पश्चिम बंगाल में रामनवमी पर दंगे हुए. अभी भी चल रहे हैं. चार लोगों की जान गई है अब तक. इन चारों में से एक था सिबतुला राशिदी. मौलाना इमदादुल राशिदी का बेटा. मौलाना राशिदी आसनसोल की एक मस्जिद में इमाम हैं. सिबतुला 16 बरस का था. 27 मार्च की दोपहर से लापता था. बुधवार देर रात उसकी लाश मिली. गुरुवार को घरवालों ने जाना, उनका सिबतुला कत्ल कर दिया गया है. शायद पीट-पीटकर जान ले ली गई उसकी.
इलाके के मुसलमानों का खून खौल गया. घरवाले सिबतुला की लाश दफनाने ईदगाह मैदान पहुंचे. वहां हजारों की भीड़ जुट गई. मौलाना राशिद को लगा, मुसलमान बौखलाकर जवाबी हिंसा कर सकते हैं. वो भीड़ के सामने खड़े होकर बोले- अगर मेरे बेटे की मौत का बदला लेने की कोशिश की, तो मैं मस्जिद छोड़ दूंगा. ये शहर भी छोड़ दूंगा.
"मैं अमन चाहता हूं. मेरा बेटा मुझसे छीन लिया गया. मैं नहीं चाहता कि कोई और परिवार अपने अपनों को खोये. मैं नहीं चाहता कि कोई और घर जले. मैं भीड़ से कह चुका हूं. अगर मेरे बेटे का बदला लेने के लिए कुछ किया जाता है, तो मैं आसनसोल छोड़कर चला जाऊंगा. अगर आप लोग मुझसे प्यार करते हैं, तो आप किसी पर अपनी एक उंगली भी नहीं उठाएंगे."
ऐसी ही एक घटना पहले भी घट चुकी है। दिल्ली में जब अंकित सक्सेना की हत्या एक मुस्लिम लड़की से प्रेम करने के कारण कुछ मुस्लिम धर्मान्धों ने कर दी थी तो इस पर भी दंगों की राजनीति करने वाले कुछ नेता जब अंकित के घर पहुंचे तो अंकित के पिता ने उन्हें यही कहा कि मेरे बेटे की मौत के नाम पर अपना हित मत साधिये। वे वहां से चले गए और दिल्ली एक संकट से बच गयी।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम को संघ ने दंगाई राम के रूप में बदल कर रख दिया है। अब राम का स्मरण होते ही, न तो वाल्मीकि के राम की क्षवि उभरेगी और न तुलसी के लोकरंजक राम की। कबीर और गांधी के राम की तो बात ही न कीजिये। अब उभरेगी तलवार उठाये दंगाइयों की जो गली गली उपद्रव फैला रहे है। टीवी से निःसृत ज्ञान को ही परम ज्ञान मानने वाली पीढ़ी, मुझे डर है कि कहीं राम को एक लड़ाकू, और उपद्रवी रूप में ही न देखने लग जाय। अब तो रामचरितमानस भी कम ही पढ़ा जाता है। राम का यह दुःखद रूपांतरण निंदनीय है। राम अब आप अपनी खुद सुध लें।
© विजय शंकर सिंह
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