Saturday, 31 March 2018

भगत सिंह का साहित्य - 21 - छोटे भाई कुलतार सिंह के नाम भगत सिंह का अंतिम पत्र / विजय शंकर सिंहः

भगत सिंह कुल  पांच भाई और एक बहन थे। भाइयो के नाम, कुलतार सिंह, राजिंदर सिंह, जगत सिंह, कुलबीर सिंह और बहन का नाम बीबी अमर कौर था। भगत सिंह के मुक़दमे की सुनवाई हो गयी थी। सज़ा तय थी। उन्हें फांसी की सज़ा मिलनी थी। ऐसे ही कठिन समय मे उनके छोटे भाई कुलतार सिंह उनसे जेल में मिलने आये। कुलतार भावुक हो गए थे और उनकी आंखें भर आयीं थी। भगत सिंह तब तो कुछ नहीं कहा पर 3 मार्च 1931 को उन्होंने अपने भाई कुलतार को एक पत्र लिखा। पत्र में उन्होंने उर्दू की एक नज़्म लिखी। यह नज़्म वे अक्सर गुनगुनाते थे। यह स्पष्ट नहीं है कि यह नज़्म उनके द्वारा लिखी गयी है या वे किसी और की नज़्म, जो उन्हें बहुत पसंद थी गुनगुनाते थे।
अब पत्र पढिये।
***
छोटे भाई कुलतार सिंह के नाम भगत सिंह का अंतिम पत्र ।

सेंट्रल जेल, लाहौर,
3 मार्च, 1931

अजीज कुलतार,

आज तुम्हारी आँखों में आँसू देखकर बहुत दुख हुआ। आज तुम्हारी बातों में बहुत दर्द था, तुम्हारे आँसू मुझसे सहन नहीं होते। बरखुर्दार, हिम्मत से शिक्षा प्राप्त करना और सेहत का ख्याल रखना। हौसला रखना और क्या कहूँ!

उसे यह फ़िक्र है हरदम,नया तर्जे-जफ़ा क्या है?
हमें यह शौक देखें,सितम की इंतहा क्या है?

दहर से क्यों खफ़ा रहे,चर्ख का क्यों गिला करें,
सारा जहाँ अदू सही, आओ मुकाबला करें।

कोई दम का मेहमान हूँ, ए-अहले-महफ़िल,
चरागे सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ।

मेरी हवाओं में रहेगी, ख़यालों की बिजली,
यह मुश्त-ए-ख़ाक है फ़ानी, रहे, रहे न रहे।

अच्छा रुख़सत। खुश रहो अहले-वतन; हम तो सफ़र करते हैं। हिम्मत से रहना। नमस्ते।

तुम्हारा भाई,
भगतसिंह
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यह नज़्म उस महान क्रांतिकारी की दृढ़ इच्छाशक्ति और दुर्दम्यता का दर्शन कराती है। यह नज़्म थोड़ी रूमानी और भावुकता भरी लग सकती है। पर यह पत्र जिन परिस्थितियों में लिखा गया होगा वहां जीवन का कड़वा यथार्थ था। उन्हें पता है उन्हें फांसी होगी ही। अपील आदि की सारी औपचारिकता केवल कानून का कानूनी रुप दिखाने के लिये है। ब्रिटिश हुक़ूमत ने एक भी काम बिना कानून बनाये और अपने कुकृत्यों को कानूनी जामा पहनाए बिना नहीं किया। वे खुद को लोकतांत्रिक, और कानून के पालनकर्ता के रूप में प्रतिष्ठित होने के लिये सदैव सन्नद्ध रहते थे। यहां भी अपील तक का नाटक चला। पर जज , वकील, और भगत सिंह तथा उनके साथियों को भी पता था कि फांसी ही होगी। न वकील, न दलील, न अपील। साम्रज्यवाद बहुत सशंकित और भयभीत रहता है। वह एक भी ऐसी चिनगारी शेष नहीं रहने देता है जिससे साम्राज्यवाद में आग फैल जाय। फिर भगत सिंह जो शोला थे। उन्हें वे कैसे छोड़ देते ?

© विजय शंकर सिंह

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