Monday, 11 July 2022

डॉ कैलाश कुमार मिश्र / नागा, नागालैंड और नागा अस्मिता : आंखन देखी (8)

हॉर्नबिल उत्सव और नागालैंड ~

चलिए आज हॉर्नबिल फेस्टिवल या उत्सव की बात करते हैं। बात को तनिक विस्तार से समझना होगा। इसके माध्यम से ही मेरा प्रवेश नागा संसार में होता है। पृष्ठभूमि को स्पष्ट करना अनिवार्य है।

इतना तो स्पष्ट है  कि नागा जनजाति स्वभाव से मस्त मलंग और उत्सवजीवी होते हैं। अगर जीवन का रंग, श्रृंगार, मस्ती, उल्लास देखना है तो नागा के साथ रहिए, आप अलग संसार में रहने लगेंगे। एक नागा युवा कहने लगा : "हमारे लिए लंबी आयु की कोई प्रधानता नही है। हम जीवन में मस्ती खोजते हैं।" नागा बहुत दिन तक अर्थात बुढ़ापे तक नही जीना चाहता वह मस्ती और रोमांस में जीना चाहता है। इसके लिए उत्सव, अनुष्ठान, गीत, नृत्य, खेल, आखेट, पेंटिंग, लकड़ी पर उत्कीर्ण का कार्य, अनेक प्रकार के भोजन का निर्माण, युद्ध कौशल, बर्नाकुलर आर्किटेक्चर, जड़ी बूटियों का खोज और उनका प्रयोग, देशी बीयर का सेवन, प्रेम सबसे महत्वपूर्ण चीज या कार्य है। नागा को अपनी भूमि और अपनी परम्परा बहुत पसंद है। इसी उत्सव में एक उत्सव है हॉर्नबिल फेस्टिवल या उत्सव। हॉर्नबिल उत्सव हॉर्नबिल पक्षी के नाम पर है। हॉर्नबिल एक खूबसूरत पक्षी है। यह मध्यम कद का होता है और बहुत ऊंचाई तक उड़ता है। इसका चोंच बहुत लंबा होता है और प्रारंभ से लगभग अस्सी प्रतिशत हिस्सा पीला और बीस प्रतिशत काला होता है। इसके पंख भी बेहद आकर्षक होते हैं। अगर आप हॉर्नबिल पक्षी के स्वरूप और रूप रंग देखेंगे तो इसके मनोहारी स्वरूप को देखकर आपको ऐसा लगेगा कि फुरसत के क्षण में मकबूल फिदा हुसैन साहब ने एक बेहद नायाब पेंटिंग का निर्माण कर उसे प्रदर्शनी में लगा दिया है। 

खैर बात नवम्बर 2007 की है। मैं अरुणाचल प्रदेश के बोमडिला , दीरांग और तवांग तीन जगहों पर विस्तृत सांस्कृतिक संरक्षण और दस्तावेजीकरण का कार्य कर रहा था। तवांग में हमलेगो के कार्य का निरीक्षण और संवर्धन के लिए डॉ कल्याण कुमार चक्रवर्ती महोदय जो कि उस समय इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, दिल्ली के सदस्य सचिव थे, आए थे। वे हमलोगों के उत्साह और कार्यशैली से बहुत प्रसन्न थे। एक दिन रात में उन्होंने मुझे बताया कि नागालैंड के आर्ट और कल्चर डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉ. ए लोंगकुमार खुद नागा समुदाय से हैं और वे चाहते हैं कि हमलोग उनके साथ नागा जनजातियों पर और नागालैंड पर गहन कार्य प्रारंभ करें। मेरे साथ डॉ. ऋचा नेगी भी थी । डॉ ऋचा नेगी  के पिता Anthropological Survey of India में बहुत दिन तक कार्यरत थे। जब भारत सरकार ने भोपाल में म्यूजियम ऑफ मैनकाइंड का निर्माण किया तो डॉ ऋचा नेगी  के पिता उस अद्भुत परिकल्पना को साकार करने के लिए उस संस्था के पहले डायरेक्टर बने । अंततः वे उत्तराखंड यूनिवर्सिटी में मानवविज्ञान के प्रोफेसर और अध्यक्ष भी रहे। डॉ ऋचा नेगी के बारे में यह जानकारी देना अनिवार्य इसीलिए है कि एक महिला और अविवाहित महिला होने के बाद भी दुर्गम से दुर्गम और खतरों से भरे क्षेत्र में भी वह सदैव मेरे साथ जाने के लिए मेरे से पहले तैयार रहती थी । शायद उसके जेनेटिक प्रॉपर्टी या डीएनए में पिता के गुण, जोश और अनुभव शामिल थे । डॉ ऋचा नेगी के बारे में यह भी स्पष्ट करना जरुरी है कि वह अवस्था में मुझसे दो महीने छोटी थी परन्तु संस्थान में मुझसे वरिष्ट थी फिर भी प्रबंधन का मुखिया मैं ही था और उन्होंने कभी भी मेरे किसी भी निर्णय का विरोध नहीं किया। ऋचा में केयर करने का गजब ज़ज्बा था । किसी भी परिस्थिति में रहने के लिए तैयार रहती थी । 

ऋचा के संबंध में एक संस्मरण का जिक्र करना अनिवार्य है । एकबार हमलोग गुवाहाटी से अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर टैक्सी से जा रहे थे। वहाँ एक जगह है बन्दरदेबा। बन्दरदेबा के फ़ॉरेस्ट अतिथि गृह में हमलोगों के लिए रहने की  व्यवस्था पहले से निश्चित थी । इसकी सूचना बंदरदेवा फोरेस्ट गेस्ट हाउस के अधिकारियों को दे दिया गया था।  हमलोग बन्दरदेबा फ़ॉरेस्ट गेस्टहाउस करीब 10 बजे रात्रि में पहुंचे । संयोग से फ़ॉरेस्ट गार्ड मदिरा पीकर सो गया था । मुसलाधार बारिश हो रही थी। ठण्ड ऐसी कि हड्डी गल जाए। अगल बगल में जंगल ही जंगल थे । कहीं कोई होटल या रहने की अन्य व्यवस्था नहीं थी । हमलोग गाड़ी का हॉर्न बजाते रहे लेकिन गार्ड नहीँ जगा। अब क्या हो? मुझे अपने से अधिक ऋचा की चिंता हो रही थी । लेकिन ऋचा वीर स्त्री बनी बिलकुल शांत थी । मेरी ओर कुटिल मुश्कान बिखेरती ऋचा बोली: “चिंता मत करो । हम लोग जब कार्य पर निकले हैं तो यह सामान्य बात है । हमें विपरीत परिस्थितियों में रहने और कार्य करने की आदत डालनी होंगी।” यह कहते हुए ऋचा गाड़ी के ड्राईवर को अपना छाता निकालकर देते हुए बोली: “पीछे से मेरा बैग ले आओ।” ड्राईवर बैग ले आया। ऋचा उसमे से एक कम्बलनुमा चादर निकाल ली और अपने साथ मुझे भी ढक दी । ठण्ड अभी भी लग रही थी । हम लोग बात करते रहे । बारिश होती रही । नाईट गार्ड कहीं धुत्त होकर सोता रहा। बीच-बीच में ड्राईवर हॉर्न बजाता रहा । सुखद संयोग यह था कि रस्ते में हमलोग ढ़ाबे में भोजन कर लिए थे। ड्राईवर भी बहुत ही शांत चित्त व्यक्ति था । उसे हमलोगों के साथ चलने में आनंद मिलता था । वह भी एक कम्बल निकाल कर गाड़ी में बैठा रहा। हम तीनो में कोई भी सो नहीं रहे थे क्योंकि हिंस जानवर के आक्रमण का खतरा भी था । हेड लाइट जला हुआ था । 

करीब चार बजे सुबह गार्ड जगा । होश में आया । मुख्य गेट के सामने खड़ी हमारी गाड़ी को देखकर उसके होश उड़ने लगे। वह दौड़कर गेट पर आया और जल्दी-जल्दी गेट खोल दिया । ड्राईवर उसपर चिल्ला पड़ा । डॉ ऋचा नेगी  शांत भाव से ड्राईवर को रोक दी। गार्ड अपना सर नीचे किया था । डर उसके रोम-रोम से प्रगट हो रहे थे । ऋचा उसके पास गयी । बोली: “आपको मालुम था कि हमलोग रात में आने वाले हैं?” 
गार्ड बोला: “जी मैडम, मालुम था । बहुत बारिश हो रही थी पता नहीं कब सो गया मैं। मुझको माफ़ कर देगा ना आप? अब ऐसी गलती नहीं करेगा!” 
ऋचा: “डरो मत। पहले हमलोगों को अपना कमरा दिखाओ।”
गार्ड तेज कदमो से कमरे की ओर चलने लगा । हमलोग उसके पीछे पीछे चलने लगे। कमरे बहुत बड़े और सुविधा संपन्न थे। दोनों कमरे में पहले से लकड़ी के अलाव जल रहे थे। ऋचा बोली: “चाय मिल जायेगा क्या?” 
गार्ड: “जी मैडम अभी लाता हूँ।” यह कहते हुए वह केयरटेकर के पास गया। कुछ ही देर में बिना दूध का चाय लेकर आया। उस चाय में हमलोग अमृत का स्वाद चख रहे थे। ड्राईवर को भी उसका रूम मिल चूका था। गार्ड अभी भी डरा हुआ था। मैं चुप चाप डॉ ऋचा के निर्देशों का पालन कर रहा था। ऋचा भाप गयी कि गार्ड बहुत अधिक डरा हुआ है। बोली: “कोई बात नहीं। जो गया सो हो गया। हम लोग कोई शिकायत नहीं करेगा। आगे से ख्याल रखना। ठीक है ?” गार्ड कृतज्ञता से सिर हिलाते हुए चला गया। 

डॉ ऋचा के बारे में इतना लिखना जरुरी है क्योंकि संस्मरण में बार –बार इस अतुलनीय मित्र का जिक्र आते रहेंगे। ऋचा के बिना उत्तरपूर्व भारत को समझना मेरे लिए असंभव था। पुनः उस बिंदु पर आते हैं जहाँ डॉ चक्रवर्ती ने डॉ. ए लोंगकुमार के निवेदन को देखते हुए अरुणाचल भ्रमण  के दौरान हमे नागालैंड में कार्य करने के लिए अपना विचार दे रहे थे। मैंने डॉ ऋचा से इस विषय पर बात किया। ऋचा यह बात सुनकर ख़ुशी से झुमने लगी। बोली: “जरुर करना है यह कार्य। अपने पिता से नागा समाज का अनेक संस्मरण सुन चुकी हूँ। उनके साथ मिलने और उनको समझने का यह उत्तम अवसर है।”

मेरा काम अब सहज हो चूका था। हमलोग डॉ चर्कवर्ती के पास गए। हमने उन्हें बता दिया कि हम शीघ्र ही डॉ ए लोंगकुमार से बात करके नागालैंड पर कार्य योजना बना लेंगे और कार्य करना शुरू कर देंगे। लेकिन दिल्ली जाने के बाद हमलोग पहले नागालैंड के लिए एक पायलट यात्रा करेंगे जिससे सभी बात स्पष्ट हो सके। इस बात से डॉ चक्रवर्ती सहमत थे। ऋचा बीच में बोल पड़ी: “क्यों न कैलाश और मैं यही से नागालैंड चले जाएँ! इससे समय बच जायेगा। यहाँ से हमलोग गुवाहाटी जाकर वहाँ से दीमापुर के लिए जहाज पकड़ लेंगे। आपको अगर मेरा सुझाव सही लगे तो एकबार आप डॉ ए लोंगकुमार को इसकी अग्रिम जानकारी दे दें।”

डॉ चक्रवर्ती डॉ ऋचा के सुझाव और उत्साह से बहुत खुश हुए। उन्होंने तुरत डॉ ए लोंगकुमार को फोन लगाया और हमलोग वहाँ पहुँच रहे हैं इसकी जानकारी दे दिया। मुझसे भी उन्होंने उनसे बातचीत करा दिया। तवांग से हमलोग गुवाहाटी आ गए। वहाँ से डॉ चक्रवर्ती दिल्ली चले गए । मैं डॉ ऋचा नेगी के साथ दीमापुर चला गया । डॉ लोंगकुमार को सभी जानकारी थी । दीमापुर हवाईअड्डे पर वे हमारे लिए प्रतीक्षा कर रहे थे । दो नागा लड़कियाँ उनके साथ थी। दोनों ही अतीव सुंदरी। उन दोनों ने हमलोगों का स्वागत पुष्प गुच्छ देकर् किया । दोनों का मृदुल मुश्कान देखकर मन पुलकित था । हमलोगों के पहुचने से पहले ही डॉ लोंगकुमार ने हमलोगों के लिए इनर लाइन परमिट बना दिया था। बता दूँ कि असम छोड़कर उत्तरपूर्व भारत के सभी राज्यों में प्रवेश करने के लिए इनर लाइन परमिट का होना अनिवार्य है । यह परमिट दिल्ली में उस राज्य के भवन से, वहाँ एअरपोर्ट पर या पहुचने पर अपने वैध प्रमाणपत्र, यात्रा का उदेश्य आदि बनाकर लिया जा सकता है। गुवहाटी में भी सभी उत्तरपूर्वी राज्यों का ऑफिस है जहाँ से रेजिडेंट कमिश्नर यह इनर लाइन परमिट इशू करते हैं। 

खैर! हम लोग दीमापुर से कोहिमा, अर्थात नागालैंड राज्य की राजधानी के लिए डॉ लोंगकुमार के साथ चल दिए। डॉ लोंगकुमार बहुत ही आत्मीय अधिकारी के साथ-साथ एक नागा संस्कृति के जानकार व्यक्ति थे। उनके साथ चलने का अर्थ था रास्ते भर नागा की संस्कृतियों के बारे में परत-दर-परत ज्ञान अर्जित करना। यह हम दोनों, अर्थात डॉ ऋचा नेगी और मेरे लिए अत्यावश्यक भी था । हम बिलकुल अविद्या की अवस्था में थे। नागा के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे। मैं तो यही मानता था कि नागा एक जनजाति हैं जो नागालैंड में रहते हैं। डॉ लोंगकुमार से जानकारी मिली की नागा के अन्दर 30 से भी अधिक उप जातियां हैं और सभी का अपना स्वतंत्र इतिहास, संस्कार, संस्कृति है। सभी अपनी भाषा और पहचान बनाये रखते हैं । नागालैंड के अलावे नागा मणिपुर, असम, अरुणाचल, और तो और म्यांमार में भी रहते हैं। इन सभी विविधताओं के होते हुए भी वे सभी एक सूत्र में गुथें होते हैं वह सूत्र है नागा। 

खैर हमलोग कुछ देर में कोहिमा पहुँच गए थे।  कोहिमा पहुंचकर डिपार्टमेंट ऑफ आर्ट एवं कल्चर के कैंपस में पहुंचे। वहाँ की सीनियर डायरेक्टर एक आओ नागा थीं। बुजुर्ग और बहुत म्रदुल स्वभाव की महिला थीं वह। हमलोगों के जाते ही अपने कुर्सी से उठकर हमारा स्वागत की। हमने चाय पी और आगे का कार्यकर्म बनाने लगे। उस महिला अधिकारी ने यह भी सुझाव दिया: “अभी नवम्बर का अंतिम सप्ताह है। आपलोग नागालैंड में अपना कार्य हार्नबिल फेस्टिवल के डॉक्यूमेंटेशन से क्यों नहीं शुरू करते?”
 
मैंने कहा: “हम कुछ भी करने के लिए तैयार हैं। पहले यह जानकारी तो मिल जाए कि हार्नबिल फेस्टिवल है क्या?”
नागा उच्च अधिकारी बोली: 
“यह उत्सवों का उत्सव है। यह महा उत्सव है। सात वर्ष में ही इस फेस्टिवल ने नागालैंड को एक अलग पहचान दिया है। यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है। इस फेस्टिवल में सभी नागा और सभी आयु, लिंग, वर्ग, क्षेत्र के नागा किसी न किसी रूप में अवश्य हिस्सा लेते हैं। यह खोयी हुई संस्कृति को पुनः स्थापित करने का सामूहिक यत्न है। इसमें आप नागा जीवन, इतिहास, व्यवस्था के सभी पक्ष का दर्शन कर सकते हैं।”

मुझे और डॉ ऋचा को लगा कि यह सही अवसर है हमें इस अवसर का फायदा उठाना चाहिए। हमलोग अब डॉ लोंगकुमार के साथ होटल जेफु चले गए। वहाँ हम कुछ देर के लिए रुके। लगभग आधे घंटे में डॉ लोंगकुमार अपने दल के साथ फिर हमारे पास आ चुके थे । अब हमलोग उस स्थल जहाँ हार्नबिल मनाया जाता है के लिए चल पड़े। यह स्थल रम्य पहाड़ियों के बीच विशाल भूखण्ड पर अवस्थित है। देखते ही मन प्रमुदित होने लगता है । तीन दिशाओं से मानो पहाड़ इसके सौन्दर्य को बढ़ा रहे थे । आप मैदान में कहीं भी खड़े हो जाएँ तो आपको नृत्य करने का या गीत गाने का या उमंग में इतराने का मन करेगा । आपको लगेगा कि आप एक कलाकार हो और एक एम्फीथियेटर पर कार्यक्रम के लिए तैयार हैं। स्टेज सुंदर से सजा है, दर्शक से थिएटर भरा हुआ है। उत्साह का मौसम है। हम वहाँ से प्रसन्न होकर और भी जगह घूमने गए। फिर उस जगह गए जहाँ कभी वर्रिएर एलविन रहा करते थे। उस घर को हेरिटेज गेस्ट हाउस बना दिया गया है। डॉ लोंगकुमार बोल रहे थे: 
“इस बार आपलोग अगर हार्नबिल फेस्टिवल को कवर करने के लिए आते हैं तो आपलोगों का रहने का इंतजाम इसी जगह में करेगे। आपसे ही इसका विधिवत शुरुआत करेंगे ।"

फिर हम अपने होटल में आ गये। हमने तुरत डॉ चक्रवर्ती से बात किया कि 1 दिसम्बर से हार्नबिल फेस्टिवल होना है । हमलोग इसका डॉक्यूमेंट तैयार करेंगे। आपकी उपस्थिति से हमलोग और अधिक उत्साह के साथ काम कर सकेंगे। डॉ। चक्रवर्ती हमसे सहमत होते हुए बोले कि वे जरुर हमारे साथ नागालैंड आयेंगे यद्यपि उनके लिए 10 दिन रुकना संभव नही हो पायेगा। वे शायद दो या तीन दिन रह सकेंगे। हम इस निर्णय से अति प्रसन्न थे । देर रात तक हमने हार्नबिल फेस्टिवल में क्या करना है सभी चीज का विवरण बनाते हुए उसके लिए बजट भी तैयार कर लिए। सरकारी संस्थान में अकाउंट और प्रशासन का पचड़ा खतरनाक होता है। डॉ चक्रवर्ती यद्यपि दोनों विभाग के मातहत अधिकारी को यह निर्देश दे चुके थे कि कैलाश के प्रोजेक्ट पर जो भी आपत्ति है उसपर एक मीटिंग मेरे साथ करो और उसी समय उसका अंतिम स्वरुप देते हुए उसे फाइनल कर दो। इससे हमारा काम आसान हो चूका था। हलाकि कुछ दुश्मन भी अवश्य बन गये थे। 

हम दूसरे दिन भी अनेक स्थानों पर घूमते रहे। कोहिमा लॉ कॉलेज के प्रिंसिपल से भी मुलाकात हुई। वे नागा अस्मिता को पुनर्स्थापित करना चाहते थे। हमने उनसे कहा: 
“आप मुझे प्रत्येक नागा समुदाय से एक लड़का और एक लडकी अपने कॉलेज से दें। मैं हार्नबिल फेस्टिवल के दौरान उनकी सहायता से हरेक नागा समूह की संस्कृति, लोकाचार और विशेषकर यूथ डारमेट्री की संरचना, उनके क्रियाकलाप, उनका निर्माण आदि पर उस समाज के बुजुर्ग और अनुभवी महिला और पुरुष से पूछकर जानकारी इकत्र करेंगे। इतना ही नहीं हम चाहते हैं कि नागा परंपरागत कानून, समस्या का निदान, राजनितिक समावेश का भी प्रलेखन हो।”
लॉ कॉलेज के प्रिंसिपल महोदय ने हमें तुरत आश्वासन दिया कि तुरत के प्रभाव से वे सुयोग्य लडके और लड़कियों का चयन करना शुरू कर देंगे। सभी लोगों को चयनित कर देंगे जिससे कार्य में किसी तरह की असुविधा न हो । 

सभी काम सही दिशा में चल रहा था। समय की कमी हमारे लिए अवश्य चिंता का कारण था । फिर भी हम आश्वस्त थे कि लोगों और अधिकारीयों के सहयोग से इस कार्य को व्यवस्थित रूप से कर लेंगे । अगले दिन हमलोग दिल्ली आ गए। 

दिल्ली से पूरी तयारी के साथ पुनः हार्नबिल फेस्टिवल से एक दिन पहले वहाँ पहुँच गए। काम करना शुरू किया। हमें लग रहा था कि हम परियों के देश में पहुँच चके हैं। पहली बार अनुभव किया कि नागा लड़कियां इतनी सुन्दर, स्वस्थ्य और विलक्ष्ण होती हैं। वे बोल्ड भी और खुले विचारो की तो होती ही हैं। 

हेरिटेज विलेज में सुबह साढ़े आठ बजे से रात के आठ बजे तक उत्सव का माहौल होता था। सभी नागा उपजातियों का अपना अपना मोरुंग अर्थात डारमेट्री हाउस के मॉडल बने हुए थे। उसमे वर्नाकुलर आर्किटेक्चर के बेहतरीन उदहारण दिखाई देते थे। घर का अग्र भाग जानवरों के सिंग, हड्डी, पक्षियों के पंख, कौड़ी आदि से सुसज्जित थे। सभी घरों में कुछ लड़के और लड़कियां आगंतुकों को समझाने के लिए गाइड के रूप में खड़ी रहती थी। उसमे पेंटिंग, कपडे, चटाई, मिटटी के वर्तन, आभूषण, आखेट की सामग्री, कृषि यंत्र, युद्ध की समग्री, अस्त्र सभी बहुत ही करीने से सजाये गए थे। वाद्य और नृत्य के यंत्र तो थे ही । 

मुख्य स्थान पर एक-एक नागा समूह को कभी मूल आदिवासी नृत्य, कभी मल्लयुद्ध के लिए, कभी स्थानीय बिलुप्त होते क्रीडाओं के प्रदर्शन के लिए, कभी प्रेम गीत के लिए, कभी उत्सव विशेष में प्रयुक्त होने वाले गीतों के और नृत्यों के प्रदर्शन के लिए बुलाया जाता। वे बहुत ही सुचारू रूप से अपनी प्रस्तुति से लोगों का मनोरंजन करते थे। साथ ही साथ उनका एक प्रतिनिधि उन कलाओं के बारे में संक्षिप्त विवरण भी अंग्रेजी में प्रस्तुत करते रहते थे। यह उत्सव ज्ञान के आनंद का उत्सव था मेरे लिए। मैं नागा संसार में डूबकी मार-मार के निहाल हो रहा था। डॉ ऋचा नेगी भी कम उत्साह में नहीं थी।

कार्यक्रम में अनेक स्तर थे। नागा व्यंजन का भी प्रदर्शन था। अनेक तरह के बांस, जड़ी, बेर, कंद, शब्जी, मांस, लंका आदि के आचार थे। मांस के अनेक प्रकार भी थे। आप जो चाहें पैसे देकर चख सकते थे। खा सकते थे। सभी नागा वस्त्र, चादर, गहने, कृषि यंत्र, दाऊ (एक प्रकार का खंजर), तीर, धनुष, भाला, सजाने की समग्री का दुकान लगे हुए थे। लोग अनादित होकर देख रहे थे। खरीद भी रहे थे। सभी जगह हार्नबिल पक्षी का विशालकाय स्वरुप तैयार किया गया था। जहाँ कार्यक्रम हो रहे थे वहाँ नागा युद्ध कौशल का भी नमूना अलग अलग नागा प्रस्तुत कर रहे थे। किस तरह से नागा अपने पितरों का आह्वान करते हैं इसका सुन्दर दर्शन प्रस्तुत किया जा रहा था । सच कहूँ तो यह नागा संसार का विश्व ज्ञान का दर्शन था । शब्द से कैसे बखान करूँ! 

एक दिन सायं काल पता चला कि वस्त्रों और गहनों का  प्रदर्शन कैटवाक के द्वारा होगा। देखने लगा । नागा युवक और युवती परम्परागत परिधान और गहनों से सुसज्जित होकर इंद्र की परियों को और कामदेव को चिढ़ा रहे थे। लग रहा था स्वर्ग यही है। बीच-बीच में नागा युवती अपनी मधुर तान से वातावरण को पवित्र करती रहती थी। पवित्रता में प्रेम का तड़का लगा हुआ होता था । 

कुछ ही देर में मिस नागालैंड की प्रतियोगिता होना तय था। मन मयूर नाचने लगा। देखा लड़कियां सज धज के बहुत बड़े कतार में रंगमंच की ओर आ रही है। उधर ध्यानपूर्वक देखने लगा। डॉ ऋचा नेगी एक सफल फोटोग्राफर की तरह एक-एक दृश्य को अपने कैमरे में कैद कर रही थी। मैंने अपने आँखों और मस्तिस्क को ही कैमरा बना दिया था। एक एक मूवमेंट को कैद करने लगा। लड़कियों का चलना, बोलना, कपड़े पहनने का अंदाज, अपनी संस्कृति का ज्ञान, उस ज्ञान को अंग्रेजी में सम्प्रेषण सब कुछ अद्भुत था – न देखा था न ही देखा सका हूँ । कह दिया न, शब्द मौन हो गए हैं भाव को व्यक्त करने में। नागा लड़कियों के शरीर का बनाबट बेजोड़ होता है, शरीर का हरेक अंग का अनुपातिक विकास, उतार-चढाव, चमड़े में चमक, एक अलग तरह की गोराई, आंखे बेशक बहुत बड़ी बड़ी नही होती है, लेकिन उसमे रस का अनुपम प्रावधान होता है। उनके खुद के बने काजल के लगते ही वे मादक बन जाती हैं। वस्त्र उनके शरीर पर चढ़ते ही और अधिक खिल उठते हैं। नायिका को आनंद की अनुभूति होती है जब कोई उनके सौदर्य को निहारता है। लड़कों का आह करना मानो उनको द्विगुणित आनंद देता है। नागा लड़कियां और लड़के अपने कथ्य को अंग्रेजी में बहुत ही मुखर होकर व्यक्त करते हैं। प्रेम उनके लिए जीवन का आवश्यक हिस्सा है। वे प्रेम के प्रजातंत्र में विचरण करने वाले उन्मुक्त मानव और मानवी हैं। हाँ, उनके प्रेम में छल, कपट, अहंकार, दिझावा नहीं होता। उनका प्रेम खाती प्रेम होता है । 

कुछ नागा बुजुर्ग स्त्री और पुरुष अपने जड़ी, बूटी के परम्परागत ज्ञान का प्रदर्शन कर रहे थे। एक दम्पति यह दावा कर रहे थे कि एक विशेष जड़ी और पुष्प के प्रयोग से युवा और युवती जब तक न चाहे तब तक गर्भ धारण नही कर सकते। कैंसर जैसे महामारी के रोकथाम के लिए भी औषधि उपलब्ध थे। चावल की एक ऐसी वैरायटी का प्रदर्शन किया गया था जिसको चुडे की तरह पानी में भिंगोकर खाया जा सकता था। वहाँ यह भी पता चला कि नागा 300 से अधिक तरह के धान उगाते रहे हैं। कार्यक्रम को वैश्विक बनाने के लिए अन्य राज्यों और आदिवासी कलाकारों को भी बुलाया गया था। बीच बीच में उनका कार्यक्रम एक अलग तरह का लुत्फ़ दे रहा था। 

स्पष्ट कर दूँ कि कोहिमा लॉ कॉलेज के प्रिंसिपल ने अपने वादा के अनुरूप मेरे लिए 17 नागा युवक और 17 युवतियों का चयन कर दिया था। वे सभी बहुत उत्साहित होकर अपने अपने जाति के बुजुर्गों से परम्परागत कानून, नागा इतिहास, खान-पान, यूथ डारमेट्री के बारे में विस्तृत जानकारी इकत्रित कर रहे थे। प्रतिदिन सायंकाल वे मेरे पास आते अपने अनुभव बाटते और कुछ शंका हो तो उसका समाधान खोजते। उन्हें पैसे से अधिक इस बात की प्रसन्नता थी कि वे अपने समाज के बारे में विज्ञ हो रहे थे। उनका नागा होना चरितार्थ हो रहा था । जीवन की गति के साथ मैं भी गतिशील हो रहा था। लग रहा था इतना खुबसूरत समूह है नागाओं का इस भारत वर्ष में जिसके बारे में हम भारत के लोग अभी तक क्यों नहीं जानना चाहते हैं!
(क्रमशः) 

© डॉ कैलाश कुमार मिश्र 

नागा, नागालैंड और नागा अस्मिता : आंखन देखी (8) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/07/7_10.html 
#vss

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