Friday, 9 March 2018

सुप्रीम कोर्ट ने इच्छामृत्यु को कुछ शर्तों के साथ वैधानिक अधिकार माना - एक चर्चा / विजय शंकर सिंह

अब आप अपनी इच्छा से मर सकते हैं। लेकिन हम सब नहीं बल्कि वे बेचारे बेबस लोग ऐसी लाईलाज मर्ज से पीड़ित हों जिनकी कोई दवा ही नहीं हो और वे तिल तिल कर मरने के लिये अभिशप्त हों। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह बात कही है।
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A Constitution Bench, headed by Chief Justice of India Dipak Misra, approved “living will” for terminally ill patients. “Individual can decide when to give up life support system. Life support can be removed only after statutory medical board declares patient to be incurable,” the court said.
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अक्सर ऐसे लाइलाज मर्ज से पीड़ित रोगी लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रहते हैं। अदालत के अनुसार रोगी यह तय कर सकता है कि अब उसे लाइफ सपोर्ट सिस्टम की कोई ज़रूरत नहीं है। लेकिन वह यह भी तभी कर पायेगा जब डॉक्टर यह लिख कर दे दे कि अब उसके बीमारी की कोई दवा नहीं है। न ठीक हो सकने वाले असाध्य रोगों से जूझते हुये रोगियों के लिये सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले से कुछ राहत मिलेगी।

इच्छा-मृत्यु अर्थात यूथनेशिया (#Euthanasia) मूलतः ग्रीक (यूनानी) शब्द है। जिसका अर्थ Eu=अच्छी, Thanatos= मृत्यु होता है। यूथेनेसिया, इच्छा-मृत्यु या मर्सी किलिंग (दया मृत्यु) पर दुनियाभर में बहस जारी है। इस मुद्दे से क़ानूनी के अलावा मेडिकल और सामाजिक पहलू भी जुड़े हुए हैं। यह पेचीदा और संवेदनशील मुद्दा माना जाता है। दुनियाभर में इच्छा-मृत्यु की इजाज़त देने की मांग बढ़ी है। मेडिकल साइंस में इच्छा-मृत्यु यानी किसी की मदद से आत्महत्या और सहज मृत्यु या बिना कष्ट के मरने के व्यापक अर्थ हैं। क्लिनिकल दशाओं के मुताबिक़ इसे परिभाषित किया जाता है।

अमेरिकी महिला टेरी शियावो के मामले से इस मुद्दे पर बहस छिड़ी । 41 साल की टेरी शियावो पिछले साल चल बसीं। फ़्लोरिडा की इस महिला को 1990 में दिल का दौरा पड़ा था। उनका दिमाग़ तब से मौत आने तक सुन्न ही रहा। टेरी की जीवन-मृत्यु को लेकर सात साल तक क़ानूनी लड़ाई चली थी। टेरी के पति चाहते थे कि उनकी पत्नी त्रासदायी जीवन से मुक्ति पाकर मौत की गोद में आराम करे. लेकिन टेरी के माता-पिता अपनी बेटी को जीवित रखना चाहते थे। आख़िरकार टेरी के पति को अदालत से मंज़ूरी मिल गई। इसके बाद टेरी की आहार नली को हटा लिया गया था।

भारत में भी कुछ ऐसे मामले सामने आए जहां मरीज़ के रिश्तेदार या स्वयं मरीज़ ने अपनी मौत की इच्छा जताई. बिहार पटना के निवासी तारकेश्वर सिन्हा ने 2005 में राज्यपाल को यह याचिका दी कि उनकी पत्नी कंचनदेवी, जो सन् 2000 से बेहोश हैं, को दया मृत्यु दी जाए.

बहुचर्चित व्यंकटेश का प्रकरण अधिक पुराना नहीं है। हैदराबाद के इस 25 वर्षीय शख़्स ने इच्छा जताई थी कि वह मृत्यु के पहले अपने सारे अंग दान करना चाहता है। इसकी मंज़ूरी अदालत ने नहीं दी।

इसी प्रकार केरल हाईकोर्ट द्वारा दिसम्बर 2001 में बीके पिल्लई जो असाध्य रोग से पीड़ित था, को इच्छा-मृत्यु की अनुमति इसलिए नहीं दी गई क्योंकि भारत में ऐसा कोई क़ानून नहीं है।

2005 में काशीपुर उड़ीसा के निवासी मोहम्मद युनूस अंसारी ने राष्ट्रपति से अपील की थी कि उसके चार बच्चे असाध्य बीमारी से पीड़ित हैं। उनके इलाज के लिए पैसा नहीं है। लिहाज़ा उन्हें दया मृत्यु की इजाज़त दी जाए. किंतु अपील नामंज़ूर कर दी गई।

यूथेनेसिया आज विश्व में चर्चित विषय है। यह मृत्यु के अधिकार पर केंद्रित है। यूथेनेसिया समर्थक इसके लिए 'सम्मानजनक मौत' की दलील देकर ऐसे व्यक्ति को मृत्यु का अधिकार देने के पक्ष में हैं, जो पीड़ाजनक असाध्य रोगों से पीड़ित है अथवा नाममात्र को ज़िंदा है। भारतीय विधि आयोग (Law Commission) ने पिछले साल संसद को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में दया मृत्यु (mercy killing) को क़ानूनी जामा पहनाने की सिफ़ारिश की थी। हालांकि आयोग ने यह माना है कि इस पर लंबी बहस की गुंज़ाइश अभी बाक़ी है।
* 1995 ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी राज्य में यूथेनेसिया बिल को मंज़ूरी दी गई।
* 1994 में अमेरिकी के ओरेगन राज्य में यूथेनेसिया को मान्यता दी गई।
* अप्रैल 2002 में नीदरलैंड (हॉलैंड) में यूथेनेसिया को विशेष दशा में वैधानिक क़रार दिया गया।
* सितम्बर 2002 में बेल्जियम ने इसे मान्यता दी।
* 1937 से स्विट्ज़रलैंड में डॉक्टरी मदद से आत्महत्या को मज़ूरी है।

अब अदालत ने इसे भी कुछ प्रतिबंधों के साथ अनुमति देने की बात मान ली है। अदालत ने कहा,
" When the rainbow of life becomes colourless… life becomes still and frozen... sanctity of life is destroyed. Should we not allow them to cross the door and meet the death with dignity? For some, even their death could be moment of celebration,”
इसके विस्तृत दिशा निर्देश भी जारी किये जायेंगे।

इच्छामृत्यु भी दो प्रकार की होती है। स्वैच्छिक या एक्टिव यूथेनेसिया, या पैसिव इच्छामृत्यु और अन्य प्रकार भी है, एक्टिव इच्छा मृत्यु।

* स्वच्छिक इच्छा मृत्यु
मरीज़ की मंज़ूरी के बाद जानबूझकर ऐसी दवाइयां देना जिससे मरीज़ की मौत हो जाए. यह केवल नीदरलैंड और बेल्जियम में वैध है।

* एक्टिव यूथेनेसिया
मरीज़ मानसिक तौर पर अपनी मौत की मंज़ूरी देने में असमर्थ हो तब उसे मारने के लिए इरादतन दवाइयां देना. यह भी पूरी दुनिया में ग़ैरक़ानूनी है।

* पैसिव यूथेनेसिया
मरीज़ की मृत्यु के लिए इलाज बंद करना या जीवनरक्षक प्रणालियों को हटाना. इसे पूरी दुनिया में क़ानूनी माना जाता है। यह तरीक़ा कम विवादास्पद है।

© विजय शंकर सिंह

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