जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद पंजाब उबल पड़ा था। वहां मार्शल लॉ लागू कर दिया गया था । प्रेस पर सेंसर था। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश हुकूमत के स्वशासन का आश्वासन दिया गया था, वह भुला दिया गया था। इस हत्याकांड के बाद पंजाब में जो आक्रोश फैला उसने छात्रों को भी बहुत उद्वेलित किया। साइमन कमीशन का विरोध, लाला लाजपतराय पर बर्बर लाठी चार्ज, असेम्बली में बम विस्फोट, और सांडर्स की हत्या ने पंजाब को लगातार आक्रोशित रखा। छात्रों ने अपना एक संगठन बनाया पंजाब छात्र सभा। यह संगठन विद्यार्थियों के बीच सक्रिय था और छात्रों को दुनिया भर में हो रही साम्राज्यवाद विरोधी हलचलों से अवगत कराता था। इसी छात्र सभा का दूसरा अधिवेशन लाहौर में 19 अप्रैल 1929 को आयोजित किया गया। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस इस अधिवेशन के सभापति थे।1929 और 1930 के साल, लाहौर के ही इतिहास में नहीं बल्कि भारत के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण हैं। इसी समय कांग्रेस जो स्वशासन की मांग ब्रिटिश सरकार से कर रही थी ने 1930 में पूर्ण स्वतंत्रता की मांग का प्रस्ताव अंग्रेज़ो के समक्ष रख कर यह बता दिया कि उन्हें अब जाना ही होगा। उसी अधिवेशन के लिये भगत सिंह और बुटकेश्वर दत्त जो कारागार में थे, द्वारा जेल से भेजा गया यह पत्र 19अक्तूबर, 1929 को पंजाब छात्र संघ, लाहौर के दूसरे अधिवेशन में पढ़कर सुनाया गया था।
अब यह पत्र पढ़ें ।
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अब यह पत्र पढ़ें ।
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विद्यार्थियों के नाम पत्र ।
इस समय हम नौजवानों से यह नहीं कह सकते कि वे बम और पिस्तौल उठाएँ। आज विद्यार्थियों के सामने इससे भी अधिक महत्वपूर्ण काम है। आनेवाले लाहौर अधिवेशन में कांग्रे़स देश की आज़ादी की लड़ाई के लिए जबरदस्त लड़ाई की घोषणा करने वाली है। राष्ट्रीय इतिहास के इन कठिन क्षणों में नौजवानों के कन्धों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ पड़ेगी। यह सच है कि स्वतन्त्रता के इस युद्ध में अग्रिम मोर्चों पर विद्यार्थियों ने मौत से टक्कर ली है। क्या परीक्षा की इस घड़ी में वे उसी प्रकार की दृढ़ता और आत्मविश्वास का परिचय देने से हिचकिचाएँगे? नौजवानों को क्रांति का यह सन्देश देश के कोने-कोने में पहुँचाना है, फैक्टरी कारखानों के क्षेत्रों में, गंदी बस्तियों और गाँवों की जर्जर झोपड़ियों में रहने वाले करोड़ों लोगों में इस क्रांति की अलख जगानी है, जिससे आजादी आएगी और तब एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण असम्भव हो जाएगा। पंजाब वैसे ही राजनीतिक तौर पर पिछड़ा हुआ माना जाता है। इसकी भी जिम्मेदारी युवा वर्ग पर ही है। आज वे देश के प्रति अपनी असीम श्रद्धा और शहीद यतीन्द्रनाथ दास के महान बलिदान से प्रेरणा लेकर यह सिद्ध कर दें कि स्वतन्त्रता के इस संघर्ष में वे दृढ़ता से टक्कर ले सकते हैं।
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19 अक्टूबर 1929 का यह पत्र, 22 अक्तूबर, 1929 के ट्रिब्यून (लाहौर) में प्रकाशित किया गया। इस पत्र के भेजे जाने का उद्देश्य छात्रों का हौसला बढाना था।
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19 अक्टूबर 1929 का यह पत्र, 22 अक्तूबर, 1929 के ट्रिब्यून (लाहौर) में प्रकाशित किया गया। इस पत्र के भेजे जाने का उद्देश्य छात्रों का हौसला बढाना था।
© विजय शंकर सिंह
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