Monday, 28 June 2021

अफ्रीकी गुलाम महिलाओं की त्रासदी.

गुलामों की खरीद-फरोख्त के करीब 350 साल के इतिहास में अफ्रीका के करीब पचास लाख काली औरतों को उनके घरों से उठा कर दुनिया के अलग-थलग कोनों में फेंक दिया गया जहाँ उन्हें नरक से भी बदतर परिस्थितियों में जानवरों जैसा जीवन मिला. लम्बी समुद्री यात्राओं में इन गुलाम स्त्रियों को मोटा अफ्रीकी चावल खाने को मिलता था. इस चावल का स्वाद उन्हें उनकी मातृभूमि की स्मृतियों से जोड़े रखता. 

ठिकाने लगा दिए जाने के बाद इन्हें गन्ने और कॉफ़ी के अमेरिकी और यूरोपियन प्लान्टेशनों में जोत दिया जाता. इन जगहों पर एशियाई मूल का सफ़ेद चावल पहले से ही पहुँचाया जा चुका था. यह चावल अफ्रीकी चावल के मुकाबले बेस्वाद तो होता ही था उसकी न्यूट्रीशनल वैल्यू भी कम होती थी.

अफ्रीका और ख़ास तौर पर अफ्रीका के पश्चिमी तटों से लगे विस्तृत इलाकों में काले छिलके वाले चावल की खेती किये जाने का आठ से नौ हजार साल का इतिहास खोजा जा चुका है. धान रोपने से लेकर चावल माड़ने तक की लम्बी और जटिल प्रक्रियाओं को काली स्त्रियों ने साध रखा था. उनके खेत उनके मंदिर थे. यह उनकी नैसर्गिक समझ और प्रकृति के ज्ञान का नतीजा था कि उनका चावल विषम से विषम परिस्थितियों में उग जाता था.

अजनबी परिवेश में गुलाम बनाये जा चुकने के बावजूद उन्होंने अपनी पुरखिनों द्वारा अर्जित किये गए पारम्परिक ज्ञान को महफूज रखने का हर संभव जतन किया. गोरों द्वारा जबरन कब्जाए जाने के बाद अमेरिका और गोरे उपनिवेशों वाले जिस संसार को उन्होंने अपने मजबूत शरीरों की मशक्कत के बल पर आकार दिया उसे न्यू वर्ल्ड कहा गया. अटपटे स्वाद वाला भोजन परोसे जाते समय इस न्यू वर्ल्ड में उन्हें अपने घर की रसोई का स्वाद याद आता था.

फिर यूँ हुआ कि समूचे न्यू वर्ल्ड में अफ्रीकी चावल उगने लगा. 

पश्चिमी अफ्रीका की औरतें अपने बालों की लटों में धान के बीज गूंथ कर रख सोया करती थीं. क्या मालूम कब उन्हें बेच दिया जाय, किस ठौर फेंक दिया जाय!

इस तरह अजनबी मुल्कों में बनाई गयी अपनी रसोइयों में उन्होंने खुशबू पैदा की. चूंकि मालिकों द्वारा अपने गुलामों को किसी तरह का श्रेय दिए जाने की परम्परा नहीं थी उनकी इस उपलब्धि को अमरीकी इतिहास में बीस-तीस साल पहले तक दर्ज तक नहीं किया गया था. अब दुनिया भर के कृषि विश्वविद्यालय चावल का नया इतिहास लिख रहे हैं.

आज आप काली औरतों को दुनिया फतह करते हुए देखते हैं तो उनके चेहरों पर गौर करें. उनकी चमकदार आभा धान के उन बीजों से आई है जिसे उनकी बेनाम परदादियाँ-परनानियाँ और उनकी भी परदादियाँ-परनानियाँ अपनी जटाओं में छुपा कर लाई थीं ताकि उनकी सन्ततियों के घर-भंडार भरे रहें. ताकि कल उनका हो सके!

अशोक पांडेय 
© Ashok Pandey 
#vss

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