकार का बचाव करने का हक़ उतना ही है जितना हमें उस सरकार की खामियां गिनाने का । जब चार साल तक प्रधानमंत्री ने देश के अंदर कोई खुला और पेशेवर पत्रकार वार्ता का सामना नहीं किया तो उनके इस तयशुदा इंटरव्यू पर क्या टीका टिप्पणी की जाय । यह एक लीक हुए प्रश्नपत्र का जवाब था और कुछ नही।
© विजय शंकर सिंह
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