खेवड़ा - नमक की खान ~
रावलपिंडी में सभी निकट संबंधियों से मिलने तथा ऐतिहासिक व अन्य स्थलों का भ्रमण करने के पश्चात हमें कराची के लिए प्रस्थान करना था। रावलपिंडी से कराची जाने के लिए सड़क मार्ग को चुना गया ताकि रास्ते में विभिन्न शहरों में रहने वाले संबंधियों से भी मिल लें और रास्ते में पड़ने वाले ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण भी हो सके। वैसे भी रेल यात्रा के लिए सब ने मना किया। इसके लिए हमें फिर लाहौर वापस जाना था। हमें बताया गया कि लाहौर के रास्ते में रावलपिंडी से 140 किलोमीटर दूर मोटरवे से पूरब की दिशा में लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर खेवड़ा में नमक की प्रसिद्ध ऐतिहासिक काने हैं। भारत में हम महाराष्ट्र में कोयले की खानें देख चुके थे जो बहुत रोचक लगी थीं। अब नमक की खानें देखने की उत्सुकता उत्पन्न हुई। 140 किलोमीटर चलने के बाद हमारी कार मोटरवे से उतरकर एक पतली सी सड़क पर मुड़ गई। लगभग 40 मिनट इस सड़क पर चलने के बाद हम खेवड़ा पहुंच गए।
खेवड़ा पाकिस्तान के पंजाब राज्य में जनपद झेलम का शहर है। खेवड़ा खान के एक अधिकारी हमारे बहनोई के मित्र थे, जिन्होंने ने वहां के गेस्ट हाउस में हमको ठहरा दिया। इतने में हम सब फ्रेश हुए, और तब तक, कुछ खाने का सामान व चाय आ गई। नाश्ता करने के पश्चात हम खांन के मुख्य द्वार पर पहुंच गए। खान के अंदर जाने के लिए रेल की पटरियां बिछी हुई थी जिन पर चार व्यक्तियों के बैठने के लिए छोटे-छोटे 8 डब्बे एक इंजन के द्वारा खींचकर अंदर ले जाए जा रहे थे। हम रेलगाड़ी की प्रतीक्षा करने लगे। इस अवधि में हमने नमक की खान का इतिहास पढ़ा जो एक बड़े से बोर्ड पर लिखा हुआ था।
जिसके अनुसार ईसा मसीह से 326 वर्ष पूर्व जब सिकंदर और पोरस के युद्ध के समय सिकंदर ने झेलम मियांवाली क्षेत्र में पहुंचकर विश्राम किया तो, उस की फौज के घोड़े इस क्षेत्र की पहाड़ियों के पत्थरों को चाट रहे थे। यह देख कर उसके सिपाही चौंके और इस से उन्हें ज्ञात हुआ कि यह पहाड़ियां नमकीन हैं। इस प्रकार इन नमक की खानों की खोज किसी व्यक्ति के द्वारा नहीं बल्कि घोड़ों के द्वारा की गई। परंतु उसके पश्चात इस ओर अधिक ध्यान नहीं दिया गया।
1520 ईस्वी में खेवड़ा के स्थानीय लीडर एएसपी खान के द्वारा मुगल सम्राट अकबर को इसकी सूचना दी गई जिनके द्वारा इस नमक को निकालने का कार्य आरंभ कराया गया। 1809 ईस्वी में सिखों द्वारा इन माइंस को ले लिया गया। 1850 ईस्वी में अंग्रेज शासकों द्वारा इन पर कब्जा कर लिया गया। 1872 ईस्वी में माइनिंग इंजीनियर डॉक्टर रैथ ने इस क्षेत्र का विस्तृत सर्वे किया और वैज्ञानिक तरीके से नमक निकालना आरंभ किया और मुख्य सुरंग जो भूतल के स्तर पर है, का निर्माण कराया। तत्पश्चात नमक की खान के अंदर, सुरंग की डिजाइन व लेआउट बीसवीं शताब्दी के आरंभ में चौधरी नियाज़ अली खान ने तैयार किया। चौधरी नियाज़ अली ने 1980 में थोमसन इंजीनियरिंग कॉलेज रुड़की, जो अब आईआई टी रुड़की में परिवर्तित हो गया है, से सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी।
नमक के पहाड़ों की लंबाई 300 किलोमीटर, चौड़ाई 8 से 30 किलोमीटर और ऊंचाई 2200 से 4990 फिट तक है जिसमें नमक की खान का भूमिगत क्षेत्रफल 110 वर्ग किलोमीटर है। एक अनुमान के अनुसार 22 करोड़ टन नमक इन खानों में उपलब्ध है। इस समय 4.65 टन नमक प्रति वर्ष निकाला जाता है। इन कानों में विभिन्न प्रकार का नमक उपलब्ध है जैसे पारदर्शी सफेद, पिंक व लाल नमक।
(क्रमशः)
मंजर ज़ैदी
© Manjar Zaidi
भारत के वह ऐतिहासिक स्थल जो अब पाकिस्तान में हैं (11)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/07/11_17.html
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