“निकलो भैंचो! फिरंगी आ गए हैं”
“Come out Bhainchutes, Europeans have come”
[सिपाही मंगल पांडे के अपनी झोपड़ी से निकलते ही पहले शब्द; हवलदार शेख पलटू, 34वें नेटिव इंफ़ैंट्री, की औपचारिक दर्ज़ गवाही से उद्धृत]
रविवार, 29 मार्च, 1857; बैरकपुर छावनी
कलकत्ता के एक छोर पर स्थित इस छावनी की वह दोपहर सुस्त बीत रही थी। मेजर-सर्जेंट जेम्स ह्यूसन अपने बंगले के बरामदे पर धूप सेंकते हुए अधनंगे लेटे हुए थे। तभी एक नायक भागते हुए आए,
“साहब! एक सिपाही ने भांग पी रखी है, और गोलियों भरी बंदूक लेकर क्वार्टर-गार्ड के पास खड़ा है”
“अच्छा? मैं देखता हूँ कौन सरफिरा है। तुम तब तक एज़ुटेंट को खबर कर दो”
अपने हाथ में एक तलवार लिए ह्यूसन परेड मैदान की ओर बढ़े। उन्होंने दूर से देखा कि एक सिपाही ने हाथ में बंदूक ले रखी है। ऊपर रेजिमेंट की लाल धारीदार ड्रेस पहनी है, मगर नीचे पतलून के बजाय धोती है। वह कुछ करीब गए और आँखें मिला कर कहा,
“मुंगल पांढी! कंपनी नंबर फ़ाइव?”
सिपाही ने बंदूक उनकी ओर साधी और गोली चला दी। निशाना चूक गया और ह्यूसन भाग कर तंबू (बेल ऑफ़ आर्म्स) में छुप गए। वहाँ उन्होंने जमादार ईश्वरी पांडे से कहा, “तुम यहाँ क्या कर रहे हो? उसे गिरफ़्तार क्यों नहीं किया?”
“मैं अकेले क्या करता? नायक को आपके पास भेजा था, अब तक लौटा नहीं। हवलदार को फ़ील्ड-ऑफ़िसर के पास भेजा है।”
जमादार गणेश लाल और हवलदार मुक्ता प्रसाद पांडे मिल कर मंगल को समझाने पहुँचे। जेम्स थॉर्नटन ने गवाही में कहा कि वे मंगल पांडे को हथियार डालने कह रहे थे। वे अभी बातें ही कर रहे थे कि घोड़ों की टाप सुनाई दी। एज़ुटेंट लेफ़्टिनेंट हेनरी बॉग मैदान में पहुँचे।
“किधर है वह सिपाही?”
“आपकी बायीं तरफ़। आप दायीं तरफ़ भागिए। वह गोली चलाने वाला है!”, ह्यूसन तंबू से निकल कर चिल्लाए
गोली तो चल चुकी थी। हेनरी बॉग का घोड़ा धराशायी हुआ। वह एक पिस्तौल लेकर आगे बढ़े। मंगल पांडे को अगली गोली लोड करने में वक्त लग रहा था, तो बंदूक फेंक कर तलवार निकाल ली। बॉग ने बीस गज की दूरी से गोली चलायी, जो चूक गयी। उन्होंने पिस्तौल छोड़ कर तलवार उठा ली। पीछे से ह्यूसन भी तलवार लेकर आ गए।
मंगल पांडे ने पहले बॉग के बायें हाथ पर वार किया, और फिर गर्दन पर। आखिर बंदूक के कुंदे से मार कर उन्हें गिरा दिया। उसके बाद ह्यूसन पर तलवार से वार किया। ह्यूसन ने अपनी गवाही में लिखा है कि उसी वक्त किसी और सिपाही ने उन पर पीछे से वार किया, और वह गिर पड़े। उन्हें उस सिपाही का चेहरा याद नहीं। (सिपाही मेही लाल की गवाही के अनुसार यह वार सिपाही हीरा लाल तिवारी ने किया था। घटना के बाद तिवारी रेजिमेंट छोड़ कर चले गए थे।)
मंगल पांडे बॉग के कलेजे में तलवार उतारने ही जा रहे थे कि एक सिपाही शेख़ पलटू ने उन्हें पीछे से आकर दबोच लिया। तभी मैदान में कर्नल स्टीवन व्हीलर आए। कर्नल नियमित सिपाहियों को ईसाई धर्म-परिवर्तन के लिए प्रेरित करते थे, इस कारण उनसे पहले ही लोग भड़के हुए थे।
मंगल पांडे उनको देखते ही आग-बबूला हो गए और चिल्लाए, “ये गोरे हम सबका धर्म खत्म कर देंगे। गाय खिलाएँगे। ईसाई बनाएँगे।”
व्हीलर ने सिपाहियों से कहा, “गिरफ़्तार कर लो इसे!”
आगे उनका औपचारिक बयान है, “जमादार को मैंने तीन बार आदेश दिया और उसने कहा कि हमारे लोग नहीं जाएँगे। एक बार उसने बुझे मन से अपने सिपाहियों से कहा, तो वे कुछ कदम आगे बढ़ कर रुक गए। मुझे बाद में एक सिपाही ने बताया कि मंगल ब्राह्मण था, इसलिए उसे गिरफ़्तार करने कोई नहीं जा रहा था। आखिर मैं ब्रिगेडियर को बुलाने निकल गया।”
जितनी देर में ब्रिगेडियर और अन्य अफ़सर आते, मंगल पांडे घूम-घूम कर चिल्ला रहे थे, “निकल आओ पलटन! हमारा साथ दो! अपने धर्म की रक्षा करो!”
आखिर ब्रिटिश मेजर जनरल हियरसे अपने दोनों बेटों जॉन और एंड्रयू के साथ घोड़े पर पहुँचे।
उन्होंने सुना कि मंगल पांडे अन्य सिपाहियों को कह रहे थे, “तुम लोगों ने मुझे भड़काया। और अब भैंचो! मेरा साथ नहीं दोगे?” [मूल ब्रिटिश दस्तावेज में अपशब्द Bhainchutes प्रयोग]
हियरसे जैसे ही मंगल पांडे की ओर तेजी से बढ़े, गोली चल गयी। इस बार यह गोली मंगल पांडे ने स्वयं को मारी थी।
हियरसे का कथन है, “उसने बंदूक की नाल अपनी छाती की ओर की, और अपने पैर की उंगली से ट्रिगर दबायी। यह गोली ठीक से चल नहीं पायी, उसकी छाती और गर्दन को रगड़ती हुई गुजर गयी। गार्ड चिल्लाने लगे- उसने खुद की जान ले ली। उसके कपड़ों ने आग पकड़ ली थी, जिसे बुझाने के लिए जमादार और अन्य सिपाही आ गए थे। एक सिख सिपाही उसके शरीर के नीचे से तलवार निकाल रहा था। डॉ. हचिन्सन ने ज़ख़्म की जाँच की, और उसे अस्पताल ले गए।”
हियरसे ने बाकी सिपाहियों को डाँट कर कहा, “तुम लोग भी उतने ही गुनाहगार हो। उसे पकड़ नहीं सकते थे?”
“साहब! उसने भांग-अफ़ीम ले रखी थी। पागल हो गया था वह”
“पागलों से तुम्हें डर लगता है? पागल हाथी या पागल कुत्ते के साथ क्या किया जाता है? पागल आदमी उनसे अलग नहीं होते। तुम्हें गोली मार देनी थी”
मंगल पांडे का कोर्ट-मार्शल किया गया, और 8 अप्रिल को उन्हें फांसी की सजा दी गयी। तब तक वह अपने जख्मों से कमजोर हो चुके थे। जमादार ईश्वरी पांडे का भी कोर्ट मार्शल किया गया, क्योंकि तीन सिख सिपाहियों ने गवाही दी कि उन्होंने मंगल पांडे को गिरफ़्तार करने से रोका था। 21 अप्रिल को उन्हें फाँसी की सजा दी गयी। हियरसे ने लिखा है,
“ईश्वरी बार-बार गिड़गिड़ा कर जान की भीख माँग रहा था। जब उसे फंदे से लटकाया गया, तो उसने दो बार बोला- सीताराम, सीताराम…मैंने सभी सिपाहियों को बुला कर दिखाया- देख लो! अगर विद्रोह करोगे तो तुम्हारा भी यही हश्र होगा।”
हश्र तो खैर अभी उन्हें देखना था। शेख पलटू को पुरस्कृत कर हवलदार का पद दिया गया। कुछ ही दिनों बाद उनके साथी बहला-फुसला कर छावनी के किसी कोने में ले गए, और मार डाला। सिपाहियों में यह विभाजन होने लगा था कि कौन साथ है, कौन नहीं। मंगल पांडे ने एक चिनगारी जलायी थी।
अब यह आग कलकत्ता से मेरठ तक पहुँच रही थी।
(क्रमशः)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
1857 की कहानी - एक (19)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/10/1857-19.html
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