2005 में आई सच्ची घटना पर आधारित एक फिल्म, जिसकी वास्तविक नायिका को आज से 78 वर्ष पहले मौत की सज़ा दी गयी थी।
22 फ़रवरी 1943 को सिर्फ 21 वर्ष की इस बहादुर लड़की, उसके भाई और एक साथी की गर्दन काट दी गयी थी।
उनका गुनाह था, नफ़रत और सत्ता के नशे में पागल तानाशाह के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना।
यह फ़िल्म 'व्हाइट रोज़' नामक विद्यार्थियों के एक समूह और उससे जुड़ी युवती "सोफ़ी शोल " की कहानी है
जो हिटलरी आतंक के साये में रहते हुए जर्मनी में लोगों को बर्बर नाज़ी हुकूमत के विरुद्ध उठ खड़े होने के लिए गुप्त प्रचार कार्य में लगे हुए थे।
1943 में जिस वक्त हिटलर की सेनाएँ पूरे यूरोप में जंग छेड़े हुए थीं और जर्मनी में यहूदियों, कम्युनिस्टों और हिटलर के तमाम विरोधियों का बर्बर फ़ासिस्ट दमन जारी था, उन्हीं दिनों युवा विद्यार्थियों के एक ग्रुप ने म्यूनिख़ में एक अंडरग्राउण्ड प्रतिरोध आन्दोलन शुरू किया था। ख़ुद को 'द व्हाइट रोज़' कहने वाला यह ग्रुप हिटलर के झूठे प्रचार का भण्डाफोड़ करते हुए तथ्यों और फ़ासिस्ट युद्धोन्माद के विरोध के आह्वान से भरे पर्चे गुप्त रूप से तैयार करता और बाँटता था।
इसकी युवा सदस्य सोफ़ी, कॉलेज कैम्पस में अपने भाई हान्स के साथ ऐसा ही एक पर्चा बाँटते हुए पकड़ी जाती है।
लम्बी पूछताछ और नाज़ी शासन के वफ़ादार प्रवक्ता जैसे जज की अदालत में मुक़दमे के नाटक के बाद सोफ़ी, हान्स और उनके साथी क्रिस्टोफ़ प्रोब्स्ट को मौत की सज़ा सुनाई जाती है, और दो दिन बाद उस पर अमल कर दिया जाता है। यह फिल्म गेस्टापो और नाज़ी अदालत की फ़ाइलों में इस मामले की पूछताछ और मुक़दमे के रिकॉर्ड के आधार पर सोफ़ी शोल और उसके साथियों द्वारा फासिस्टों के विरुद्ध जर्मन जनता को जगाने के प्रयास की इस शौर्यपूर्ण ऐतिहासिक घटना का चित्रण बहुत सच्चे और प्रेरक ढंग से करती है।
मार्क रोथमुंड द्वारा निर्देशित 2005 में आयी यह फ़िल्म सर्वश्रेष्ठ विदेशी फ़िल्म के ऑस्कर अवॉर्ड के लिए नामांकित की गयी थी। इसके अलावा इसे दुनिया भर में अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं।
फिल्म यूट्यूब पर उपलब्ध है ।
https://youtu.be/baRvF6ZBK18
© नदीम
( जन विचार संवाद मंच )
#vss
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