Tuesday, 5 July 2022

मंजर जैदी / भारत के वे ऐतिहासिक स्थल जो अब पाकिस्तान में हैं (2)

गुरुद्वारा डेरा साहिब लाहौर ~

इंडिया से आने के बाद रात में लाहौर रुके। यहां से हमें रावलपिंडी जाना था परंतु एक दिन का समय हमारे पास था। अतः हम ने लाहौर के ऐतिहासिक स्थल देखने का प्रोग्राम बनाया। हमें बताया गया कि लाहौर में बहुत से ऐतिहासिक स्थल हैं परंतु किला, बादशाही मस्जिद और गुरुद्वारा पास पास हैं, अतः पहले वहां चलते हैं। प्रातः 9:00 बजे हम घर से रवाना हो गए। लाहौर में कार चलाने के शौक में मैं ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। रास्ते में अनारकली बाजार की ओर से भी गुज़रे। उस समय हमें फिल्म 'मुग़ल-ए-आज़म' और फिल्म 'अनारकली' की याद आ गई। समय की कमी के कारण हम अनारकली बाजार में नहीं गए, परंतु दूर से वहां की भीड़ और सजी हुई दुकानें देखलीं। मेरी बहन ने मुझ से कहा कि चौराहे के नजदीक पहुंचकर कार की लेन मत बदलना और गाड़ी भी सावधानी से चलाना यहां चालान हो जाता है। मैंने सोचा कि अच्छा हुआ बता दिया वरना हमें तो चौराहे पर पहुंचकर मौका देखकर किसी भी लाइन में खड़े होने की आदत थी।इसके बाद इस आदत को बदल दिया। रास्ते में शहर के अंदर एक जगह आने जाने वाली दो सड़कों के बीच में नहर बह रही थी जिसने उस स्थान की सुंदरता बढ़ा दी थी। जल्द ही हम गंतव्य स्थान पर पहुंच गए। पहले दाएं हाथ पर गुरुद्वारा था और पास में ही इसी हाथ पर बादशाही मस्जिद तथा सामने की ओर बाएं हाथ पर लाहौर किला दिखाई दे रहा था। 

गुरुद्वारे का निर्माण 18 वीं शताब्दी में हुआ था। यहां सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव शहीद हुए थे।  गुरुद्वारे के आस पास हमें सिख भाई दिखाई दिए जिनमें कुछ पैंट शर्ट पहने थे तथा कुछ सलवार और कमीज में थे। हम गुरुद्वारे के मुख्य द्वार पर पहुंचे। द्वार पर उपस्थित गार्डों ने हमें अंदर जाने से रोक दिया। उनके द्वारा बताया गया कि गुरुद्वारे के अंदर केवल सिख ही जा सकते हैं। हमारे बार बार निवेदन करने पर  उन्होंने बताया कि क्योंकि पाकिस्तान में आतंकी हमले होते रहते हैं अतः गुरुद्वारे की सुरक्षा और किसी अप्रिय घटना से बचने के लिए सरकार ने यह नियम बनाए हैं। इसी समय अंदर से कुछ सिख भाई आते दिखाई दिए जो गुरुद्वारे के प्रबंधन से संबंधित लग रहे थे। हमने उन्हें बताया कि हम इंडिया से आए हैं तथा वहां किसी भी गुरुद्वारे में हमारा जाना प्रतिबंधित नहीं है। इंडिया का नाम सुनकर वह कुछ देर खामोश रहे फिर कुछ सोचकर हमें अपने साथ गुरुद्वारे में ले गए। 

वह पहले एक बड़े हॉल में ले गए जहां दो व्यक्ति कुछ पाठ कर रहे थे। उसके बाद दूसरे कमरे में गए जहां एक वृद्ध आयु के व्यक्ति पाठ में लीन थे। फिर वह हमें खुले भाग में ले आए जहाँ हमने उनसे  पूछा कि वह बटवारे के समय इंडिया क्यों नहीं चले गए। उन्होंने जवाब देने के बजाय उल्टा हम से सवाल किया कि हम पाकिस्तान क्यों नहीं आए। हम ने उनसे फिर पूछा कि वे पाकिस्तान में रह रहे हैं जहां सरकार भी मुसलमानों की है और शहर में संख्या भी मुसलमानों की अधिक है ऐसी परिस्थिति में क्या उनके अंदर कोई भय या अन्य किसी प्रकार की भावना उत्पन्न होती है। पहले तो वे हंसे फिर जवाब दिया। ऐसी कोई बात नहीं है, यहां हम सब प्यार मोहब्बत से रहते हैं । वह पंजाबी के अतिरिक्त हिंदी और उर्दू भी अच्छी बोल रहे थे उन्होंने बताया कि हमें यहां अपने धर्म के अनुसार पूजा पाठ करने और रहने की आजादी है। उन्होंने बताया कि करतारपुर में गुरु नानक देव जी का गुरुद्वारा है जहां इंडिया से बहुत से सिख श्रद्धालु आते है। इसके अलावा हसन अब्दाल में प्रसिद्ध गुरुद्वारा पंजा साहब भी है। गुरुद्वारे में वैशाखी पर मेला भी लगता है। 
(जारी) 

मंजर ज़ैदी
© Manjar Zaidi

भारत के वे ऐतिहासिक स्थल जो अब पाकिस्तान में हैं (1) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/07/1.html 
#vss 

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