Sunday, 3 July 2022

डॉ कैलाश कुमार मिश्र / नागा, नागालैंड और नागा अस्मिता (2) आंखन देखी

मुझे ऐसा लग रहा था कि मानो वह नागा युवक अपने खोए अतीत को येन केन प्रकारेन वापस लाना चाहता था । जेफू होटल के रूम में बैठे हुए अब हमलोंगो को ठंड का एहसास हो रहा था। सुलगती लकड़ी के पास आकर बैठ गए। बात का सिलसिला जारी था। नागालैंड का ठंड कठिन है। ड्राई कोल्ड है यहां। दिसम्बर जनवरी तो और खतरनाक है। अगर आप बाहर से हैं तो सावधान रहिए।  पछाड़ देगा। बहुत दिन तक बीमार रह सकते हैं। मांस मछली का भोजन, स्थानीय मिर्च जिसको लंका कहते हैं, का मसाला, आचार, सलाद आदि के रूप में सेवन, देशी हल्दी, धनिया, अदरक का सेवन आपको इससे बचने में सहायक हो सकता है। अभी बीस वर्षों से नागालैंड में लोगों ने संतरे की खेती बृहत रूप से करना शुरू किया है। संतरा और अनानास आपको यथेष्ठ में मिलेंगे। एक नागा लड़की थी। जिमी नागा परिवार से । अपूर्व सुंदरी थी वह। कोहिमा विधि महाविद्यालय से एल एल बी कर रही थी। पाक कला में निपुण थी। मेरे आगमन के पहले दिन ही मुझे मेरे मित्र श्री गौतम शर्मा जो कि उन दिनों गौहाटी के श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र के सचिव थे, ने मेरा परिचय इस नागा लड़की और अन्य 20 नागा लड़की और लड़कों से करवाया था। मुझे उन लोगों के माध्यम से सभी नागा जनजातियों के स्त्री और पुरुष बड़े बुजुर्गों से उनकी संस्कृति, लोक इतिहास, देवता, अनुष्ठान , रीति रिवाज, राजनीति, प्रकृति के साथ उनका तारतम्य समझना था। सभी युवक और युवती कुछ ही घंटों में मुझसे घुल मिल गए थे। उनको अपने बारे में, अपनी जनजाति के बारे में, अपनी परम्परा, लोक आख्यान के बारे में प्रथम बार मिलने का अवसर मेरे द्वारा दिया गया था। मैं उनके माध्यम से नागा कस्टमरी लॉ , राजनीति, लोक संस्कार को समझना चाहता था। मैं नागा आदिवासियों को बदलते परिवेश में जो उनमें परिवर्तन आए हैं उसके बारे में उन्ही लोगों से सुनना चाहता था, जानना चाहता था। सभी लोग उत्साहित थे। कह भी रहे थे : "मिश्र सर, आजतक हमलोग इसके बारे में काम करना तो दूर सोचे भी नही थे। आपने हमे अपने आपको समझने का अवसर दिया है। दस्तावेजीकरण का काम ईमानदारी से हो इस बात का ध्यान रखते हुए मैने हरेक नागा समुदाय में काम करने के लिए एक युवक और एक युवती का चयन किया था। 

कोहिमा में संतरे का रस बहुत सस्ता उपलब्ध था। शायद पांच रुपए में एक ग्लास। मैंने सुबह ही लगभग खाली पेट ही चार ग्लास संतरे का रस पी लिया। एक बंगाली मित्र इसपर बिफर पड़े। कहने लगे, "अरे डॉक्टर साहब, यह क्या कर रहे हैं आप! खाली पेट संतरे का रस पीना किडनी को बरबाद करने जैसा है। पहले कुछ खा लीजिए, फिर पीते रहिए, संतरे का रस जितना पीना है। मेरी समस्या यह थी की ना तो मैं सुअर का मांस खाता था, न गोमांस, न ही कुत्ते बिल्ली का। नागालैंड का मतलब था खाना में कुछ न कुछ मांस तो मिलेगा ही। फिर क्या करूं? रक्षा के लिए आगे आई यह खूबसूरत बनबाला जिमी नागा नायिका। बोली: "सर, आप बताओ क्या खाओगे?"
मैने कह दिया : "ठीक है, मुर्गा बना दो। चावल के साथ खा लूंगा। सलाद तो मिल ही जायेगा।"
वह लड़की बड़े उत्साह से खाना बनाने लगी। मुर्गा पका रही थी मेरे लिए। मुर्गे के मांस में देशी कच्ची हल्दी अदरख, बांस के पल्प, स्थानीय लंका, एवं जड़ी बूटी सिलबट पर पीसकर डाल रही थी। मांस के अंदर कुछ साग और सब्जी भी मिला रही थी। कुल मिलाकर कुछ देर बाद ही पकते भोजन की खुशबू अनुभव मैं करने लगा। अरोमा नाक को स्वर्गिक अनुभूति दे रहे थे। लग रहा था, "आज उत्तम देशी भोजन करूंगा। नागा चावल से पके भात पहले भी असम और मणिपुर में में खा चुका था अतः स्वाद को समझ सकता था। सभी सोच दिवास्वप्न की तरह तब भंग हो गए जब मेरी मित्र ऋचा नेगी मेरे पास हांफते आई और बिना रुके बोलने लगी: "अरे के के! यह क्या खाने जा रहे हो। तुमको मालूम है, वह लड़की जो खाना पका रही है, एक कलछुल से मुर्गा की हांडी को हिला रही है और उसी कलछुल से दूसरे चूल्हे पर पक रहे बिल्ली की मीट को हिला रही है।"

ऋचा नेगी ने इस तरह मेरे ख्वाब को बिखंडित कर दिया। इतना जरूर हुआ की मैं पुनः होटल जौफू आ गया। वहां कम  से कम चावल, दाल, सब्जी रोटी मिलने में कोई दिक्कत नही था। मन ही मन यह भी ठान लिया कि अब कभी भी नागालैंड में नॉन वेज नही खाऊंगा। 
बात पुनः उस नागा युवक की करता हूं। वह बात करते करते थक गया था। अपने लिए ड्राई रोस्टेड चिकन साथ में रखा था। निकाला और खाने लगा। देशी बीयर भी पीने लगा। मुझे इसपर किसी तरह का एतराज नहीं था। बल्कि इस बार वह एक ग्लास चावल का बीयर मेरे लिए भी निकाल चुके थे। मैंने अपने बैग से काजू निकलकर उनके साथ बीयर धीरे धीरे पीना शुरू किया। 

कुछ ही देर के बाद युवक फिर कहने लगा: "जानते हैं सर, नागा कोई शब्द नहीं है हमलेगों के लिए। नागा एक अनेक समूह के आदिवासियों का नामकरण है जिसका भ्रामक इतिहास है।  हमलोग अर्थात हमारे पूर्वज बहुत ही मस्त और उछल कूद करने वाले लोग थे। मस्ती में रहना, वीरता के गुण को प्रदर्शित करना उनके लक्षण थे। उनके इस व्यवहार से असम के लोगों ने उनको "नंगा आसे" कहना शुरू किया। अर्थात ये लोग नंग धरंग हैं, उपद्रवी हैं। फिर क्या था, पूरे समूह के लिए एक शब्द मिल गया। हमलोग नागा बन गए। आज हमलोग इस नामकरण को स्वीकार करते हैं और गर्वित अनुभव करते हैं। लेकिन नागा से जो नागालैंड बन गया वह ठीक नहीं हुआ सर।"

नागा युवक के साथ मैं भी मानो उसी के समुदाय का सदस्य बन गया। वह जो बोल रहा था, उसे मैं समझ पा रहा था।
(क्रमशः) 

© डॉ कैलाश कुमार मिश्र

नागा, नागालैंड और नागा अस्मिता (1) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/06/1_27.html 
#vss 

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