“हम तुम्हें भस्म कर देंगे। तुम सब पाषाण युग में लौट जाओगे।”
- अमरीकी गृह सचिव रिचर्ड आर्मीटाज पाकिस्तान ISI प्रमुख से
11 सितंबर, 2001 को जब दो विमान WTC से, एक पेंटागन से, और एक फ़िलेडेल्फ़िया में क्रैश हुए, तो यह किसी ऐक्शन-फ़िल्म का दृश्य लग रहा था। दुनिया के एक अविश्वसनीय मंजर, एक आश्चर्य देखा। अमरीका जैसी विश्व की महाशक्ति के हृदय में सीधा आघात। आधुनिक अमरीका पर पहला विदेशी आक्रमण।
लेकिन, इससे बड़ा आश्चर्य तो यह कि जहाँ से यह आक्रमण हुआ, उसी को अमरीका के डॉलर मिले। यह बात तो पाकिस्तान को भी मालूम थी कि अल-क़ायदा एक अफ़ग़ान नहीं, एक पाक-पोषित संगठन है। ग्वाटेनामो खाड़ी में आतंकवादियों से पूछताछ में यह बातें स्पष्ट थी। अफ़ग़ानिस्तान की गुफाएँ एक फ़िल्मी सेटिंग थी, जिनका ध्येय छुपने से अधिक जिहाद का माहौल बनाना था। अन्यथा, उनके छुपने के सुरक्षित इंतजाम तो पेशावर से लेकर कराची तक थे। सैकड़ों अल-क़ायदा से जुड़े लोग तो आज भी पाकिस्तान की सड़कों पर घूम रहे हैं। जहाँ भी एक बम फटता है, आतंकवादी के पाकिस्तान सूत्र निकल आते हैं।
जॉर्ज बुश ने पूरी दुनिया को लगभग धमकाते हुए कहा, “आप सोच लीजिए कि आप अमेरिका के साथ हैं, या आतंकवादियों के साथ”
‘आतंक के ख़िलाफ़ युद्ध’ नाम से इसको मार्केट किया गया कि अब जहाँ मर्जी बम गिरा कर इसे न्यायसम्मत कहा जाए। भले उन देशों पर बम न गिराया जाए, जहाँ से धन आ रहा था। न ही उस देश पर, जहाँ उस समय भी आतंकवादी आराम से बैठ टीवी पर जॉर्ज बुश को सुन रहे थे।
इस युद्ध में सबसे मुख्य भूमिका जो देश निभा रहा था, वह था पाकिस्तान। दो साल पहले इसी देश पर अमरीका ने पाबंदी लगा दी थी, जब परमाणु बम परीक्षण किया गया था। अब जनरल मुशर्रफ़ इस युद्ध में पूर्ण सहयोग के लिए अरबों डॉलर माँग रहे थे।
अगर हम तुलना करें तो 1998 में अमरीका ने पाकिस्तान को 9 मिलियन डॉलर दिए थे। 2002 में यह रकम सिर्फ सैन्य सहायता के नाम पर 5 बिलियन डॉलर हो गयी। चार साल में पाँच सौ गुणा इजाफ़ा! ऐसा बिजनेस कौन न करना चाहे?
यह ठीक है कि अमरीका ने पाकिस्तान की कनपट्टी पर बंदूक डाल कर उनसे काम कराया। लेकिन, सवाल तो यह है कि पाकिस्तान ने काम किया क्या? बम अफ़ग़ानिस्तान में गिर रहे थे। तालिबान वहाँ साफ हो रहे थे। पाषाण-युग तो क्या, पाकिस्तान का पड़ोसी देश ज्वालामुखियों के युग में जा रहा था। अफ़ग़ानिस्तान के बाद इराक पर आक्रमण की तैयारी थी। इन सबके एवज में माला-माल पाकिस्तान हो रहा था। उसी अमरीका की रकम से ओसामा बिन लादेन के परिवार की सुरक्षा का इंतज़ाम भी कर रहा था।
पूरी दुनिया जिस व्यक्ति को ढूँढ रही थी, पाकिस्तानी पत्रकार हामिद मीर उसी नवंबर में उसका साक्षात्कार ले रहे होते हैं।
हामिद मीर ने कहा, “जब 1997 में बिन लादेन का पहला साक्षात्कार लिया, तो वह फ्लॉप हो गया। किसी ने नहीं पढ़ा। इस बार तो पूरी दुनिया की नजर मुझ पर थी।”
बिन लादेन को फ्लॉप से सुपरहिट बनाने में किसका हाथ था? लाइट्स किसके थे, कैमरा किसका था, ऐक्शन किसका था? मुशर्रफ़ अगर चाहते तो पाँच डॉलर में बिन लादेन का पता निकाल लेते। नहीं चाहा तो पाँच बिलियन डॉलर लेकर भी मुँह नहीं खोला। हाल में खबर आयी कि पूर्व पाकिस्तानी फौजी ब्रिगेडियर उस्मान खालिद ने बिन लादेन का पता बताने की डील की।
कहावत है- तुम्हारा शहर, तुम ही क़ातिल, तुम ही मुद्दई, तुम ही मुंसिफ़।
(क्रमशः)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 51.
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/06/51.html
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