यह विवरण गाँधी जी ने साउथ अफ्रीका में अपने अख़बार इंडियन ओपिनियन में दिया था। महादेव देसाई और वल्लभभाई पटेल के साथ एक ही जेल में रहने के दौरान वह इस प्रसंग को बात निकलने पर बताते हैं। नेल्सन मंडेला इसी प्रसंग को आधार बनाकर अपने और गाँधी के कारावास अनुभवों पर एक लेख लिखते हैं।
गाँधी जी को कुल 10 वर्षों से ऊपर का कारावास मिला। इसमें भयावह वह थे जो उन्होंने साउथ अफ्रीका में गुजारे थे। नेल्सन मंडेला भी लिखते हैं कि उन्हें गाँधी की तुलना में अधिक सुविधाएँ मिली थीं। गाँधी जी को तो पहले 50 की क्षमता वाले सेल में 150 के साथ ठूंस दिया गया। बाद में उन्हें 3 * 6 फ़ीट के सेल में कई जुलु नेटिव के साथ डाल दिया गया। वहां एक पारंपरिक वैष्णव का सामना एक ऐसी परिस्थिति से था जिसे शायद ही भारत में किसी भारतीय ने ब्रिटिश शासन में न देखी थी।
प्राइवेसी नाम की कोई चीज न थी। टॉयलेट के नाम पर उसी सेल में एक टिन का डब्बा था जिसपर एक लकड़ी की पटरी रख दी जाती थी। हिलते डुलते रहें मगर हाथ से सहारा लेने का कोई साधन नहीं था। इसपर भी गाँधी का सर फूटते-फूटते तब बचा जब एक जुलु कैदी ने उनको लात से ठोकर मारी यह कहते हुए कि वह उसकी जगह को गन्दा कर रहा है।
नित्यक्रिया निवृत होते के बाद उन्हें पानी भी तो न मिलता था। सुबह सुबह मार खाता फिर 6 बजे से लेकर शाम 5 तक पत्थर तोड़ने में जुट जाता। कितने सहयोगियों के बेहोश हो जाने के प्रकरण हैं। शाम को फिर खाने में मक्के की लई। घी दूध तो मिलता था मगर सिर्फ गोरे कैदियों को। सोते वक्त वो नेटिव आपस में सेक्सुअल बातों से लेकर आपस में सम्बन्ध स्थापित करते जो गांधी के लिए हर दृष्टि से गर्हित था।
बाद में एक एकांत सेल में स्थानांतरित कर दिया गया जहां छोटी जगह में टहलने पर भी पीटा जाता था कि आवाज कर रहा है। यह स्थानांतरण इसलिए किया गया था क्योंकि उनके विचारों से दूसरे प्रभावित न हो जाएँ। जब अपने सहयोगियों से काम के दौरान उनकी पीड़ा सुनी तब जाकर गाँधी ने अथॉरिटी को पत्र लिखा जिसपर कुछ सुधार हुए। मंडेला लिखते हैं कि उन्होंने भी अपने लिए कभी कुछ सुविधाएँ नहीं मांगीं। जब बात सहयोगियों की आ गई तो विरोध किया।
एक बार मक्के की लई दिन भर में, महीनों तक। फिर दिन भर बैल से भी ज्यादा काम। वजन घटकर आधा हो गया था। बावजूद इसके दुबारा जेल जाने का उत्साह कम न हुआ। पत्नी जब मरणासन्न हुईं तो जेल से ही लिख दिया कि माफ़ी मांगकर न आऊंगा। तुम मेरा साथ दो, मेरे साथ रहो, मेरी ख़ुशी इसी में है किन्तु इस कारण मैं अथॉरिटी से माफ़ी की अपील नहीं कर सकता। तुम जा रही हो मैं जानता हूँ किन्तु इतना समझ लो कि दूजा ब्याह न करूँगा। तुम्हारा ही हूँ और रहूँगा।
वहां सालों की पीड़ा के बावजूद गाँधी नहीं झुके। अथॉरिटी को छोड़ना पड़ा वह अलग बात है।
यह यरवदा जेल में जेल की कठिनाइयों के बारे में बात उठने पर गाँधी पटेल और देसाई से कह रहे थे जब खबर मिली कि कस्तूरबा को उड़ीसा में C क्लास में डाल दिया गया है। वह खुश थे कि उनकी पत्नी होने के कारण कोई विशेष सुविधा न दी गई। इस यरवदा में तो साउथ अफ्रीका की तुलना में कुछ कष्ट है ही नहीं। दरअसल वहां भी नहीं था। ख़ुशी ख़ुशी झेले, भागे नहीं।
कालापानी एक ही जगह नहीं था ...... हाँ, बखान न हुआ हर जगह का।
प्रसन्न प्रभाकर
© Prasanna prabhakar
#vss
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