Friday, 8 July 2022

डॉ कैलाश कुमार मिश्र / नागा , नागालैंड और नागा अस्मिता: आंखन देखी (5)

जो हैफलॉंग में हुआ वह एक जादू था। उसपर अलग से लिखूंगा। प्रसंग की व्याख्या और उद्धरण अनिवार्य है  इसीलिए लिख दिया। अब आगे बढ़ते हैं। 

पिछले अनुभवों को आधार मानते हुए मैने नागा युवकों के दल का यह शर्त स्वीकार कर लिया कि मैं उनके साथ अपने आंखो में पट्टी बांध कर उनके द्वारा निर्धारित स्थान , जो गुप्त था , में चलूंगा। मैने यह भी स्पष्ट कर दिया कि ना तो मैं किसी भी सरकार - केंद्रीय अथवा राज्य का अधिकारी, निर्णायक हूं, ना ही पत्रकार या जननेता। अतः वे लोग मुझसे बहुत क्या तनिक भी राजनितिक लाभ की आशा न पाले। हां एक संस्कृति कर्मी , एक मानव विज्ञान और  एथनोग्राफी के लघु शोधार्थी के रूप में जो कुछ भी मुझसे हो सकेगा, उसे अवश्य करूंगा। मेरी वाणी सुनने के बाद उस प्रतिनिधि मण्डल के एक सदस्य बोले: 
"हमे कुछ नही चाहिए आपसे। हम लोग आपसे अपनी बात रखना चाहते हैं। आप सुन लीजिएगा बस। आप चलें, हमलोग के तरफ से कोई भी पूर्व निर्धारित शर्तें बिलकुल नहीं है। हमारे नेता आपसे मिलना चाहते हैं। यही है हमारा उद्देश्य।"

उपरोक्त कथन को सुनते ही मेरा विश्वास और बढ़ गया। कम से कम डर तो अब एकदम खत्म हो गया था। अब चलने की प्रक्रिया का वर्णन आवश्यक  है। मुझे कहा गया कि फलाने दिन मुझे एक खास जगह पर अकेले में मिलना है। आगे क्या करना है यह उनका काम था। 

खैर! निर्धारित स्थान पर मैं उनसे मिलने पहुंचा । वहाँ कुछ देर बाद एक महिला मिली । बहुत देर तक मुझे निहारती रही । फिर मेरे पास आई और एक नये जगह जाने के लिए बोल कर चली गयी । अब मैं थोड़ा घबराया: “यह क्या हो रहा है?”
लेकिन अब अपने निर्णय से पीछे भी नहीं हट सकता था ! क्या करता? हिम्मत करके नए गंतव्य के लिए चल पड़ा। उस जगह कोई नहीं था । कुछ देर खड़ा रहा। इन्तजार करता  रहा । अब एक युवा आया । उसके साथ थोड़ी दुरी पर दूसरा युवा था । वह मुझे इशारे से मोटर साइकिल तक आने के लिये बोला । मै पहुँच गया । एक व्यक्ति मोटर साइकिल स्टार्ट करके उसपर पहले से ही सवार था । उसने मुझे बैठने का निर्देश दिया । मै पूरा रोबोट बन चूका था । बैठ गया । वह मोटर साइकिल बहुत तेजी से चलाने लगा । करीब 20 मिनट में हमलोग एक घर पहुँच गए। झाड़ियों से भरा घर। वहाँ मेरे अभिवादन के लिए तीन लोग बैठे थे । सभी के मुँह पर मास्क लगे हुए थे । उन्होंने मुझे समझाना शुरू किया: 
“सर, करीब 3 घंटे लगेंगे । घबराने की जरुरत नहीं है । आपको भी मास्क लगाना होगा । जहाँ कहीं भी किसी चीज की जरुरत हो, बता दीजियेगा। आज रात हमलोग वहीं गुजारेंगे और कल सुबह चले आयेंगे ।”

मैंने इशारे से ही अपनी सहमति दे दिया । इतने में भीतर से एक महिला आई और उसने मेरे आँखों पर पट्टी लगा दी । अब मैं कुछ भी नहीं देख सकता था । घबराहट में तो अवश्य आ गया था । अब हम सभी को एक एक बांस के बर्तन में चावल का स्थानीय बियर दिया गया । मैंने उसे पी लेना ही श्रेयस्कर समझा । बियर के साथ ऑमलेट भी था । बहुत बुरा स्वाद नहीं था । 

करीब 10 मिनट के बाद हमलोगों को एक जीप में बिठाकर वे लोग चल पड़े । रास्ता उबड़-खाबड़ था । हम चलते रहे । रास्ते में दो जगह आवश्यक कार्य से रुके और फिर चल पड़े। चलते-चलते करीब तीन घंटे के बाद गंतव्य पर पहुँच गए । वहाँ प्रवेश करते ही मेरे आँखों से पट्टी खोल दिया गया । अब मैं उनलोगों को देख सकता था । सभी लोग कलात्मक नागा चादर ओढ़े हुए थे । वहाँ एक टिपिकल नागा घर में कुछ लोग पहले से बैठे अग्नि का आनंद ले रहे थे । कुछ गोस्त, शायद बैल और सूअर का चूल्हे के ऊपर टंगे हुए थे । उनको चूल्हे के अग्नि का तपिश मिल रहा था । अग्नि और मांस के पकने के सुगंध से घर कुछ अलग ही अरोमा उत्पन्न कर रहा था । चार पुरुष और तीन महिलाये बैठी थी वहाँ । घर पर चटाई बिछी थी । सफाई में तनिक भी कोताही नहीं थी । घर के एक कोने में पकी हुई लौकी के गुदे निकालकर उसमे देशी बियर भरे थे। नागा लोग जन्मजात कलाप्रेमी और कलाकार होते हैं। इसका प्रमाण यहाँ भी मिल रहा था । एक दो मिटटी के घड़े भी थे। मिटटी के घड़ों को और लौकी के वर्तन को बाहर से बेंत के स्कीन से कलात्मक ढंग से बुनकर सुसज्जित किया गया था। घर के प्रवेश द्वार पर दोनों तरफ जानवरों के सिंग लगे थे । लकड़ी का बना एक अति विशाल और बड़ा लोग ड्रम था । इसके बीच में गड्ढा बना दिया गया था । बाहर से अनेक कलात्मक डिजाइन बने थे । लोग ड्रम के पास लकड़ी और बेंत और बांस रखे थे जिनको एक धुन में पीटने से एक स्वर लहरी का निर्माण होता था । द्वार पर पड़े दोनों लकड़ी में गजब के काम अर्थात नक्काशी दिख रहे थे । जानवरों की हड्डियों, सिंग और दांत से अनेक कलाकृतियों का निर्माण अगर सीखना चाहते हैं तो नागा जनजाति से सिख सकते हैं आप । 

अब उनलोगों ने मुझे एक लकड़ी पर सम्मान के साथ बिठाया । फिर सभी लोगो से परिचय कराया । एकबार देशी चावल का देशी बियर हम सभी ने ग्रहण किया । कुछ सलाद बने हुए थे। नागा लोग चावल के शौक़ीन होते हैं। चावल के अनेक स्थानीय वैरायटी मिलते हैं, हलांकि आजकल उन स्थानीय नस्लों का अंत हो रहा है । इनके चावल पुष्टिकारक और स्वादिष्ट भी होते हैं। ये लोग मसाले और तेल कम प्रयोग करते हैं। स्थानीय जड़ी बूटी, हल्दी, मिर्च आदि का प्रयोग होता है। बांस का जड़ और पल्प भी खाते हैं। मांस में सामान्यतया हरी सब्जी डालते हैं । ये एक साथ खाने में विश्वास करते हैं। अतिथियों का सर्वाधिक सम्मान करते हैं। बहुत ही मस्त मलंग होते हैं। इनका समाज फ्री समाज है। लड़के और लड़कियों को बहुत आजादी है । वे लोग हमलोगों के समान अकारण बंधन में नहीं रहते। प्रेम और कला इनके जीवन का मुख्य उदेश्य है। हरेक नागा अव्वल दर्जे का शिकारी होता है। महिलायें खाना बनाने में दक्ष होती हैं। उनको पुरुष का भरपूर सहयोग मिलता है । 

अरे मैं कहाँ भटक गया ! परिचय के बाद वे लोग अनेक तरह के बात करने लगे। उसमे एक व्यक्ति दिल्ली यूनिवर्सिटी का छात्र रह चूका था। उसने बहुत अनुभव बताए। यह व्यथा भी बाँटा कि किस तरह से नागा एवं अन्य उत्तरपूर्व के छात्रों का दिल्ली में अपमान होता है । 

फिर उन्होंने मेरे बारे में मुझे बताने के लिए कहा। मैंने बताया : 
“मै भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के लिए कार्य कर रहा हूँ । हमारा कार्य उत्तरपूर्व भारत के सांस्कृतिक वैभव का दस्तावेजीकरण करना है। उनके बारे में  लोगो को जानकारी देना है । परम्परागत कानून को समझना है । किस तरह से छोटी छोटी समस्याओ का आप निराकरण करते हैं, वह समझना है। आपके लिए संस्कृति क्या है वह समझना है । मैं आप लोगो के फोकलोर, भाव, भूगोल, यात्रा वृतांत, देवी देवता, अनुष्ठान, कृषि प्रणाली, स्थानीय चिकित्सा, देशी जड़ी बूटियों का ज्ञान सभी कुछ सीखना चाहता हूँ।” 

उनका मुखिया बोलने लगा: 
“हमे आपके बारे में सभी जानकारी है। आप अच्छा काम कर रहे हैं। हमलोग आपकी मदद करना चाहते हैं। आप जहाँ काम करना चाहें अवश्य करें। किसी भी तरह की समस्या हो तो हमारे लोगों से बात करें, हमलोग उसका निराकरण करेंगे।”
मैंने विनम्रता से उनके कथन का स्वागत किया। फिर मैंने हिम्मत करके कहा: “आप जब जानते हैं कि मैं केवल एक संस्कृति कर्मी हूँ तो आप यह भी जानते होंगे कि मैं आपके आन्दोलन के लिए कुछ भी नही कर सकता? फिर भी मुझे यहाँ बुलाने का क्या कारण है ?”
उनका मुखिया बोलने लगा: 
“देखिये, आप जो लिखेंगे और बोलेंगे वह सही होगा क्योंकि आप ईमानदारी से अपना कार्य कर रहे हैं।”
नागा नेता की वाणी सुनकर मैं अति प्रसन्न हुआ । लगा, कोई तो है जो समझ पा रहा है। 

अब मन का डर भाग चुका था । अब मैं अपने आपको उन नागा नेताओं के बहुत करीब पा रहा था। उनका अपनत्व पाकर पुलकित था।  
(क्रमशः) 

© डॉ कैलाश कुमार मिश्र 

नागा , नागालैंड और नागा अस्मिता: आंखन देखी (4) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/07/4.html 
#vss

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