ग़ालिब - 35 .
आता है दाग ए हसरत ए दिल का शुमार याद
मुझ से मेरे गुनाह का हिसाब,ऐ खुदा,न मांग!!
आता है दाग ए हसरत ए दिल का शुमार याद
मुझ से मेरे गुनाह का हिसाब,ऐ खुदा,न मांग!!
Aataa hai dagh e hasarat e dil kaa shumaar yaad
Mujh se mere gunaah kaa hisaab , ai khuda na maang !1
- Ghalib.
Mujh se mere gunaah kaa hisaab , ai khuda na maang !1
- Ghalib.
है ईश्वर तू मुझसे मेरे पापों का हिसाब न मांग, क्यों कि ऐसा करते समय मुझे अपनी उन कामनाओं, इच्छाओं की याद आने लगती है तो पूरी नहीं हो पायीं हैं। ये अतृप्त कामनाएं मेरे मन मे कई दाग या चिह्न छोड़ गयीं हैं।
ग़ालिब इस शेर में खुद को अनगिनत पाप करने वाला मानते हैं । वह ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह उन के पापों का हिसाब न ले। पापों का हिसाब लेते समय जो अतृप्त कामनाएं हैं उन की याद ग़ालिब को व्यथित कर जाती है।'हज़ारों ख्वाहिशें' जिसकी हों, और' हर ख्वाहिश पर जिसका दम 'बराबर निकला हो,उससे यह हिसाब किताब अनंत अपूर्ण कामनाओं की याद तो दिलाएगा ही !
- विजय शंकर सिंह
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