Sunday, 15 April 2018

केदारनाथ अग्रवाल की एक कविता - आग लगे इस रामराज में / विजय शंकर सिंह


आग लगे  इस  रामराज में
ढोलक मढ़ती है अमीर की
चमड़ी बजती है ग़रीब की

ख़ून  बहा  है  रामराज  में
आग लगे  इस रामराज में

आग लगे इस रामराज में
रोटी रूठी,  कौर छिना है
थाली सूनी, अन्न बिना है

पेट  धँसा है  रामराज  में
आग लगे इस रामराज में।

- केदारनाथ अग्रवाल
( 18 सितम्बर 1951 )
***

केदारनाथ अग्रवाल ( 1911 से 2000 ) , बांदा जनपद के निवासी थे।  इलाहाबाद  विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान ही उन्होंने कविताएँ लिखने की शुरुआत की।
उनका पहला कविता संग्रह फूल नहीं रंग बोलते हैं । अन्य रचनाओं में, युग की गंगा, नींद के बादल, लोक और अलोक, आग का आइना, पंख और पतवार, अपूर्वा, बोले बोल अनमोल, आत्म गंध आदि प्रमुख कृतियाँ हैं। उनकी कई कृतियाँ  का अंग्रेजी, रूसी और जर्मन भाषा में अनुवाद भी हो चुकी हैं।
उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, हिंदी संस्थान पुरस्कार, तुलसी पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

© विजय शंकर सिंह

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