अब साढ़े चार बज गये थे । पता नही क्यों अब मेरे मन का डर भी पूरी तरह से मिट गया था । मुझमे कुछ नया समझने और जानने का उत्स प्रबल हो गया था । वे सभी नागा युवक और युवती मेरे मित्र बन चुके थे । कहते हैं ना, मित्रता अगर दिल नही मिले तो एक परिवेश में रहकर भी जीवन पर्यन्त नही बनती और अगर दिल, आपके विचार मेल खा जाये तो रेलगाड़ी में चलते मुसाफ़िर के साथ चन्द घंटो के यात्रा के दौरान हो जाते हैं। पता नहीं क्यों मुझे ऐसा आभास होने लगा कि मैं भी उन्ही जनजातीय समाज का हिस्सा हूँ । शायद एथनोग्राफी और मानव विज्ञान में जो मुझे प्रारम्भिक प्रशिक्षण मिला था यह उसी का प्रभाव था ! चाहे जो भी हो कुछ तो जरुर था ।
छांग पीने के बाद अंडरग्राउंड मुखिया बोलना शुरू किया :
“सर, इस देश में अपने हक़ के लिए मांग करना क्या जुर्म है?”
मैंने उत्तर दिया:
“बिलकुल नहीं। भारत एक प्रजातान्त्रिक देश है। इसमें हरेक नागरिक और समुदाय को अपनी बात कहने का अधिकार मिला है । लोग अपनी बात धरना, जुलुस, एवं अन्य माध्यमो से करते आ रहे हैं। ये सभी प्रजातान्त्रिक प्रक्रियाये हैं।"
नागा मुखिया बोल पड़ा:
“हम यही कर रहे हैं। आपने मिज़ो की जनसंख्या के आधार पर मिज़ोरम बना दिया । फिर जिन क्षेत्रों में नागा जनजातियों की जनसंख्या सर्वाधिक है उनको नागालैंड के साथ जोड़ने में क्या दिक्कत है ? हमारे मणिपुर के मेतेई समझते हैं ऐसा होने से उनको दिक्कत होगा। अरे बाबा कोई दिक्कत नहीं होगा । हमलोग तो सैकड़ों साल से एक साथ रहते आये हैं भाई भाई की तरह । यहाँ हिल और वैली वालो के साथ चोला दामन का रिश्ता रहा है । हमलोग अर्थात नागा जनजाति हिल्स अर्थात पहाड़ों पर रहते हैं और मेतै समतल में । जब हम समतल में जाते हैं तो उनके साथ वार्तालाप करते हैं। उनसे अपनी आवश्यकता की वस्तु लेते हैं । इतना ही नहीं, जो चीज़ समतल में नहीं होता, हम अपने साथ लेकर जाते हैं । इस तरह से हमारे और उनके पूर्वजों ने आपसी तालमेल बैठाया था जिसका कमोवेश पालन हमलोग आज भी कर रहे हैं। फिर द्वन्द कैसा? मान्यता तो यह भी है कि हमलोगों के पूर्वज सगे भाई थे । जो बड़े थे वे अपने बच्चो के साथ समतल में रह गये और छोटे भाई अपने बाल बच्चों के साथ पहाड़ी पर चढ़ गए । हमने एक दुसरे के सुख दुःख को जानने के लिए एक उपाय यह निकाला की रात में एक लालटेन हम ऊँची पहाड़ी पर जला देते थे । लालटेन जलने का अर्थ यह था कि समतल के लोग निश्चिन्त हो जाएँ कि हमलोग शांति से हैं और अपना जीवन आनंद से बिता रहे हैं । यह एक अलग बात है कि बदलते समय के साथ मेतै लोग पहले कृष्णभक्ति की ओर आकर्षित होकर हिन्दू हो गए और नागा धीरे धीरे इसाई होते गए । धर्म अपनी मान्यता है । हम भले इसाई हैं लेकिन हमें नागा होने पर गर्व है सर । हम अपने पूर्वजों, अपनी अनुष्ठानों, मान्यताओं का सम्मान करते हैं । हमें लगता है कि इसाई होना भी हमारे लिए गर्व का विषय नहीं है । हमें गर्व तो केवल और केवल नागा होने पर है । हम अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं सर। इसमें क्या गलत है? हमारे नागाओ का बहुत बड़ा भू भाग म्यांमार में चला गया है । वहाँ वे भी प्रसन्न नहीं है । जब पाकिस्तान या बांग्लादेश के हिन्दू के साथ वहाँ की सरकार अथवा जनता अत्याचार अथवा भेदभाव करती है तो पूरा भारत बोलने लगता है । वहाँ के दूतावास के पास लोग नारे लगाने चले जाते हैं । पुरे देश में विद्रोह का बिगुल बजने लगता है । ऐसा होता है न सर! फिर जब नागा जनजाति के साथ ऐसा होता है तब यह देश का न्यूज़ क्यों नहीं बनता? हमारा संघर्ष इसी बात के लिए है सर। इसमें क्या बुराई है। और हम जब अपनी आवाज उठाते हैं तो हमें अलगाववादी, उग्रवादी, और न जाने किस किस शब्दावली से पुकारा जाता है । पत्रकार भी भीतर के इनर कर्रेंट्स को नहीं समझ पाते हैं। ऊपर-ऊपर देखकर जो मन में आता है लिख देते हैं। हमारी बेदना न तो सामान्य जनता और न ही सरकार तक पहुँच पाती है । फिर हमें अपने आपको जीवित प्रमाणित करने के लिए उग्र बनना पड़ता है । सरकार हमें अब प्रताड़ित करने लगती है । सरकारी तंत्र, पुलिस, पारा मिलिट्री फोर्सेज सभी हमारा और हमारे समाज का दमन और शोषण करने लगते हैं। हम भी लाचार होकर उनका प्रतिकार करने के लिए बाध्य हो जाते हैं । हम लोग ऐसे लोगों की मध्यस्थता चाहते हैं जो ईमानदारी से हमारी पक्ष को समझे। जो हमारी भावनाओं का सम्मान करे। हम यह भी स्वीकार करते हैं कि अभी तक नागा संस्कृति, आगमन एवं विस्तार का इतिहास नहीं लिखा गया है । हमारे प्रवास अथवा आगमन की कथा हमलोगों के फोकलोर में सुरक्षित है जिसका क्षय हो रहा है । हमलोग अब इसपर भी गंभीर हो रहे हैं। हमें पता चला है कि आप नागालैंड के 16 नागा समूहों का परम्परागत कानून का दस्तावेजीकरण करवा रहे हैं। हमलोग जितने भी गाँव बूढा हैं, अनुभवी महिला पुरुष हैं उनसे मिलकर इस कार्य में आप जैसे लोगो की मदद करना चाहते हैं। हमें अपने पूर्वजों के देवी देवताओं का, मान्यताओं का मेन्टल लैंडस्केपिंग करना है । लोगों में जो नागा आदिवासी के प्रति गलत धारणाएँ अथवा भ्रम हैं उसको दूर करना है ।”
चूल्हे के चारो तरफ हम सभी गोलाई में बैठे अग्नि की तपिश ले रहे थे । बीच-बीच में छांग पी रहे थे । एक बार कुछ जड़ी बूटी और पत्तेदार सब्जियों से मिश्रित सूप का दौर भी चला । सच कहूँ तो मुझे उसमे बहुत स्वाद नहीं लगा लेकिन मैंने पी लिया । वैसे वह स्थानीय सूप उतना खराब भी नहीं था । अब शाम के सात बज चुके थे । इस क्षेत्र में सात बजने का अर्थ है रात्रि विश्राम का समय । खैर ! निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हमें रात्रि विश्राम यही करना था इसीलिए मैं समय की चिंता नहीं कर रहा था । कुछ देर के बाद एक नागा युवती उस नागा मुखिया से स्थानीय भाषा में कुछ बोली। नागा मुखिया उसको अंग्रेजी में थैंक यू कहते हुए पुनः मेरी ओर देखकर बोलने लगा:
“सर, आप मेरी भावनाओं को समझ पा रहे हैं न ?”
मैं बोला :
“ आप बोलिए । मैं अच्छी तरह से समझ पा रहा हूँ । मैं अपने आपको आपकी स्थिति में लेकर देख रहा हूँ । आपकी भावनाओ के साथ जुड़ पा रहा हूँ । अब लग रहा है मीडिया अगर इमानदार न हो तो कैसे अर्थ का अनर्थ हो सकता हैं । आप विस्तार से बोलिए । कम से कम मै अपने आपको तो समझा सकूँ कि आपके संघर्ष का यथार्थ क्या है ?”
नागा मुखिया:
“देखिये, आज से कम से कम 75 साल पहले नागालैंड या यों कह लीजिये कि किसी भी नागा समाज में नर बलि की घटना घटी । उसके बाद एक भी उदहारण नही है फिर भी लोग हम लोगों को हेड हंटर कहते हैं। ठीक है किसी ज़माने में किसी विशेष उत्सव पर हमलोग हेड हंटिंग करते थे । हमने अपने बुजुर्गों से इसके बारे में पूछा तो उन्होंने जो जानकारी दी वह बहुत महत्वपूर्ण है । यद्यपि बाहर के लोगों ने इस संबंध में कुछ नहीं लिखा है । होता यह था कि एक नागा नायिका के लिए दो योद्धा आपस में लड़ते थे। जो अधिक ताकतवर होता था वह दुसरे का सिर अलग कर देता था । कटे हुए सिर की पूजा अर्चना एक वीर पुरुष के रूप में होती थी। क्योंकि वह भी कोई सामान्य आदमी तो था ही नही। जब दो वीर योद्धा लड़ेंगे तो एक की जीत और एक की हार तो निश्चित है । अपने देवता के समक्ष हमलोग कटे सिर की पूजा अर्चना करते थे । वह नायिका जिसको पाने के लिए वह लड़ा था, वहाँ आती थी और बहुत ही अदब से उसको चूमती थी। उपस्थित लोग समवेत स्वर में उसके स्वागत में और उसको वीरगति मिली इसलिए वीर गान गाते थे । उनको सैनिक योद्धा माना जाता था । युद्ध में उसके द्वारा दिखाए गए करतव पर चर्चाये बहुत दिनों तक होती रहती थी ।”
अब तक यह नागा मुखिया मेरे लिए बहुत सार्थक और प्रमाणिक सूचना दाता बन चुका था। उसके कहे, एक-एक शब्द मेरे मस्तिष्क के कंप्यूटर चिप में अक्षरश: अंकित होते जा रहे थे । भय तो कब का भाग चुका था मेरे मन और तन से । सभी लोग अपने-अपने ढंग से नागा नेता को जानकारी देते। वह सभी जानकारी एकत्रित करता और फिर मुझे समझाता । इस बीच भोजन बन चुका था । भोजन क्या था । केले के पत्ते में चावल डालकर उसमे पानी डालकर थोड़ा नमक और कुछ जड़ी बूटी डालकर उसको लपेटकर बांस में डालकर उसको चारो तरफ से जला दिया गया था । फिर उसको निकालकर खाना था । स्थानीय मसालों के साथ सांड के मॉस को पकाया गया था । मैंने पूछा: “यह क्या है?”
उन्होंने सिंग दिखाते हुए कहा: “इसका तरकारी।”
मैंने कह दिया : “मैं ये नहीं खाता।”
अब वे चिंतित हो गए। मैंने समझाया : “आप चिंता न करें। टमाटर, प्याज, हरी मिर्च, आदि के सलाद के साथ मै चावल खा लूँगा । उन्होंने एक चटनी भी बनाया था। चटनी में सुखी मछली, बांस के कोपल के टुकड़े, लहसुन, हरी मिर्च, और स्थानीय खट्टे फल मिश्रित थे। स्वाद कोई ख़राब नही था । कुल मिलाकर मैंने चावल को सलाद और चटनी के साथ खा लिया था । बांस के अंदर केले के पत्ते में पके चावल का बेजोड़ स्वाद था । बहुत चाव से खाया । उसमे केले के पत्ते और बांस का मिश्रित स्वाद और अरोमा आ रहा था । खाने के बाद भी बातचीत का क्रम चलता रहा ।
(क्रमशः)
© डॉ कैलाश कुमार मिश्र
नागा , नागालैंड और नागा अस्मिता: आंखन देखी (5)
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