Friday 25 June 2021

यूरोप का इतिहास (15)

यहूदी न फासीवादी थे, न साम्यवादी थे, वे अनंत काल से पूँजीवादी ही थे।

ईसाई धर्म और इस्लाम, दोनों में ही बहुधा सूदखोरी (usury/रिबा) वर्जित थी। यही कारण था कि सूदखोरी का काम यहूदियों के पल्ले आया। अगर भारतीय समाज से तुलना करें, तो वे वैश्य के समकक्ष कहे जा सकते हैं। भारत में भी मुनाफाखोरी पर नियंत्रण था, ब्राह्मणों और क्षत्रियों पर तो पाबंदी ही थी। यहूदियों के ग्रंथ ‘तोह-राह’ में यह स्पष्ट था कि यहूदियों को ब्याज नहीं देना होगा, लेकिन अन्य धर्मों को ब्याज पर ही कर्ज दिया जाए। पूँजी की जितनी समझ यहूदियों को थी, वह किसी को नहीं थी। दुनिया को भी पूँजी का मतलब उन्होंने ही समझाया।

ज़ाहिर है, ईसाई धर्मी उनको एक शातिर साहूकार की नजर से ही देखते थे। शेक्सपीयर के यहूदी किरदार शैलॉक सूद न चुकाने पर अंतोनियो के शरीर का मांस काट लेने की बात कहते हैं। ईसाईयों की उनसे नफ़रत कड़ी सूदखोरी की वजह से बढ़ती गयी। उनको जबरन ईसाई बनाने की कवायद हुई, जैसा काल्पनिक पात्र शैलॉक के साथ हुआ। दूसरा विकल्प यही था कि उन्हें खत्म कर दिया जाए, या भगा दिया जाए। हिन्दी फ़िल्म ‘यहूदी’ (यहूदी की लड़की पर आधारित) में रोमन राजा ब्रूटस द्वारा इसी उत्पीड़न को दिखाया गया है।

यहूदियों को जितनी बार भगाया गया, वे भाग कर समूह ही बनाते गए। पहले वे सिर्फ स्पेन में थे, लेकिन भाग-भाग कर पूरे यूरोप में पसरते गए। उनमें कुछ ने ईसाई धर्म अपनाया और दो समूह में बँट गए। एक कहलाए, ‘कन्वर्सो’ (धर्मांतरित), दूसरे कहलाए मरानो जो छुप-छुप कर यहूदी धर्म पालन करते रहे। 

अब उनके तीन लक्ष्य थे-
● पहला कि अपने लिए नयी सुरक्षित जगह तलाशें, 
● दूसरा कि सामंतवादी व्यवस्था को पूँजीवादी व्यवस्था में बदलें, और 
● तीसरा कि अपनी पुण्य-भूमि जेरूसलम हासिल करें।

नयी जगह तो तभी मिलती जब नयी दुनिया मिलती। इसके लिए जहाजों से यात्रा करनी होती, नैविगेशन विज्ञान विकसित करना होता और धन लगाना होता। उनकी बुद्धि इतनी प्रखर थी कि दुनिया के पहले आधुनिक नैविगेशन सिस्टम उन्होंने बना लिए। कोलंबस नामक व्यक्ति को यात्रा करनी थी, जिसे यहूदियों ने अलग से धन भी मुहैया कराया। यह और बात थी कि झंडा स्पेन के राजा का था। 

यह इतिहास अब जाकर लिखा जा रहा है कि उपनिवेशवाद के मूल में यहूदी थे। कोलंबस के जहाज का मुख्य दिशा-निर्देशक भी यहूदी थे और उनके जहाज से पहली बार अमरीकी जमीन पर कदम रखने वाले भी यहूदी। वास्को डी गामा के सहायक गैस्पर डी गामा भी यहूदी थे।

मुझे यह नहीं मालूम कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में उनकी कितनी भागेदारी थी, और न ही चितपावन ब्राह्मणों के अतिरिक्त भारत में अन्य  बड़े हस्तक्षेप की जानकारी है। लेकिन, डच ईस्ट इंडिया कंपनी के मुख्य शेयर-होल्डर यहूदी थे। दक्षिण अफ्रीका में जाकर डच ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापार स्थापित करने वाला समुदाय यहूदियों का था। ऑस्ट्रेलिया में भी यहूदी व्यापार स्थापित करने आए। यहाँ तक कि अमरीका की धरती पर पहली औद्योगिक पहल यहूदियों ने ही की।

यहूदी हिटलर के आने से बहुत पहले अमरीका महाद्वीप में अपना ज्ञान और व्यापारिक विस्तार करना शुरू कर चुके थे। उन्होंने यूरोप से बाहर सुरक्षित जगह ढूँढ ली थी।

दूसरा लक्ष्य यानी सामंतवादी व्यवस्था को पूँजीवादी व्यवस्था में तब्दील करना कठिन था। मैं यह नहीं कह रहा कि यहूदी परिवार में जन्मे कार्ल मार्क्स का यही लक्ष्य था, और इसलिए उन्होंने साम्यवाद का जुमला फेंका। न ही यह कि इससे एक तीर से दो निशाने हुए- सामंतवाद पर भी चोट पड़ी और ईसाईयत भी कम्युनिस्ट नास्तिकता से ढक गया। न ही यह कि अमरीका-सोवियत की मुर्ग-लड़ाई के पीछे यहूदियों का दिमाग था। लेकिन, यह लक्ष्य तो पूरा हो ही गया। सामंतवादी व्यवस्था धीरे-धीरे कमजोर पड़ गयी, और पूरी दुनिया मुनाफ़े का खेल खेलने लगी। अगर कुछ इस्लामिक बैंकों को छोड़ दें, तो बिना ब्याज कर्ज अब मिलना असंभव है।

तीसरा लक्ष्य यानी जेरूसलम पर कब्जा। वह भी उन्होंने हासिल किया। वक्त लगा, मगर हासिल किया। ऐसा धर्मयुद्ध तो आज तक दुनिया के शक्तिशाली धर्म भी नहीं लड़ पाए कि दुनिया ही पलट दी। अब हर कोई ब्याज कमाने वाला यहूदी ही है। इत्तफाकन डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवान्का तो बाकायदा धर्म-परिवर्तन कर यहूदी बन चुकी है। 

एक आखिरी खुलासे के साथ बात खत्म करता हूँ। 

इतिहासकार मानते हैं कि क्रिस्टोफ़र कोलंबस स्वयं एक ‘मोरानो’ थे, यानी ईसाई के भेष में पक्के धर्मनिष्ठ यहूदी। 
(क्रमश:)

प्रवीण झा
© Praveen Jha

यूरोप का इतिहास (14)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/06/14.html
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