गांधी की कायरतापूर्ण हत्या आज के ही दिन हुयी थी. पूरी दुनिया स्तब्ध हो गयी थी. 30 जनवरी 1948 को सायं काल एक प्रार्थना सभा में जाते हुए अचानक एक मानसिक विकलांग व्यक्ति ने बीसवीं सदी के महानतम व्यक्तित्व की हत्या कर दी. जीवन भर जिसने अहिंसा की बात की. जीवन भर जिसने शान्ति और सद्भाव की बात की. जिसने राजनीतिक विरोध के नए और अचूक उपकरण दिए वह व्यक्ति हिंसा का ही शिकार बना. गांधी का देश को क्या योगदान है, यह हमेशा बहस का विषय रहा है, आगे भी रहेगा. पर यह निर्विवाद है कि वह देश की आज़ादी के लिए किये गए संघर्षों में सबसे अग्रणी व्यक्ति थे. राजनीति, समाज, धर्म, दर्शन, साहित्य, कला आदि सभी विषयों पर उन पर काम हुए और हो रहे हैं. ऐसा भी नहीं कि उनकी सिर्फ प्रशंसा ही की गयी है या की जा रही है. उन्हें आलोचनाएं भी झेलनी पडी. आज भी उनकी आलोचना होती है. उनके जीवन के हर पहलू पर, अध्यात्म से लेकर सेक्स तक चर्चाएं हुयी, और किताबें लिखी गयीं. शोध आज भी हो रहे हैं. नयी सामग्री की तलाश और नयी मान्यताओं का निर्माण आगे भी होता रहेगा.
आज उनकी पूण्य तिथि पर , उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि. शत शत नमन !!
यह देश के लोकतंत्र की खूबी है कि देश के सबसे महान व्यक्तित्व की हत्या करने वाले को यदा कदा महिमा मंडित करने की बात उठती रहती है. उस हत्या का औचित्य भी दिखाया जाता है. पर सभ्य समाज में किसी हत्या का औचित्य, यह मेरी समझ से बाहर है. विरोध का औचित्य है. लोकतंत्र में विरोध अनिवार्य है. अगर उस होनहार पत्रकार को गांधी से नाराज़गी थी, या और वह उनके विचारों का विरोधी था तो उसे पत्रकारिता धर्म का निर्वाह करना चाहिए था, न कि हत्या जैसा जघन्य अपराध. गांधी अपने अंतिम समय में अपनी चमक खो चुके थे. वह एक निराश व्यक्ति हो गए थे. उनकी आलोचना बहुत हो रही थी. फिर गोडसे और उनकी विचारधारा के समर्थकों ने गांधी के विरोध में जन समर्थन क्यों नहीं उठाया ? क्या वे गांधी विरोध को जायज़ नणयन ठहरा पाते. जिस धर्म में निरीश्वरवाद को भी मान्यता दी गयी है, उसी धर्म का नाम ले कर , हत्या करना और फिर उसका औचित्य सिद्ध करना यह मेरी समझ से बाहर है. विचार का विरोध विचार है हत्या नहीं.
गोडसे समर्थक उसका मंदिर बनाने का उपक्रम कर रहे. राम का मंदिर अब अतीत की बात हो गयी है. गोडसे की पुस्तक, गांधी वध क्यों ? अब अचानक चर्चा में लाई जा रही है. अपराध का भी औचित्य. क्या राष्ट्रवाद है ! हत्या और वध केवल मानसिकता है. हत्या का हर अपराधी अपने कृत्य को वध ही कहता है.उसके पास हत्या का कारण भी होता है. कभी कभी वह अपने कृत्य के सम्बन्ध में जो तर्क देता है वह हमें ठीक भी लगने लगता है. पर सारे तर्कों के बावज़ूद अगर यह प्रमाणित हो जाता है कि हत्या या वध जो भी आप कह लें, उसने किया है तो वह दंड का भागी होता है. गोडसे ने जो भी तर्क दिया है, उस से अगर हम सहमत हों तब भी हत्या को कोई भी सभ्य समाज जायज़ नहीं ठहरा सकता. मैं बहुतों की विचारधारा से असहमत हूँ. विशेषकर कट्टर धर्मान्धों की विचारधारा से पर मैं उनकी हत्या न करूँगा और न करने के औचित्य को सिद्ध करूँगा. बल्कि उनके हत्यारों के विरुद्ध खड़ा भी हूँगा.
-vss.
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