Wednesday, 27 July 2022

मंजर जैदी / भारत के वह ऐतिहासिक स्थल जो अब पाकिस्तान में हैं (16)

ऐतिहासिक साधु बेला मंदिर ~

सिंध नदी के किनारे पर कुछ कश्तियां खड़ी हुई थी जो पुराने स्टाइल की थी जिन्हें दो व्यक्तियों के द्वारा चप्पू से चलाया जा रहा था। हमें देख कर कुछ नाव वाले हमारी ओर बड़े और अपनी नाव की विशेषताएं बताते हुए हमें उस में बैठने को कहा। एक सुंदर सी नाव देखकर हम उस में बैठ गए। नाव के ऊपर लकड़ी की छत भी थी। नाव के अंदर दोनों किनारों पर और बीच में बैठने के लिए लकड़ी की बेंचें लगी हुई थी जिन पर विभिन्न रंगों के पेंट सुंदर लग रहे थे। नाव से नदी के बीच में मंदिर का भवन बहुत सुन्दर लग रहा था जैसे मंदिर पानी में तैर रहा हो। बहुत कम समय में हम उस नाव के द्वारा मंदिर तक पहुंच गए। 

कुछ सीढ़ियां चढ़कर हम मुख्य द्वार पर पहुंचे। मंदिर के द्वार पर बाएं और बने पिलर पर सिंधी भाषा में 'साधु बेला तीरथ' लिखा हुआ था। पाकिस्तान में सिंधी और पंजाबी उर्दू लिपि में लिखी जाती है इसी कारण हम द्वार पर लिखा मंदिर का नाम पढ़ सके। अंदर प्रवेश करने पर हमें कुछ व्यक्ति दिखाई दिए जिनसे हमने मंदिर के विषय में बताने का अनुरोध किया। निर्मल नाम के एक व्यक्ति  हमें मंदिर और वहां के बारे में विवरण सहित  बताने लगे । वह सिंधी भाषा बोल रहे थे हमने उनसे कहा कि हम सिंधी नहीं जानते हैं अतः हमें हिंदी या उर्दू में बताएं। 

उसके पश्चात वो हमसे मिली जुली हिंदी और उर्दू भाषा में बात करने लगे। आंगन में एक ओर छोटे कमरे में शिवलिंग स्थापित था जहां शिव जी की फोटो भी लगी थी। उन्होंने बताया कि जब जून के महीने में यहां मेला लगता है तो पांच अमृत से पूजा की जाती है अर्थात दूध, दही, मक्खन, शहद और मिठाई, पांच चीजें मिलाकर शिवलिंग की पूजा की जाती है। उन्होंने बताया कि मेले के अवसर पर भारत से बहुत से श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं उस समय यहां बहुत अधिक भीड़ होती है। वह हमें एक बड़ी सी खुली जगह पर ले गए जिस पर लकड़ी की छत पड़ी हुई थी। उन्होंने बताया कि यह हवन कुंड है जहां हवन यज्ञ पूजा की जाती है। 

वह हमें एक और बड़ी सी जगह पर ले गए जहां जाने के लिए जूते उतारना थे। उन्होंने बताया कि यह लंगर खाना है अर्थात यहां भंडारा होता है और मेले में आए व्यक्तियों को खाना खिलाया जाता है। इसके बाद वह हमें एक ऐसे स्थान पर ले गए जहां फर्श पर एक गद्दी रखी हुई थी तथा उसके तीन ओर बड़े-बड़े गोल तकिए रखे थे। वहां एक फोटो और पैर में पहनने वाली खड़ाऊं रखी थी। उन्होंने बताया कि यह गौरी शंकर महाराज की फोटो है जो मेले के दिनों में भारत से यहां आते हैं और इसी गद्दी पर बैठते हैं। शेष समय उनका फोटो और उनके पांव की खड़ाऊं यहां गद्दी पर रखे रहते हैं।

एक कमरे की दीवार पर बड़े आकार की श्री कृष्ण जी की पेंटिंग बनी हुई थी। एक अन्य स्थान पर कुछ मूर्तियां रखी हुई थी। फिर वह हमें एक खुले स्थान पर ले गए। जहाँ एक छोटा सा बगीचा था। उन्होंने बताया कि यह बगीचा साधु बेला बाबा के हाथों का लगाया हुआ है जिसका रखरखाव अब मंदिर प्रशासन द्वारा किया जाता है। हमने उनसे पूछा कि सरकार द्वारा आप को क्या सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। उन्होंने बताया कि मेले के अवसर पर सरकार की ओर से कड़े सुरक्षा प्रबंध किए जाते हैं तथा बाहर से आए व्यक्तियों के लिए विशेष रूप से भारत से आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए उचित प्रबंध किए जाते हैं यहां तक कि मेले के अवसर पर मुसलमानों का मेले में आना भी प्रतिबंधित होता है। 

उन्होंने यह भी बताया कि रोहड़ी जो सक्खर जनपद का शहर है वहां पर बाबा कुशी राम मंदिर और साईं वासन शाह दरबार हैं। इसके अतिरिक्त सक्खर में भी माता मंदिर और साईं बाबा हनुमान दरबार हैं। हमने उनका धन्यवाद किया और फिर नाव के द्वारा नदी के किनारे पर वापस आ गए। नाव वाला कहने लगा कि जब आप यहां आए हैं तो सक्खर बैराज जरूर देखें जो यहां से बहुत ही निकट है। यद्यपि समय अधिक हो गया था परंतु 1970 की यादों को ताजा करने के लिए हम सक्खर बैराज पहुंच गए। 

यह बैराज पहले लाॅइड बैराज के नाम से जानी जाती थी क्योंकि इसका निर्माण ब्रिटिश सरकार द्वारा 1923 से 1932 की अवधि में कराया गया था। इसका पुनर्निर्माण 2004 में पाकिस्तान सरकार द्वारा कराया गया। बैराज की लंबाई 2 किलोमीटर है जिसमें 66 गेट बनाए गए हैं। बताया गया कि सक्खर बैराज अपने प्रकार का एकल सिंचाई का विश्व में सबसे बड़ा नेटवर्क है। इस से निकली हुई नहरों के द्वारा समस्त सिंध प्रांत  को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराया जाता है। बैराज देखने में सुंदर था जिसका फोटो खींचा गया । बैराज से लगभग 15 मिनट में हम सक्खर शहर में वापस आ गए।
(जारी) 

मंजर ज़ैदी 
© Manjar Zaidi

भारत के वह ऐतिहासिक स्थल जो अब पाकिस्तान में हैं (15)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/07/15_25.html 
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