स्टील का मेरुदंड है मेरा, न टूटता है न झुकता है. कितने दर्प और अहंकार से कहा था उस ने, पर, रोज़, वक़्त के बदलते आयाम के साथ, देख रहा हूँ, उसे टूटते हुए, और झुकते हुए भी !!
© विजय शंकर सिंह
No comments:
Post a Comment