Wednesday, 28 March 2018

रमाशंकर विद्रोही की एक कविता - दंगो के व्यापारी / विजय शंकर सिंह



दंगों के व्यापारी
न कोई ईसा मसीह मानते हैं,
और न कोर्ट अबू बेन अधम।
उनके लिए जैसे चिली, वैसे वेनेजुएला,
जैसे अलेंदे, वैसे ह्यूगो शावेज,
वे मुशर्रफ और मनमोहन की बातचीत भी करवा सकते हैं,
और होती बात को बीच से दो-फाड़ भी
कर सकते हैं।
दंगों के व्यापारी कोई फादर-वादर नहीं
मानते,
कोई बापू-सापू नहीं मानते,
इन्हीं लोगों ने अब्राहम लिंकन को भी मारा,
और इन्हीं लोगों ने महात्मा गांधी को भी।
और सद्दाम हुसैन को किसने मारा?
हमारे देश के लम्पट राजनीतिक
जनता को झांसा दे रहे हैं कि
बगावत मत करो!
हिंदुस्तान सुरक्षा परिषद् का
सदस्य बनने वाला है।
जनता कहती है-
भाड़ में जाये सुरक्षा परिषद!
हम अपनी सुरक्षा खुद कर लेंगे।
दंगों के व्यापारी कह रहे हैं,
हम परिषद से सेना बुलाकर
तुम्हें कुचल देंगे।
जैसे हमारी सेनाएं नेपाल रौंद रही हैं,
वैसे उनकी सेनाएं तुम्हें कुचल देंगी।
नहीं तो हमें सुरक्षा परिषद का सदस्य
बनने दो और चुप रहो।
यही एक बात की गनीमत है
कि हिंदुस्तान चुप नहीं रह सकता,
कोई न कोई बोल देता है,
मैं तो कहता हूं कि हिंदुस्तान वसंत का दूत
बन कर बोलेगा,
बम की भाषा बोलेगा हिंदुस्तान!
अभी मार्क्सवाद जिंदा है,
अभी बम का दर्शन जिंदा है,
अभी भगत सिंह जिंदा है
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रमाशंकर यादव 'विद्रोही' ( 3 दिसम्बर 1957 से 8 दिसम्बर 2015 ) मूल रूप से ग्राम ऐरी फिरोजपुर, जिला सुल्तानपुर, उत्तरप्रदेश के रहने वाले थे। हिंदी के लोकप्रिय जनकवि थे। प्रगतिशील परंपरा के इस कवि की रचनाओं का एकमात्र प्रकाशित संग्रह 'नई खेती' है। इसका प्रकाशन इनके जीवन के अंतिम दौर 2011 ई में हुआ। वे स्नातकोत्तर छात्र के रूप में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय से जुड़े। यह जुड़ाव आजीवन बना रहा।
नितिन पमनानी ने विद्रोही जी के जीवन संघर्ष पर आधारित एक वृत्तचित्र आई एम योर पोएट (मैं तुम्हारा कवि हूँ) हिंदीऔर अवधी में बनाया । मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में इस वृत्तचित्र ने अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र का गोल्डन कौंच पुरस्कार जीता।

© विजय शंकर सिंह

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