Tuesday, 5 July 2022

डॉ कैलाश कुमार मिश्र / नागा , नागालैंड और नागा अस्मिता: आंखन देखी (3)



नागा युवक के अनुसार नागा समुदाय के अंतर्गत यों तो चालीस से भी अधिक जनजातियां आती हैं परंतु उनमें से 19
 प्रमुख हैं जिनका नाम है:
1. अंगामी नागा 
2. आओ नागा 
3. चांग नागा 
4. कोन्याक नागा 
5. मरम नागा 
6. संगटम नागा 
7. तुत्सा नागा 
8. सुमी नागा 
9. वांचू नागा 
10. फोम नागा 
11. पोचुरी नागा 
12. संगमा नागा 
13. सूमी नागा 
14. चखेसंग नागा 
16. लोथा नागा 
17. रियांग नागा 
18. काबूइ नागा 
19. जिमी नागा 

एक दिलचस्प बात यह है कि इनमे से सभी अलग अलग भाषा बोलते हैं। एक आदिवासी की भाषा दूसरे नही समझ पाते। कोई मानवविज्ञानी आज से करीब 70 साल पहले नागा समाज पर कार्य कर रहे थे। उन्होंने एक एक नागा उपसमूह से मिर्ची का नाम बताने के लिए कहा। 16 समुदाय के प्रतिनिधियों ने मिर्च के  16 नाम बताए जिस नाम दुसरे समुदाय के लोग परिचित नहीं थे।इस समस्या को दूर करने के लिए और नागा समुदाय के विभिन्न उपसमुदाय आपस में कैसे वार्तालाप करें इस बात को ध्यान में रखते हुए असमी भाषा को केंद्रबिंदु मानते हुए असमी और अनेक नागा समुदाय की भाषा को मिलाकर एक कम्युनिकेशन भाषा का निर्माण किया गया जो बाजार, व्यापार, दैनिक जीवन का हिस्सा बन गया। इस भाषा का नाम नगामी रखा गया। नागामी के रूप में इस तरह से नागा जनजातियों को एक लिंक भाषा मिल गया।

बात कर ही रहे थे कि कहीं से एक कुत्ते का रोना कान तक सुनाई दिया। रोने में अकुलाहट और बंधन का स्पष्ट अनुभव महसूस कर रहा था मैं। मैने उस युवक से पूछा : "यह कुत्ता ऐसा क्यों रो रहा है?"
युवक एक मिनिट के लिए चुप हो गया। फिर कुटिल मुस्कान के साथ बोला : "इसको छड़ी से पीटा जा रहा है। इसीलिए।"
मैंने पूछा: " क्यों?"
युवक बोला: "इसीलिए की इसका शिकार किया जा रहा है।  इसको भात खिला दिया गया है। फिर इसको बांधकर उलटा लटका दिया गया है। अब इसको छड़ी से पीटा जा रहा है। कुछ देर के बाद इसको अग्नि में पकाया जायेगा। पूरे शरीर को रोस्ट कर दिया जाएगा। और तब इसके आंत निकालकर उसको पहले खाया जायेगा। आंत में जो भात भरा है, वह भुने होने के कारण अलग ही स्वादिष्ट होगा। हमलोग मांस को अपने मुख्य घर के मध्य टांग देते हैं। वहां लकड़ी जलती रहती है। और उस धुएं और अग्नि के तापीस से मांस सौंधा होते रहता है। सड़ता अथवा गलता नहीं है। खाना बनाते समय जब जितना चाहिए, निकाल लेते हैं।"

युवक जब यह विवरण दे रहा था तो मेरा चंचल मन मणिपुर स्थित एक काबुई नागा गांव का स्मरण करने लगा। मणिपुर के एक काबूई नागा गांव गया हुआ था। दरअसल एक नागा रिसर्च स्कॉलर मेरे लिए रिसर्च असिस्टेंट का कार्य कर रही थी। मैं उस नागा गांव का बेसलाइन सर्वे कर रहा था। शोध और सर्वे के कार्य में प्रगति को देखने और निरक्षण के लिए मैं वहां पहुंचा। मेरी रिसर्च असिस्टेंट उसी गांव से थी और नागा थी। दिन भर काम करने के बाद वह मुझे अपने घर जाने के लिए बहुत ही आत्मीयता से कहने लगी। मैं उसके निवेदन का सम्मान करते हुए उसके घर की ओर चल पड़ा। उसके घर पर उसके माता पिता के साथ - साथ पितामह भी थे। पितामह लगभग 85 साल के थे। अपने जमाने के स्नातक थे। भारत सरकार में किसी पद पर कार्यरत थे। बहुत दिनों तक पटना में रहकर नौकरी किए थे। मेरे नाम के साथ मिश्र देखते ही बोले : "आप मैथिल ब्राह्मण हैं ना!" 
मैं बोला : "जी"। 

वे इशारे से अपनी पोती को यह निर्देश दे रहे थे कि मुख्य घर में अगरबत्ती और धूप जला दिया जाए। देखते ही देखते अगरबत्ती और धूप जला दिया गया। मुझे यद्यपि अगरबत्ती से समस्या है। मैं खांसने लगा। और निवेदन किया कि धूप और अगरबत्ती को बुझा दिया जाए। मेरे निवेदन पर धूप और अगरबत्ती को बुझा दिया गया। नागा बुजुर्ग कहने लगे: "मिश्रा साहब आप लोग ब्राह्मण हैं। मांस मदिरा नही खाते हैं। हमारे नागा में कोई भी भोजन बिना मांस के नही होता। हमलोग एकबार बहुत मांस अपने घर के चूल्हे के ऊपर रख देते हैं। अग्नि के धुएं और तपिश से वह मांस पकता रहता है और सौँधा होते रहता है। अब जब जितना चाहिए निकाल लेते हैं। अभी पांच दिन से बछड़े का मांस रखा हुआ है। मुझे लगा आप इस गंध को नही बर्दाश्त कर पायेंगे।"
मैंने विनम्रता पूर्वक उत्तर दिया: "कोई बात नही। यद्यपि मैं गोमांस और कुत्ते का मांस नही खाता, तथापि मुझे घृणा नहीं है। मैं आपके साथ सहज अनुभव कर रहा हूं। 

पुनः मणिपुर से नागालैंड आता हूं और अपने नागा युवक मित्र के साथ आपको वार्ता की कड़ी से जोड़ता हूं। मैने नागा युवक से पूछा: " आप बताएं कि आपलोग कुत्ते में मांस में क्या विशेषता ढूंढते हैं?"
युवक बोलने लगे: "यह मांस स्वाद में बहुत उत्कृष्ट नही होता लेकिन खाने के बाद युवकों में जोश और स्फूर्ति भर देता है। मैने बहुत दिनो तक कुत्ते का मांस खाना छोड़ दिया था। संयोग से मेरी प्रेमिका जो बाद में मेरी पत्नी और मेरे दो बच्चो की मां बनी, एक दिन मुझसे बोली: "मैं तुम्हारे पुरुषार्थ की परीक्षा लेना चाहती हूं। मेरी इच्छा है कि तुम एक कुत्ते को पकड़ कर उसका मांस अपने हाथों तैयार करो। मुझे पाने के लिए, मेरा प्रेम और सब कुछ पाने के लिए तुम्हे मेरा शर्त स्वीकार करना ही होगा।"

इतना कहने के बाद नागा युवक कुछ देर के लिए रुका। मैं आश्चर्यचकित होकर इस युवक को सुनता रहा। आगे भी सुनने का कौतूहल तो था ही। युवक रुका। तनिक रोमांच में आया फिर बोल पड़ा। कहने लगा: "फिर क्या था। मैने इस चैलेंज को स्वीकार कर लिया। एक बलिष्ट कुत्ते को मारा और उसका मांस तैयार किया। मेरी प्रेमिका प्रफुल्लित हो गई। उसका सौंदर्य और बढ़ गया। वह मादक हो गई। हमने जमके भोजन किया। भोजन का रोमांच इतना सुंदर हो सकता है, इसका अनुभव किया। प्रेम विवाह में बदल गया।"

युवक को सुनने के बाद लगा: "उचित ही तो कह रहा है। भोजन भी संस्कृति और मान्यताओं पर निर्भर है। हमे बिना सांस्कृतिक विशिष्ठता को समझे किसी के भोजन और अन्य प्रतिमानों एवं अवधारणाओं पर बोलने का कोई भी अधिकार नही है। 
(क्रमशः) 

© डॉ कैलाश कुमार मिश्र

नागा , नागालैंड और नागा अस्मिता: आंखन देखी (2) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/07/2_82.html
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