जूलियन, विश्वविद्यालय एवं छात्रावास आदि ~
सरकैप से निकलकर हम जूलियन की ओर चल पड़े जहां बुद्धिस्ट स्तूप और विश्वविद्यालय आदि के अवशेष लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर एक पहाड़ी पर मौजूद हैं। श्री अय्यर ने 1916-17 में श्री जॉन मार्शल के निर्देशन में यहां खुदाई कराई थी। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए यह विश्व के प्राचीन विश्वविद्यालय में से एक माना जाता है। इसमें पूरे विश्व के 10 हज़ार से अधिक छात्र अध्ययन करते थे तथा 60 से अधिक विषयों में शिक्षा दी जाती थी। कहा जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य ने यहां शिक्षा प्राप्त की और चाणक्य इसमें वरिष्ठ प्रवक्ता थे। राजा अशोक के समय में तक्षशिला बौद्ध शिक्षा और ज्ञान का केंद्र रहा है। इस स्थान को 1980 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल की सूची में सम्मिलित किया गया।
पाकिस्तान सरकार द्वारा जूलियन के स्तूप और मठ की ऐतिहासिक और आर्किटेक्चरल महत्ता के दृष्टिगत इसे सुरक्षा एक्ट - 1975 के अंतर्गत सुरक्षित स्थल घोषित किया गया है जिसके अंतर्गत यदि कोई भी इसे तोड़े या हानि पहुंचाए या इसमें कोई परिवर्तन करे अथवा इस पर कुछ लिखें तो उसे 3 साल की सजा या 2 लाख रुपये जुर्माना या फिर दोनों सजाएं दी जा सकती हैं।
यह स्थान एक पहाड़ी पर लगभग 300 फीट की ऊंचाई पर स्थित है जिसके लिए 300 सीढ़ियां चढ़ना पड़ती हैं। किसी तरह हांपते हुए सीढ़ियां चढ़कर ऊपर पहुंचे और थोड़ी देर ठहर कर अपनी सासों को काबू में किया। सीड़िया जहां समाप्त होती हैं वहां बोर्ड पर जूलियन का प्लान तथा अन्य विवरण दर्शाए गए हैं। अंदर जाने के बाद बायीं ओर पर कमरों के अवशेष दिखाई दिए। लगभग 8 फुट ऊंची और 3 फुट चौड़ी पत्थर की चिनाई की दीवारें अभी मौजूद हैं। 28 कमरे छात्रों के लिए बनाए गए थे इन पर इस समय छत नहीं है। एक स्थान पर ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां दिखाई दीं। एक ओर रसोई घर की 8 फीट ऊंची दीवारें खड़ी हुई हैं। बीच में बड़ा सा आंगन है। रसोई में बर्तन धोने की जगह बनी हुई है तथा मसाला पीसने के लिए मोटे पत्थर की सिल भी रखी हुई है।
विभिन्न प्रकार के अनाज पीसने के लिए दो पत्थर की सिलें भी आंगन में रखी दिखाई दीं। आंगन मैं एक ओर 1 फुट गहरा बड़ा टैंक भी दिखाई दिया जिसमें अब पानी नहीं है। छात्रों के एकत्रित होने के लिए असेंबली हॉल भी मौजूद है। परन्तु उसकी भी केवल दीवारें हैं। यहां का वातावरण बहुत अच्छा था और चारों ओर के सुंदर पहाड़ी दृश्य आंखों को ठंडक पहुंचा रहे थे। ठंडी हवा के झोंकों ने 300 सीढ़ियां चढ़ने की थकान को भी मिटा दिया था। इसी परिसर में दूसरी ओर मंदिर के अवशेष हैं परंतु उनको अधिक सुरक्षित रखने के लिए उन पर छत डाली गई है। इसमें विभिन्न आकार की गौतम बुद्ध की मूर्तियां रखी हुई हैं। दीवारों पर भी मूर्तियां बनी हुई हैं।
यहाँ की कुछ मूर्तियां तक्षशिला के संग्रहालय में रख दी गई हैं। एक स्थान पर गौतम बुध की पत्थर की बड़ी मूर्ति दीवार में बने ताक रखी हुई थी, जिसकी नाभि में छिद्र बना हुआ है। इसके बारे में वहां बताया गया कि उस समय श्रद्धालुओं में यह मान्यता थी कि रोगियों की उंगली इस छिद्र में डालकर उनके स्वस्थ होने के लिए प्रार्थना की जाती थी।
विश्वविद्यालय आदि देख कर पुनः 300 सीढ़ियां उतर कर नीचे आए। यहां एक बड़ा सा ढाबा दिखाई दिया। दोपहर के भोजन का समय भी हो गया था अतः ढाबे में विभिन्न प्रकार के पंजाबी स्वादिष्ट भोजन का आनंद लिया और गुरुद्वारा पंजा साहब के लिए प्रस्थान किया।
(जारी)
मंजर ज़ैदी
© Manjar Zaidi
भारत के वह ऐतिहासिक स्थल जो अब पाकिस्तान में हैं (9)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/07/9_13.html
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