मोहनजोदाड़ो ~
प्रातः 8:00 बजे हम सब तीन कारों में बैठकर सक्खर से मोहनजोदाड़ो के लिए रवाना हो गए। सक्खर से मोहनजोदाड़ो 115 किलोमीटर है। सड़क अच्छी होने के कारण हम 2 घंटे से भी कम समय में वहां पहुंच गए। मोहनजोदाड़ो के महत्व को देखते हुए पर्यटकों की सुविधा के लिए वहां पर हवाई अड्डा भी बनाया गया है। मोहनजोदाड़ो पाकिस्तान में सिंध प्रांत के जिला लड़काना में स्थित है। मोहनजोदाड़ो का अर्थ है, मरे हुए का टीला। हमें वहां टीला और अन्य अवशेष देखने को मिले। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के विषय में बचपन में स्कूल की पुस्तकों में पढ़ा था यहां उनके अवशेष देख कर मन में और अधिक जानकारी प्राप्त करने की जिझासा उत्पन्न हूई। जो जानकारी वहां प्राप्त हुई उसके अनुसार मोहनजोदाड़ो प्राचीन इंडस वैली सभ्यता के बड़े शहरों में से एक है। मानव जाति की जानी-मानी सभ्यताओं में प्राचीन समय में मोहनजोदाड़ो और हड़प्पा जुड़वां शहर माने जाते थे। ईसा मसीह से लगभग 2500 वर्ष पूर्व यह रहस्यमय संस्कृति उभरी। सिंधु नदी के दाएं किनारे पर 2 किलोमीटर की दूरी पर 250 हेक्टेयर भूमि पर यह आवाद हुए और नदी के किनारे उपजाऊ जमीनों का उन्होंने खूब लाभ उठाया और पास ही के मैसोपोटेनिया सभ्यता से व्यापार किया। इस शहर में बहुत अधिक उन्नति व प्रगति हुई थी। सिविल इंजीनियरिंग के कार्य और शहरी प्लानिंग बहुत सुंदर ढंग से की गई थी। शहर के पानी के निकासी की उचित व्यवस्था थी। एक सुनहरा युग देखने के बाद यह शहर ईसा मसीह से लगभग 1900 वर्ष पूर्व समय की रेत के नीचे दफन हो गया जो इस समय टीले और खंडहर के रूप में है। इन 600 वर्षों में यह नदी की बाढ़ के कारण 7 बार तबाह हुआ और इसका पुनर्निर्माण किया गया। सर्वप्रथम डी आर हंडारकर 1911- 12 में इस ओर आकर्षित हुए। इसके पश्चात 1921 में भारतीय पुरातत्व विभाग के सुपरिंटेंडेंट आर्कोलॉजिस्त आर के बनर्जी ने इस रहस्यमय शहर को उजागर करने के लिए खुदाई का कार्य आरंभ कराया जो 1922 से 1931 तक चलता रहा। खुदाई में स्पष्ट हुआ कि मोहनजो दाड़ो शहर दो भागों में बटा था। एक सिटडैल और दूसरा निचला नगर । पश्चिम की ओर एक टीले पर लगभग 12 मीटर की ऊंचाई पर दुर्ग बना था। कई बड़ी-बड़ी इमारतों के ढांचे यह दर्शाते हैं कि यह क्षेत्र सामाजिक, धार्मिक एवं अन्य महत्वपूर्ण गतिविधियों के आयोजनों के लिए प्रयोग किया जाता होगा। इस क्षेत्र में एक स्टूप भी बना हुआ था। दुर्ग के दक्षिण क्षेत्र में लोगों के इकट्ठा होने के लिए एक असेंबली हॉल भी था। ग्रेट बाथ भी बना था। जिसमें नीचे जाने के लिए सीढ़ियां थीं। इसे शासक नहाने के लिए प्रयोग करते थे। ग्रेट बाथ के बगल में एक बड़ी इमारत थी जो गरेनरी कहलाती थी। विशाल लकड़ी के ढांचे से अनाज के गोदाम भी बनाए गए थे। शहर का निचला हिस्सा निचला नगर था जिसका क्षेत्रफल अधिक था। अधिकांश लोग इसी में रहते थे। यहां पर छोटे-छोटे घर बनाए गए थे जिनमें अलग-अलग कमरे थे। उनके दरवाजे सड़क की ओर खुलते थे। शहर की विशेषता थी, अच्छे ढंग से की गई सुनियोजित जल निकासी व्यवस्था। घरों का गंदा पानी शहर की सड़कों से गटर में जाकर शहर की सीमा से दूर नदी में चला जाता था। जबकि आज के समय में इतनी उन्नति हो जाने के पश्चात भी शहरों में जल निकासी की समस्या बनी रहती है।
खुदाई में 700 से अधिक निजी एवं सार्वजनिक कुएं मिले। खुदाई में बहुत सी वस्तुएं मिली जिनमें बैठे और खड़े आकार के पुतले, तांबे और पत्त्थर के औज़ार, नक्काशी की गई मोहरें, तराजू और बाट, सोने और चीनी मिट्टी के गहने और बच्चों के खिलौने। कुछ सिद्धांत कहते हैं कि आर्यन इस जमीन पर रहते थे और उन्होंने ही मोहनजोदाड़ो और हड़प्पा के शहर बसाए थे। ब्रिटिश खोजकर्ता डेविड डेवनपोर्ट ने इस क्षेत्र का अध्ययन किया और माना कि यह शहर किसी विपत्ति पूर्ण घटना, जिसमें कोई बम धमाका भी हो सकता है, मैं नष्ट हो गया होगा। दूसरे सिद्धांत दर्शाते हैं कि पूर्ण सभ्यता सिंधु नदी में बाढ़ आने से तबाह हो गई होगी अथवा यह भी हो सकता है कि इंडस नदी ने अपना रुख बदल दिया हो और पानी की त्रासदी के कारण लोग यहां से चले गए हो और उसके कई दशकों के पश्चात मकान गिरने लगे हो और पूरा शहर मिट्टी और रेत में दब गया हो। बहरहाल कारण कोई भी हो परंतु एक विशालकाय शहर एक सुनहरा युग देखने के बाद रेत और मिट्टी के नीचे दफन हो गया। अब इस शहर के अवशेष हमें महान सभ्यता की कहानी सुनाते हैं।
(जारी)
मंजर ज़ैदी
(Manjar Zaidi)
भारत के वह ऐतिहासिक स्थल जो अब पाकिस्तान में हैं (17)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/07/17.html
#vss
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