ग़ालिब - 30
पहले आती थी हाल ए दिल पे हंसी,
अब किसी बात पर नहीं आती !!
पहले आती थी हाल ए दिल पे हंसी,
अब किसी बात पर नहीं आती !!
Aage aatee thee, haal e dil pe hansee,
Ab kisee baat par naheen aatee !!
- Ghalib.
Ab kisee baat par naheen aatee !!
- Ghalib.
पहले तो हम, अपने दिल की हालत पर हँस लेते थे. पर अब तो किसी बात पर भी हंसी नहीं आती !!
दिल की जो भी दशा होती थी, उस पर खुद पर ही हंसी आ जाती थी. दशा चाहे बुरी हो या भली. कुछ न कुछ मन में तमाम व्याधियों के बावजूद भी, कुछ न कुछ आह्लाद हेतु तत्व शेष रहता था. पर अब कोई जीवन्तता रह ही नहीं गयी. अब अगर कुछ हंसने की बात भी होती है तो अधरों पर न मुस्कान खेलती है और न ही मन में कुछ उमगता है , कि हंसी फूटे. जड़ हो सब शायद. जीवित शव सम की तरह. यह दशा अवसाद की है. ऐसे सन्नाटे की है जहां कोई आशा नहीं है. दिल सिर्फ धड़कने की औपचारिकता निभा रहा है. जीवन है पर शून्य है." सांस लेना भी एक रवायत है, जिए जाना भी एक रवायत है. "
ग़ालिब ने दुःख, और अवसाद को कितने कम और साधारण शब्दों में व्याख्यायित किया है, यह उनका कौशल है. पहले जीवन में उत्साह था, उमंग था, उम्मीद थी, और एक उसका अभिप्राय था. पर अब दिल है, धड़कन है, पर न उत्साह है, न उमंग है, और अगर कुछ कभी कभी दिख भी जाता है तो, अब हंसने का मन ही नहीं करता. अवसाद को शायद इतने उम्दा तरीके से, किसी भी शायर ने अभिव्यक्त नहीं किया होगा.
निराला, का एक शोक काव्य है, सरोज स्मृति. सरोज , हिन्दी के मूर्धन्य कवि, सूर्य कांत त्रिपाठी निराला, की पुत्री थी. उनका वैवाहिक जीवन बहुत दुखी था. उस पूरी कविता में एक पंक्ति है, वह कवि की पूरी मनोदशा को व्यक्त कर देती है. " दुःख ही जीवन की कथा रही, क्या कहूं आज जो नहीं कही. " पूरा जीवन दुख की ही कहानी कहता रहा, अब कुछ भी कहने के लिए शेष नहीं बचा.
अवसाद घने कुहरे की तरह, इस तरह छा जाता है, कि सब कुछ अँधेरा और व्यर्थ लगने लगता है. इस शेर का यही भाव है. और यही ग़ालिब का अंदाज़ ए बयाँ उन्हें और सुखनवरों से अलग और विशिष्ट पहचान देता है. ं
© विजय शंकर सिंह
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