Friday, 27 April 2018

ठेके पर धरोहर - लाल किला - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह


खबर है लाल किला अब ठेके पर सरकार ने दे दिया है। और भी धरोहरें भविष्य में दिये जाने की संभावना है। यह देश की अस्मिता को ठेके पर दिए जाने जैसा है। कुछ इमारतें महज़ ईंट पत्थरों की नहीँ होती है हालांकि वे बनती हैं उसी सामग्री से जिससे सभी इमारतें बनती हैं। पर वे इतिहास का प्रतीक होती हैं। उनकी दीवालों ने साम्राज्यों को बनते बिगड़ते देखा है। ऐश्वर्य और वैभव से चकाचौंध होते लोगों को देखा है तो विपन्नता और उजड़ी हुयी उदास आंखें भी अपने अंतिम सम्राट की, हालांकि तब यह ओहदा भी बराये नाम ही था देखा है। लाल किला दुनिया की  ऐसी ही गिनी चुनी इमारतों में से एक है। जिसका रख रखाव अब डालमिया ग्रुप करेगा ।

लाल किला भारत की सत्ता का प्रतीक है। शाहजहां के समय जब राजधानी आगरा से दिल्ली आयी थी तो सत्ता इसी लाल पत्थरों से बने मज़बूत किले से चलती थी। आधे भारत पर राज करने के बावजूद भी अगर दिल्ली किसी राजा के पास नहीं है तो वह भारत का सम्राट नहीं कहलाता था। और कुछ भी आप के पास नहीं है बस दिल्ली है तो आप भारत के सम्राट हैं। याद कीजिये, महान मुगलों का अवसान काल। अंतिम मुगल का समय और उनके किस्से। उस समय एक मज़ाक़ चला करता था, शहंशाह शाह आलम अज दिल्ली से पालम। आधा भारत जीतने के बाद भी मराठे दिल्ली पर अधिकार नहीं जमा सके। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भी बंगाल ( जिसमे पूरा बंगाल आज के बांग्लादेश सहित, उड़ीसा और बिहार था ) की ज़मींदारी ले ली, जॉब चारनाक ने कलकत्ता बसा दिया, पर जब तक दिल्ली के लाल किले पर, 1857 के विप्लव को दबाने के बाद , यूनियन जैक नहीं फहरा दिया गया तब तक उनको भारत का कब्जेदार नहीं माना गया। आधा भारत रियासतों में था, और कुछ आटविक इलाके थे पर चूंकि दिल्ली अंग्रेजों की थी, तो वे भारत के भाग्य विधाता माने गए। आज भी हर साल स्वाधीनता दिवस 15 अगस्त पर प्रधानमंत्री देश का राष्ट्र ध्वज इसी किले पर फहराते हैं। यह देश की अस्मिता, जीवन्तता स्वाधीनता और सम्प्रभुता का प्रतीक है ।

पर यही लाल किला अब ठेके पर डालमिया भारत ग्रुप को दे दिया गया है। डालमिया ग्रुप ने 25 करोड़ रुपये पर इस किले का कुछ भाग ठेके पर लिया है। कहा जा रहा है वह इस धरोहर की देखभाल करेंगे। जब भारत आज़ाद हुआ था तो देश के पास संसाधन कम थे। आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी। फिर 1947 से ले कर 2018 तक देश की किसी भी सरकार ने यह बेवकूफी भरा निर्णय नहीं लिया कि प्राचीन धरोहरों को देखभाल के लिये ठेके पर दे दिया जाय। अब हम तब से बहुत अधिक समृद्ध हैं । फिर ऐसा क्या हो गया है कि, मैं देश नहीं बिकने दूंगा का नाटकीय संवाद करने वाले नरेंद्र मोदी की सरकार ने सब कुछ बेचने की धुन पर ओलेक्स की मानसिकता से ग्रस्त इस सरकार ने आज लालकिला को ही ठेके पर दे दिया ? कल हो सकता है और धरोहरों को ठेके पर दे दिया जाये। अब 23 मई को यह किला ठेके पर उठेगा। डालमिया भारत ग्रुप ने कहा है कि वह लाल किला में बेहतर रोशनी और हरियाली की व्यवस्था करेगा। इसे पर्यटकों के लिये आकर्षक बनाएगा। और भी उसकी कुछ योजनाएं होंगी। जो वह बाद में बताएगा ।


ब्रिटेम एक परंपरावादी देश है। यहां तक कि इसका संविधान भी परम्परा से ही विकसित हुआ है। इंग्लैंड का संविधान लिखित नहीं है बल्कि वह संवैधानिक परम्पराओं से निरन्तर विकसित होता रहता है। भारत पर जब उन्होंने कब्ज़ा जमाया तो भारत की सांस्कृतिक विरासत ने उन्हें बहुत ही आकर्षित किया। उन्होंने भारतीय दर्शन, साहित्य वांग्मय, कला, समाज और रीतिरिवाजों का व्यापक अध्ययन किया। साथ ही इतिहास की खोज भी की। उन्होंने इतिहास की एक नयी शाखा पुरातत्व आर्कियोलॉजी की नींव डाली और इतिहास के विशद और प्रामाणिक अध्ययन के लिये उन्होंने उत्खनन भी किये। उन्होंने एशियाटिक सोसायटी जो प्राच्य विद्या पर प्रामाणिक शोध करने वाली एक प्रमुख संस्था थी का गठन किया। उसी क्रम में पुराने स्मारकों, धरोहरों के अध्ययन और रखं रखाव के लिये भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एएसआई, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया का गठन किया गया।

1861 में सर अलेक्ज़ेंडर कनिघम जो एक ब्रिटिश पुरातत्वविद थे द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई.) की स्थापना तत्कालीन वायसरॉय लार्ड कैनिंग के समय की गयी थी। यह ब्रिटिश पुरातत्वशास्त्री विलियम जोन्स, द्वारा 15 जनवरी, 1784 को स्थापित एशियाटिक सोसायटी का एक स्वरूप है। सन 1788 में इसका एक अधिकृत पत्र द एशियाटिक रिसर्चेज़ प्रकाशित होना आरम्भ हुआ था और सन 1874  में इसका प्रथम संग्रहालय कलकत्ता में बना। उस समय एएसआई के क्षेत्र में अफगानिस्तान भी आता था। सन 1944 में, जब मॉर्टिमर व्हीलर महानिदेशक बने, तब इस विभाग का मुख्यालय, रेलवे बोर्ड भवन, शिमला में स्थित था। 1947 में भारत के स्वतंत्र होने के बाद 1958 में प्राचीन स्मारक पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम संसद से पारित किया गया। इसके अधीनस्थ सभी पुरातत्व महत्व की धरोहरें रखी गयी। इस कानून में उनसे छेड़छाड़ पर आपराधिक दंड का भी प्राविधान है। इसके बहुत पहले 1904 में जब लार्ड कर्जन वायसरॉय था तो एक कानून , प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम बन चुका था। कलकत्ता का प्रमुख स्मारक विक्टोरिया मेमोरियल लॉर्ड कर्जन के ही समय बना था। इस विभाग के पास 3636 स्मारक स्थल हैं, जो कि पुरावस्तु एवं कला खजाना धारा १९७२ के अन्तर्गत, राष्ट्रीय महत्व की धरोहरें घोषित हैं। लाल किला इन्ही में से एक है।

खबर है, लाल किला ही नहीं निम्न धरोहरें भी पूंजीपतियों और कॉरपोरेट घरानों को सौंपी जाने की योजना है।
महाराष्ट्र की अजंता गुफायें यात्रा को दी गईं है।
खजुराहो के विश्व विख्यात मंदिर समूह, जीएमआर स्पोर्ट्स प्रा लिमिटेड को मिला है।
एलोरा की गुफाओं का जिम्मा इंडियन एसोसिएशन ऑफ टूर आॅपरेटर्स (आईएटीओ) को दिया गया।
मुंबई के जयगढ़ किला और सेसुन डॉक को संवारने का काम दृष्टि लाईफसेविंग्स प्रा लि को दिया गया।
मुंबई की एलिफेंटा गुफा को महेश इंटरप्राइज एंड इंडिया इंफ्रा ने लिया है।
बोध गया के मंदिर के लिए यस बैंक को आशय पत्र सौंपे गए हैं। दृष्टि लाइफसेविंग्स प्रा लि ने सबसे ज्यादा 21 विरासत स्थलों को गोद लिया है। यह जानकारी अरसा पहले केन्द्रीय पर्यटन राज्य मंत्री के जे अल्फोंस, लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में दे चुके हैं
लाल किला की स्थिति इन धरोहरों से अलग है। लाल किला एक पर्यटन स्थल ही नहीं बल्कि वह सत्ता का प्रतीक है। इसे किसी निजी कम्पनी को लीज पर देना उचित नहीं है।

यह तर्क दिया जा सकता है कि इसका रखरखाव निजी कम्पनी बेहतर तरीके से करेगी और सरकार को इससे आय भी होगी। लेकिन कोई भी निजी कम्पनी कोई भी काम बिना लाभ के नहीं करती है। निश्चित रूप से अगर डालमिया ग्रुप ने 25 करोड़ की लीज पर यह किला लिया है तो वे 100 करोड़ इससे कमाने की योजना वे बना चुके होंगे। फिर वे यह धन कहां से उगाहेंगे यह मैं नहीं बता पाऊंगा। सरकार को लाल किले का रखं रखाव, खुद करना चाहिये। लाल किले का ही नहीं बल्कि सभी धरोहरों का भी उसे खुद अपने संसाधनों और विभाग से रखं रखाव और प्रशासन करना चाहिये। आज तक हो भी रहा था। पर अब यह सब अब ठेके पर है । सरकार इतनी दयनीय और असमर्थ हो चुकी हैं वह अब धरोहरों और विरासतों की भी देखभाल नहीं कर सकती है।

© विजय शंकर सिंह

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