Sunday, 3 July 2022

कनक तिवारी / हिन्दू, हिन्दुत्व, सेक्युलरिज़्म और मुसलमान (5)

धर्मनिरपेक्षता में कितने पेंच?

(1) 6 दिसम्बर 1948 को अनुच्छेद 25 की प्रस्तावना पर बहस करते प्रो0 के0टी0 शाह ने कुछ सवाल उठाए। उन्होंने कहाः ‘‘मैं चाहता हूं कि राज्य को इस बात का भी पूरा अधिकार हो कि वह ऐसी क्रियाओं की मनाही कर सके। जिन प्रथाओं के कारण धर्म का नाम बदनाम होता है। भौतिक समृद्धि और दौलत के संचय तथा वैभव के कारण ही कई स्थापित चर्चों का विनाश भी हुआ। कई स्थापित धर्मोें ने अपने प्रवर्तकों की शिक्षाओं और उनकी मौलिक भावनाओं के अनुसार आचरण करना ही बन्द कर दिया है। जनता की निगाह में, इन्होंने बड़े ही घृणित ढंग के व्यापार, लेनदेन और राजनैतिक हरकतों को चला रखा है। यदि हमारे राज्य का दावा है कि वह सेक्युलर या वह खुले मस्तिष्क का है, तो उसे ऐसे कार्यों के न सिर्फ विनियमन और प्रतिबंध का अधिकार प्राप्त होना चाहिए बल्कि उनकी पूरी मनाही करने का भी अधिकार उसे होना चाहिए।‘‘ 

(2) पंथनिरपेक्षता का आशय धर्म से राज्य का अलगाव है। एक पक्ष कहता है सत्ता को सभी मजहबों से बराबर दूरी रखना चाहिए। दूसरी व्याख्या है सत्ता को किसी भी धर्म से कोई सरोकार रखना नहीं चाहिए। दोनों ही हालातों में ‘सेक्युलरिज़्म‘ का अर्थ हुआ कि राज्य की किसी भी गतिविधि या क्रियाकलाप में कोई भी धर्म विशेष महत्व नहीं पा सकेगा। लचीला रुख कहता है राज्य के निर्णयों और क्रियाकलापों में सभी धर्मों के प्रति किया जाने वाला व्यवहार एक जैसा दिखाई दे। आशय यह यदि किसी धर्म का अनुयायी कोई अनुष्ठान करना चाहे, तो राज्य उसके लिए अनुकूल वातावरण मुहैया कराए। इससे भी नागरिकों के धर्म संबंधी मूल अधिकार सुरक्षित रहेंगे। 

(3) सेक्युलरिज़्म बनाम हिन्दुत्व ~ अकादेमिक और बौद्धिक बहसों के जरिए संविधान सभा में सेक्युलरिज़्म की अवधारणा को कुछ सदस्य राज्य को धर्मनिरपेक्ष घोषित करने के पक्ष में थे, लेकिन साथ साथ संविधान की उद्देषिका को ईश्वर के नाम पर करने के हिमायती भी। इनमें हरिविष्णु कामथ, गोविन्द मालवीय और शिब्बनलाल सक्सेना शामिल थे। ब्रजेश्वर प्रसाद ने सेक्युलर शब्द को संविधान की उद्देशिका में शामिल कराने का असफल प्रयास भी किया था। अम्बेडकर के नेतृत्व में कई सदस्य धर्म को राज्य से अलग रखे जाने के पक्षधर थे। के. टी. शाह तो खुल्लमखुल्ला लिखे जाने के पक्ष में थे कि राज्य का किसी भी धर्म, संप्रदाय अथवा विश्वास की अवधारणा से कोई लेना देना नहीं होगा। उनका कहना था भारत को एक सेक्युलर राज्य बनाना है तो न केवल सभी धार्मिक क्रियाकलापों को विनियमित बल्कि उनकी मनाही कर देना ही उचित होगा। धर्म और राज्य के अलगाव की संविधान की घोषणाओं में पारदर्शिता और स्पष्टता की पैरवी उन्होंने की थी। 

(4) दार्शनिक विचारक सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने धर्म के बदले राष्ट्रवाद को आधुनिक जीवन का आधार बताया। कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी धार्मिकता का संज्ञान लिए जाने से परहेज़ नहीं करते थे। उनका कहना था हिन्दुइज़्म में धार्मिकता और धार्मिक सहिष्णुता का समीकरण एक दूसरे पर निर्भर है। उनकी नज़र में सेक्युलरिज़्म की अमेरिकी संवैधानिक व्यवस्थाओं को लागू करना मुमकिन नहीं था। उसके बदले भारतीय नस्ल के सेक्युलरवाद की परिकल्पना को संविधान में रचने की ज़रूरत थी, भले ही राज्य का कोई धर्म नहीं होगा। सेक्युलर राज्य का अर्थ भारत में ईश्वरविहीन राज्य नहीं है। 

(5) मदनमोहन मालवीय, पुरुषोत्तम दास टंडन, सेठ गोविंददास जैसे हिन्दी के कट्टर समर्थक, कट्टर हिन्दू समर्थन का चोला भी ओढ़ चुके थे। उनके लिए सेक्युलरिज़्म धर्म की कोख से ही पैदा हो सकता था। सेक्युलरिज़्म की दूसरी और बुनियादी अवधारणा उन्नीसवीं सदी के महान चिन्तकों दयानन्द सरस्वती, विवेकानन्द, महात्मा गांधी और रवींद्रनाथ टैगोर वगैरह के कारण भी व्याप्त हुई। आज़ादी के बाद राजनीतिक सत्ता ने बौद्धिकता, सर्वसमावेशी व्याख्यात्मक उर्वरता के अभाव में उससे परहेज़ किया। विनायक दामोदर सावरकर, डा0 हेगड़ेवार, माधव सदाशिव गोलवलकर, श्यामाप्रसाद मुखर्जी जैसे कट्टर हिन्दू महासभाई नेताओं को पश्चिमी मूल के सेक्युलरिज़्म से चिढ़ थी। वे हिन्दुइज़्म, हिन्दुत्व, हिन्दू धर्म, सनातन धर्म, भारतीयता आदि शब्दों को गड्डमगड्ड करते रहे। उससे हिन्दूवादी सांप्रदायिकता ने यूरोपीय अथवा सर्वभाषिक नस्ल के सेक्युलरिज़्म का चेहरा धार्मिक भावना से ओतप्रोत होकर नोचा। जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई मे यूरोपीय नस्ल के सेक्युलरिज़्म का शासकीय तौर पर प्रचार किया गया। नेहरू को मोटे तौर पर कम्युनिस्ट विचारकों का समर्थन मिला। श्रीपाद अमृत डांगे, मानवेन्द्र नाथ राॅय, वी. के. कृष्णमेनन और ई. एम. एस. नम्बूदिरीपाद तथा सुभाषचंद्र बोस तक का नाम लिया जा सकता है। बौद्धिक वर्जिश प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिए अत्यंत वाक्पटु मंत्री मोहन कुमार मंगलम ने भी अदा की, जब सेक्युलरिज़्म को संविधान में 1977 में नामजद किया गया।
(जारी)

कनक तिवारी
© Kanak Tiwari

हिन्दू, हिन्दुत्व, सेक्युलरिज़्म और मुसलमान(4)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/06/4.html 
#vss

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