Sunday, 8 April 2018

Ghalib - In aablon se paanw ke ghabraa gayaa thaa main / इन आबलों से पांव के घबरा गया था मैं - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह


ग़ालिब - 49
इन आबलों से पांव के घबरा गया था मैं,
जी खुश हुआ है राह को पुरखार देख कर !!

In aabalon se paanw ke ghabaraa gayaa thaa main,
Jee khush huaa hai raah ko purakhaar dekh kar !!
- Ghalib

अबला - पांव के छाले.
पुरखार - कांटो से भरा.

अपने पैरों के छालों से मैं घबरा गया था, लेकिन जब सामने कांटों भरी राह दिखी तो तबियत खुश हो गयी।
आबला पा, पांव के छालों पर उर्दू में कई सुंदर कवितायें रची गयी है। ये छाले अतीत की यात्रा के थकान और मिले कष्टों के प्रतीक हैं। अगर छाले कष्टों के प्रतीक हैं तो पुरखार राह, कांटों भरी राह कौन सी राहत देने वाली है ? कांटो भरी राह पर चलना तो और भी कष्टसाध्य है। लेकिन जब कष्ट से ऊब जाता है कोई तो वह उस कष्ट से मुक्ति चाहने लगता है। वह चाहता है कि उस कष्ट से येन केन प्रकारेण मुक्ति मिले । इस मुक्ति के दौरान अगर आगे कोई कष्ट भी हो तो उसका अहसास नहीं होता क्यों कि वह कष्ट अभी भोगा हुआ नहीं है। यहां भी यही रूपक है। पांव के छालों से परेशान गालिब कांटो भरी राह को देख कर आह्लादित हैं कि ये छाले कम से कम कांटो से फूट कर तो मुक्ति देंगे। रहा अगली चुनौती का तो उससे फिर निपटा जाएगा। कठिनाई को कठिनाई से पराजित करने का भाव इस शेर में है ।

© विजय शंकर सिंह

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