Monday, 25 July 2022

मंजर जैदी / भारत के वे ऐतिहासिक स्थल जो अब पाकिस्तान में हैं (15)

सक्खर में हैंगिंग बृज ~
 

लगभग 200 किलोमीटर की यात्रा पूर्ण करके हमने 11:00 बजे सक्खर शहर में प्रवेश किया। सक्खर, सिंध प्रांत का जनपद है। इस क्षेत्र में पंजाब जैसी हरियाली देखने को नहीं मिली। राजस्थान की तरह कहीं कहीं रेत की छोटी पहाड़ियां दिखाई दीं। रास्ते में खजूर के बाग भी दिखाई दिए जिन पर खजूरों के गुच्छे लटक रहे थे। सक्खर में प्रवेश करते ही कुछ पुरानी यादें ताजा हो गयीं। वर्ष 1970 में जब मैं विद्यार्थी था उस समय पहली बार पाकिस्तान आया था और सक्खर में भी  रहने का अवसर मिला था। उस समय सक्खर में हमारी मौसी रहती थी जिनके पति शहर के प्रसिद्ध हकीम थे। दूर-दूर से रोगी उन्हें दिखाने के लिए सक्खर आते थे।  वो हकीम होने के साथ अच्छे शायर भी थे। उन्हें अपने बच्चों को डाक्टर बनाने का शौक था। बाद में उनके एक पुत्र और दो पुत्रियों ने एमबीबीएस के अतिरिक्त डॉक्टरी की अन्य डिग्रीयां भी प्राप्त कीं और पाकिस्तान में अच्छी सरकारी नौकरियों में रहे। 1970 में उनका बेटा शहाब जो मुझ से छोटा था कहने लगा कि आप सिविल में इंजनिरिंग कर रहे हैं इसलिए मैं आपको सक्खर में सिंधु नदी पर बना हैंगिंग बृज, जिसे अय्यूब पुल कहते हैं, और सक्खर बैराज दिखाऊंगा।  

सिविल इंजीनियरिंग का विद्यार्थी होने के कारण मेरी इन चीजों में  विशेष रूचि थी। 50 वर्ष बाद मुझे याद नहीं कि हम किस साधन से वहां गए थे परंतु शहर से बहुत निकट होने के कारण हम जल्द ही वहां पहुंच गए थे। वहां एक पुराना अंग्रेजों के समय का बना हुआ लोहे का पुल था जिस पर रेलगाड़ी चलती थी तथा उसी पुल पर पटरी के दोनों ओर पैदल और साइकिल वालों के चलने के लिए रास्ता बना हुआ था। इसमें कोई विशेषता नहीं थी। ऐसे बहुत से पुल हम अपने देश में देख चुके थे परंतु उस पुल से लगभग 100 फीट की दूरी पर एक दूसरा पुल 1962 ई0 में बनाया गया था। सक्खर से रोड़ी शहर जाने के लिए 806 फुट लंबा यह पुल सिंधु नदी पर बनाया गया था। उस समय तकनीकी दृष्टि से देखने पर  इसमें यह विशेषता दिखाई दी थी कि, इस पुल के लिए नदी के बीच में  पिलर नहीं बनाए गए थे, क्योंकि पिलर बनाना संभव नहीं थे, बल्कि नदी के दोनों किनारों पर दो-दो अबटमेंट बनाकर उन्हें नदी की चौड़ाई के बराबर लोहे के गर्डर से बनाई गई अर्ध गोलाकार आर्च से जोड़ा गया था, अर्थात नदी के ऊपर दोनों किनारों के मध्य एक बहुत बड़ी अर्ध गोलाकार आर्च लोहे के गार्डर से बनाई गई थी जिसमें लोहे के तारों के मोटे बटे हुए रस्सों से उस भाग को लटकाया गया था जिस पर रेल की पटरियां बिछाई गई थीं और उन पर रेलगाड़ी चलती थी। उस समय बताया गया था कि यह दुनिया का तीसरा बड़ा पुल है जिसमें आर्च का स्पेन बनाया गया है तथा दुनिया का प्रथम पुल है जिसे लोहे के तारों के बटे हुए मोटे रस्सों से आर्च में लटकाया गया है। इसके पश्चात हम दोनों सक्खर बैराज भी गए थे।
 

इसी अवधि में हम बंदर रोड से होते हुए सिंधु नदी के किनारे उस स्थान पर पहुंच गए जहां से एतिहासिक साधु बेला मंदिर जाने के लिए नाव का प्रयोग करना था। यह स्थान सक्खर से मात्र  8.5 किलोमीटर की दूरी पर है तथा 30 मिनट में हम यहां पहुंच गए। रास्ते में हमें वह दोनों पुल भी दिखाई दिए जिनका वर्णन ऊपर किया गया है। 1970 में फोटो खींचने के लिए हमारे पास कैमरा नहीं था। अतः अब  उनके कुछ फोटो खींचे,  जो यहां लगाए जा रहे हैं। 
(जारी) 

मंजर जैदी
© Manjar Zaidi

भारत के वे ऐतिहासिक स्थल जो अब पाकिस्तान में हैं (14)      
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/07/14_25.html 
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