नागा मोरुंग: यूथ डारमेट्री – “अ” ~
नागाओं की बात कर रहे हैं। उनकी संस्कृति को उनके आईने से समझने का प्रयत्न कर रहे हैं । उनके जीवन के अनेक आयाम है जिसपर गौर करने की आवश्यकता है। ये स्वर्गिक हंसी बिखरनेवाले नागा युवक और युवतियां गतिशील लोग हैं। इनके जोश, उमंग और गति को जिसमे संस्कृति संरक्षण का ज़ज्बा इंच-इंच में व्यापत है आप हर क़दम पर अनुभव कर सकते हैं। शर्त एक है, आप इनके पास इनको समझने के लिए एक विद्यार्थी बनकर जाइए। ज्ञानी और सिखानेवाले बनकर जायेंगे तो फिर आपका अनुभव व्यर्थ चला जायेगा। लगता है मैंने आज तक इनसे जो कुछ भी सिखा उसको जस का तस कह दूं! कहने में भी तारतम्य स्थापित करना पड़ता है । अनेक कड़ियों को जोड़ना पड़ता है। विषय और वस्तु के हिसाब से कड़ियों को आगे पीछे स्थापित करना पड़ता है । चंचल मन को शांत करना पड़ता है । यह भी आवश्यक है कि एक-एक बात स्पष्ट होता चला जाए। जो भी हो अनुभव तो बाटूंगा ही। देखिये क्या और कहाँ तक चल पाता हूँ। चलिये, उनके युवा गृह या यूथ डारमेट्री का जिक्र करने का प्रयास करता हूँ । सभी नागा के युवा गृह होते हैं। सबकी अपनी विशेषता है। मैं नागा युवा गृहों का जिक्र करते हुए आओ नागा के युवा गृह पर विस्तार से चर्चा करने जा रहा हूँ। यह चर्चा में दो चरणों में करूंगा ।
नागा शब्द की उत्पत्ति के बारे में कई मत प्रचलित हैं। कुछ लोगों का मानना है कि नागा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द नग्न से हुई है। एक अन्य मत यह है कि नागा शब्द की उत्पत्ति नागा से हुई है जिसका अर्थ है साँप या साँपों का राजा। पौराणिक रूप से, राजकुमारी उलुपी एक नाग कन्या थी जो सांपों के राजा की बेटी थी। उलूपी का निवास आमतौर पर नागालैंड के दक्षिण-पश्चिम में पहचाना जाता है। चूंकि यह क्षेत्र नागा राज के अधीन था, इसलिए लोगों को नागा के नाम से जाना जाता है।
नागालैंड उत्तरपूर्व का सुदूर राज्य है, इसको अंतिम राज्य कह सकते हैं आप। यह प्रदेश उत्तर दिशा में अरुणाचल प्रदेश से, दक्षिण में मणिपुर से, पूर्व में म्यांमार से और पश्चिम में असम से घिरा हुआ है । सुंदर पहाड़ी और घाटियाँ इसे दुल्हन की तरह सौन्दर्यमयी बनाती हैं। पशु, पक्षी, जीव जंतु, पेड़ पौधों के साथ यहाँ के आदिवासी अपने जीवन और संस्कृति के ताल उत्पन्न करते हैं। नागाओं के बीस चिन्हित समुदाय और एक कछारी (कूकी समूह) के आदिवासी अथवा जनजाति या मूल निवासी कह दीजिये यहाँ रहते हैं। कछारी को नार्थ कछार हिल्स (दीमा हसाओ) ज़िले एवं असम के अन्य स्थान पर दीमासा के नाम से जाना जाता है । दीमासा कभी उत्तरपूर्व के बहुत बड़े भू-भाग पर राज्य करते थे। उनका व्यापक इतिहास, शौर्य गाथा, फोकलोर है। उनके राजा, रानी और शूरमाओं की कथा और गाथा सुनेगें तो आप रोमान्चित हुए बिना नहीं रह सकते। दीमापुर जो नागालैंड के प्रवेशद्वार पर अवस्थित एक शहर है जहाँ हवाईअड्डे भी है। आज भी दीमासा आदिवासी के प्रभुत्व का ऐतिहासिक प्रमाण यहाँ व्याप्त है ।
इतना तो स्पष्ट हो गया है कि नागा असम के लोगों का द्वारा सर्वप्रथम व्यवहारित एक जेनेरिक शब्द है जिसके संबोधन से 30 से भी अधिक नागा समूह के जनजातियों का बोध होता है । यद्यपि उनमे से प्रत्येक जनजाति अलग भाषा, संस्कृति, संस्कार, खान-पान, वस्त्र, प्रसाधन, श्रृंगार, गृह निर्माण के लिए जाने जाते हैं।
अगर नागालैंड तक ही अपने आप को सीमित करूँ तो, यहाँ 20 नागा और एक दीमासा कछारी रहते हैं। ये 20 नागा समूह निम्नलिखित हैं:
अंगामी (Angami)
आओ नागा ( Ao Naga)
छांग नागा (Chang Naga)
चीर्र नागा (Chirr Naga)
खिंआमनुनगम नागा (Khiamnungam Naga)
कोन्यक नागा (Konyak Naga)
लिआंगमई नागा (Liangmai Naga)
लोथा नागा (Lotha Naga)
मकुरी नागा (Makury Naga)
म्ज़ीएमे नागा (Mzieme Naga)
पोचुरी नागा (Pochury Naga)
फोम नागा (Phom Naga)
पौमई नागा (Poumai Naga )
रेन्गमा नागा (Rengma Naga)
रोंगमेई नागा (Rongmei Naga)
सांग्तम नागा (Sangtam Naga)
सूमी नागा अथवा सेमा नागा (Sumi Naga or Sema Naga)
टीखिर नागा (Tikhir Naga)
यिमचुनगर नागा (Yimchunger Naga)
ज़ेलियांग नागा (Zeliang Naga)
चूँकि हरेक नागा समुदाय की अपनी स्वतंत्र भाषा है अतः एक दूसरे समुदाय से वार्तालाप करने के लिए इन्होने एक लिंक या सूत्र भाषा का निर्माण किया है जिसको नगामी कहते हैं। जैसा कि नामकरण से स्पष्ट है नगामी, असमी और नागा समूह के शब्दावलियों के मेल से निर्मित भाषा है। इससे भी इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि नागा अनेक समूह हैं। सबकी बोली, वस्त्र विन्यास अलग हैं। इनके शरीर का गठन भिन्न-भिन्न हैं। भोजन का प्रतिमान अलग है। फिर भी इनको एक कह सकते हैं क्योंकि, ये एक भू-भाग, पारिस्थितिकी आदि साझा करते हैं। ये अपने आपको एक सूत्र में जोड़कर देखते हैं। आजकल ये आपस में वैवाहिक सम्बन्ध भी स्थापित करने लगे हैं। नागाओं की एक समानता यह है कि ये सभी मोंगोलोइड प्रजातीय समूह के हैं फिर भी भिन्नता स्पष्ट है। इनमे कोई बड़े आकार के हैं तो कोई छोटे आकार के, कुछ मध्यम कद काठी के भी हैं। कुछ समूह के नागा के चमड़े लाल हैं तो कुछ के हलके पीले हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो दुधिया रंग के हैं। कुछ के रंग तनिक दबे हुए भी हैं।
अगर सांस्कृतिक समानता की बात करें तो सभी नागाओं में विवाह से पूर्व कुंवारे लड़के और लड़कियों के लिए एक अलग सामुदायिक घर बनाने की परम्परा रही है। ये घर लड़के और लड़कियों के लिए अलग अलग होते हैं। लड़कों का लड़कियों के सामुदायिक घर में जाना और लड़कियों का लड़कों के सामुदायिक घर में प्रवेश वर्जित है। इन सामुदायिक घरों में एक प्रकार से उनके वैवाहिक जीवन से पूर्व का प्रशिक्षण केंद्र के समान है जहाँ उन्हें घर निर्माण की कला, कृषि उपकरण का सञ्चालन, रस्सी बनाने की कला, जंगली जानवरों का शिकार और उनसे बचने के तरीके, जड़ी बूटियों की पहचान, गीत, नृत्य, खेल, वस्त्र बुनने का प्रारम्भिक ज्ञान, भोजन निर्माण की प्रक्रिया, प्रकृति के साथ जीवन का संतुलन, लिंग और आयु के हिसाब से श्रम का वर्गीकरण, राजनैतिक और सामाजिक जीवन सञ्चालन के तौर तरीके का गहन प्रशिक्षण दिया जाता है । यहाँ उन्हें यह भी सिखाया जाता है है कि मृतक का संस्कार कैसे करना है। संस्कार के बाद उनका क्रिया कर्म का संचालन किस तरह से करना है और न जाने जीवन के और कितने गुण है जिन्हें वैवाहिक जीवन में आने से पूर्व ही लड़के और लड़कियों को समझा दिया जाता है।
नागा जनजातियों के साथ मिलना जुलना एक बाहरी मनुष्य को रचनाशीलता, रोमांच, और उत्साह के अलग संसार में ले जाता है। आप अचानक प्रकृति और संस्कृति के साहचर्य के सौन्दर्य और तालमेल में रमने लगते हैं। आपको लगने लगता है कि, जीना इसी का नाम है। जीवन का रस तो नागा स्त्री और पुरुष ही ले रहे हैं। नागाओ का, लकड़ी पर कार्य करना आपको भाने लगता है। सौन्दर्य प्रेमी नागा लड़कियां और लड़के, अपने शरीर को मानो कैनवास में बदल देते हों! उनको मालुम है कि किस तरह से अलग-अलग तरह के केश विन्यास, गोदने आदि से वे वे अपने सौन्दर्य को निखार सकते हैं। जब कोई लड़का किसी लड़की के सौन्दर्य की प्रशंसा कर दे तो, लड़की खिल उठती है। जब एक प्रेमिका अथवा पत्नी अथवा नायिका किसी पुरुष के देह और देह विन्यास को देखकर मुश्कुरा दे तो लड़का सातवें आसमान पर चला जाता है। ये सब अतिरेक नही है, नागा जीवन की सच्चाई है । एकबार वहाँ रहकर और उनके साथ जीवन को बिताकर तो देखिये! सौन्दर्य में मत्त प्रकृति को प्रेम करनेवाले नागा महिला और पुरुष बेजोड़ गायक और नर्तक होते हैं। जहाँ महिला मुद्रा और पैर के सञ्चालन में श्रृंगार मिलेगा वहीँ पुरुषो के नृत्य में उछल कूद, वीर रस का सञ्चालन, शौर्यगाथा, पराक्रम, का भान होगा। पुरुषो के गीत में आपको ललकार मिलेगी, अपनी परम्परा, अपने लोग, अपने पूर्वज, अपनी प्रकृति, अपने पराक्रम से प्यार मिलेगा। गीत और नृत्य करते भी नागा शूरवीर ही लगेंगे आपको। वे बहुत ही खूबसूरत किंतु लघु कुटीर का निर्माण फूस, घास, बांस, लकड़ी, बेंत आदि के माध्यम से करते हैं। फिर उसको जानवरो की हड्डी, खोपड़ी, चमड़े, पक्षियों के फर, बेहतरीन काष्ट शिल्प और प्राकृतिक घास, फूल और पत्तियों आदि से सजाते हैं। इन पर्ण कुटीर को देखकर अगर आप बेचैन हो गए तो मुझे दोषी न माने! उनके घर अत्यधिक संतुलित और साफ सुथड़े होते हैं। गंदगी कहीं से भी आप, देख भी नही सकते। वे अदभुत बर्नाकुलर या देशी आर्किटेक्ट होते हैं।
यहाँ जंगल बांस और बेंत से भरपूर हैं। जिसके प्रयोग से विशेष और कलात्मक टोकरी का निर्माण करते हैं। टोकरी बनाने की कला केवल नागा पुरुषों तक ही सीमित है। इसका सम्बन्ध भी श्रम के विभाजन से है । सभी नागा पुरुष विभाजित बांस की चटाई बुनना जानते हैं, जो घरों की दीवारों और फर्शों के निर्माण के लिए लकड़ी के अलावा मुख्य सामग्री है। धान सुखाने के लिए बारीक बुनी हुई चटाइयां तैयार करना बहुत महत्वपूर्ण कलात्मक कार्य है।
नागा और बांस एक दुसरे के पूरक हैं। एक कहावत है: “नागा बांस के पालने में जीवन शुरू करते हैं और बांस के ताबूत में उनका जीवन समाप्त हो जाता है"। स्प्लिट बांस से चटाई टोकरियां बनाते हैं। टोकरियाँ और अन्य बेंत के सामान की तैयारी में विभिन्न चरण शामिल हैं। यह जंगल से कच्चे माल के संग्रह में शुरू होता है, आवश्यक आकार के टुकड़े बनाने, टोकरी की बुनाई और अंत में परिष्कृत स्पर्श देता है। अब वे बच्चों के लिए अलग-अलग तरह की कुर्सी, सोफा, टेबल और पालने तैयार करते हैं। टोकरियों के अलावा, नागा बांस से चटाई, ढाल और विभिन्न प्रकार की टोपियाँ बनाते हैं। अति आकर्षक चुंग या पीने के प्याले बनाते हैं; पोकर वर्क के साथ बांस से बने मग भी बनते हैं। कभी-कभी चित्रित शैली के पुष्प पैटर्न या फुरसत में किए गए मानव आकृतियों के साथ डिजाइन किए जाते हैं । बांस का पाइप और लकड़ी का बेल्ट भी लोकप्रिय हो रहे हैं।
बेंत प्रचुर मात्रा में होने के कारण शिल्प में बड़े पैमाने पर इसका उपयोग किया जाता है। मोटे और बड़े टोकरियों के लिए बेंत का उपयोग किया जाता है। कटोरे, मग और अन्य चीजें सभी जनजातियों द्वारा बनायी जाती हैं। बेंत के हेलमेट और टोपी के फ्रेम कई हैं। नागाओं में बेंत वर्षारोधी टोपी भी बनाई जाती है। कुछ जनजातियों के पुरुष लाल रंग की बेंत की महीन पट्टियों और पीले ऑर्किड के तनों को कौड़ियों के साथ मिलाकर बहुत ही आकर्षक गले की पट्टियां, बाजूबंद और लेगिंग बुनते हैं। महीन बनावट वाली बेंत के धागों से बुनी गई चटाइयाँ सजावटी महत्व की होती हैं। बेंत का फर्नीचर भी काफी लोकप्रिय है। बेंत से हार और बाजूबंद भी बनाए जाते हैं। बेंत के आभूषण जैसे हेड बैंड, चूड़ियाँ, लेग-गार्ड आदि कारीगरी के अन्य मॉडल हैं।
नागा समाज समतावादी है और सदस्यों के बीच कोई आर्थिक भेदभाव मौजूद नहीं है। आर्थिक जीवन का एक सांप्रदायिक आधार है। गांव और अंतर-गांव स्तर पर यूथ डारमेट्री और आदिवासी परिषद महत्वपूर्ण संस्थान हैं और नेतृत्व बहुरूपी है। प्रथागत कानून या कस्टमरी कानून सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन को नियंत्रित करते हैं। सामाजिक एकीकरण का एक बहुत ही उच्च स्तर मौजूद है। कोई व्यावसायिक विविधीकरण नहीं; पूंजी निर्माण की कोई प्रवृत्ति नहीं है और अनुचित साधनों से धन अर्जन की कोई प्रवृत्ति नहीं है।
युवा डारमेट्री स्थानीय वास्तुकला में सौंदर्य संबंधी संवेदनशीलता ~
शादी से पहले पारंपरिक रूप से नागा लड़के और लड़कियां लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग बनाए गए युवा गृहों में काफी मूल्यवान समय बिताते हैं और जीवन में व्यावहारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और सुरक्षा प्रशिक्षण सीखते हैं।
मोरुंग: युवा डारमेट्री ~
परम्परागत नागा घर एक मंजिला संरचना है जिसमें फर्श के रूप में उपयोग की जाने वाली समतल मिट्टी होती है। इसकी लंबाई 10-20 मीटर और चौड़ाई 6-8 मीटर होती है। कुटीर की छत में उपयोग की जाने वाली सामग्री गाँव में व्यक्तिगत स्थिति से निर्धारित होती है, और ऐसी चार डिग्री हैं। पहली डिग्री की कुटीर में छप्पर वाली घास, दूसरी डिग्री की कुटीर में बजरा-बोर्ड और कीका (जो कई बार आकार और झोपड़ी पर स्थान में भिन्न होती है) के साथ छत की जा सकती है। प्रत्येक नागा कुटीर के आंतरिक भाग में तीन कम्पार्टमेंट होते हैं। सामने का कमरा (किलोह) घर की लंबाई का आधा है। यहाँ एक या दोनों दीवारों के साथ टोकरियों में धान जमा किया जाता है और कमरे में चावल निकालने करने के लिए एक बेंच (पाइकह) से सुसज्जित किया जाता है।
दूसरा कम्पार्टमेंट (mipu-bu) एक तख़्त विभाजन द्वारा अलग किया जाता है जिसमें एक द्वार होता है। यहाँ चूल्हा होता है (खाना पकाने के कंटेनरों के लिए एक स्टैंड बनाने के लिए जमीन में एम्बेडेड तीन पत्थरों से मिलकर)। यहाँ बिस्तर होते हैं। यह कमरा शयनकक्ष के रूप में भी व्यवहारित होता है । तीसरा कम्पार्टमेंट, एक मीटर या उससे अधिक गहराई में और घर की पूरी चौड़ाई को विस्तारित करने वाला, किनुत्से है, जहां देशी मदिरा का टब स्थित होता है। इस कमरे में घर का पिछला प्रवेश द्वार भी होता है। युवा गृह या मोरुंग में आमतौर पर पांच से अधिक व्यक्ति नहीं रहते हैं। लगभग हर गाँव में एक खुला स्थान होता है जो गाँव के सभी निवासियों के लिए एक मिलन स्थल और औपचारिक स्थान के रूप में कार्य करता है। इस क्षेत्र में पत्थर की चिनाई या लकड़ी से बने बैठने के लिए बैठक भी हो सकते हैं। इन बैठकों पर (जो अक्सर गांव की दीवारों या गांव में अन्य ऊंचे बिंदुओं पर चढ़ते थे और नौ मीटर तक ऊंचे हो सकते थे) मूल रूप से उन चौकीदारों के लिए पोस्ट के रूप में उपयोग किए जा सकते थे जिनका उद्देश्य आसन्न दुश्मन हमले की चेतावनी देना था।
(क्रमशः)
© डॉ कैलाश कुमार मिश्र
नागा, नागालैंड और नागा अस्मिता: आंखन देखी पार्ट (10)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/07/10.html
#vss
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