गांधी और उनके स्वयंसेवकों ने, 6 अप्रैल 1930 को, सुबह साढ़े आठ बजे तक नमक कानून तोड़ने का कार्यक्रम पूरा कर लिया था। छोटे से गड्ढे में जमा प्राकृतिक नमक की एक गांठ उठा और, उसे भुरभुराकर गांधी ने आसमान में उछाल दिया। हवा में उछाला हुआ, वह एक चुटकी नमक, विश्व के सबसे बड़े साम्राज्य, जिसका दावा था कि, वह, लहरों पर शासन करता था और उसके राज में सूरज नहीं डूबता था, को एक चुनौती थी। सैकड़ों लोगों ने यह दृश्य देखा और गांधी जी को कहते सुना, जब उन्होंने, अपने हाथ में नमक की एक गांठ उठाते हुए कहा था, 'इससे मैं ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला रहा हूं।' तब वहां सरोजनी नायडू थीं, जनता थी, और था जनता का तुमुल घोष। वहां एक भी पुलिसकर्मी या आबकारी अधिकारी मौजूद नहीं था। जो थे भी, वे दूर थे। यह घटना, विश्व इतिहास की उन महान घटनाओं में शुमार की जाती है, जिसने इतिहास की गति और धारा को बदल दिया है।
नमक-कानून तोड़ते ही, गांधीजी का यह वक्तव्य, सार्वजनिक हुआ, “नमक-कानून विधिवत् भंग हो गया है। अब जो कोई सजा भुगतने को तैयार हो वह, जहाँ चाहे, और जब सुविधा देखे, नमक बना सकता है। मेरी सलाह यह है कि, कार्यकर्ता, सर्वत्र नमक बनाये जहाँ, उन्हें शुद्ध नमक तैयार करना आता हो, वहां तैयार कर, उसे काम में भी लायें और ग्राम वासियों को भी, उसका उपयोग सिखा दें, परन्तु उन्हें यह भी अवश्य बता दें कि, कानून तोड़कर, इस तरह, नमक बनाने पर, सजा भी हो सकती है। गांव वालों को पूरी तरह, यह बात, समझा दिया जाय कि, नमक कर कानून में सजा, क्या क्या रहता है और, उस कानून को किस प्रकार तोड़ा जाय जिससे, नमक कर न लग सके। गांव वालों को यह भी साफ-साफ समझा देना चाहिए कि, समुद्र के पास दरारों और गड्ढों में प्रकृति का बनाया हुआ नमक मिलता है। गांव वाले इसे अपने और, अपने पशुओं को देने के काम में ला सकते हैं और जिन्हें चाहिए, उनके हाथों बेच भी सकते हैं। हां, यह भली-भांति समझ लेना चाहिए कि, ऐसा करने वाले लोगों को, नमक कानून भंग करने के, अपराध में सरकार, सजा भी दे सकती है और नमक विभाग के कर्मचारी दूसरी तरह से भी दंडित कर सकते हैं।"
आगे वे कहते हैं, "नमक कर के खिलाफ यह लड़ाई, राष्ट्रीय सप्ताह भर, अर्थात् 13 अप्रैल तक जारी रहनी चाहिए। जो इस पवित्र कार्य में शरीक न हो सके, उन्हें विदेशी वस्त्र बहिष्कार और खादी प्रचार के लिए काम करना चाहिए। उन्हें अधिक से अधिक खद्दर बनवाने का भी प्रयत्न करना नाहिए । इस काम के अलावा, मदिरा निषेध के बारे में मैं, भारतीय महिलाओं के लिए अलग से सन्देश तैयार कर रहा हूँ। मेरा विश्वास दिन प्रतिदिन दृढ़ होता जा रहा है कि, स्वाधीनता प्राप्ति में, स्त्रियां पुरुषों से अधिक सहायक हो सकती हैं। मुझे लगता है कि, अहिंसा का अर्थ, वे पुरुषों से अच्छा तमझ सकती हैं। यह इसलिए नहीं कि, वे अबला हैं। पुरुष अहंकार वश, उन्हें ऐसा ही समझते हैं। बल्कि सच्चे साहस और आत्मत्याग की भावना उनमें पुरुषों से कहीं अधिक है ।"
स्कूलों के बहिष्कार पर गांधी जी ने कहा, “सरकारी या सरकार द्वारा नियन्त्रित शिक्षण संस्थाओं के छात्र यदि, इन सजाओं (गुलामी) के बाद भी वे, संस्थायें नहीं छोड़ेंगे तो, मुझे दुःख होगा । इतना विश्वास रख सकता हूं कि, वह (सरकार) हमारी बहनों से लड़ाई मोल नहीं लेगी।" हालांकि स्त्रियों के, सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के विषय में गांधीजी ने नवसारी में कहा था, "स्त्रियों को पुरुषों के साथ नमक की कढाइयों की रक्षा नहीं करनी चाहिए। मैं सरकार को, स्त्रियों द्वारा चुनौती देने को, उचित नहीं मानता हूं। जबतक सरकार की 'कृपा' पुरुषों तक ही सीमित रहती है, तब तक पुरुषों को ही लड़ना चाहिए। जब सरकार सीमोल्लंघन करे तब भले ही स्त्रियां को जी खोलकर साथ देना चाहिए। स्त्रियों के पास बहुत से घरेलू काम होते हैं।"
(पट्टाभि सीतारमैया, कांग्रेस का इतिहास )
उसी दिन दांडी के सत्याग्रह स्थल पर ही, फ्री प्रेस ऑफ इंडिया के रिपोर्टर ने गांधी जी का साक्षात्कार लिया। गांधी जी ने अखबार के रिपोर्टर को बताया, "अब जबकि, नमक कानून का तकनीकी या औपचारिक रूप से उल्लंघन कर दिया गया है, तो अब यह विधि उल्लंघन, हर किसी के लिए भी खुला है जो, नमक कानून के तहत दर्ज मुकदमे का सामना करने का जोखिम उठा सकता है। जहां वह चाहता है, और जहां भी उसे सुविधाजनक लगे, नमक बनाकर, यह कानून तोड़ सकता है। मेरी सलाह है कि, एक मजदूर को हर जगह नमक बनाना चाहिए और, जहां वह साफ नमक बनाना जानता है, वहां उसका इस्तेमाल करना चाहिए और गांव वालों को भी ऐसा ही करने का निर्देश देना चाहिए। उसे ग्रामीणों को बताना भी चाहिए कि, उस पर मुकदमा चलाये जाने का जोखिम है। दूसरे शब्दों में, ग्रामवासियों को नमक कानून तोड़े जाने की घटना के बारे में पूरी तरह से निर्देश दिया जाना चाहिए और इसके संबंध में कानूनों और विनियमों के बारे में बताया जाना चाहिए, ताकि नमक कर को निरस्त करने के लिए यह आंदोलन तेज किया जा सके और ग्रामीणों को यह पूरी तरह से, यह स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए कि, यह कानून का उल्लंघन है और यह उल्लंघन, जानबूझकर किया जा रहा है। यह खुलेआम होना चाहिए और किसी भी तरह से चोरी-छिपे नहीं होना चाहिए। यह ज्ञात होने पर कि वे नमक का निर्माण कर सकते हैं या समुद्र के किनारे की खाड़ियों और गड्ढों में प्राकृतिक नमक ले सकते हैं, तो उन्हे, इसे अपने लिए और अपने मवेशियों के लिए इस्तेमाल कर लेना चाहिए, और यदि कोई इसे खरीदना चाहे तो इसे खरीदने वालों को वे बेच भी सकते हैं। इस प्रकार राष्ट्रीय सप्ताह के दौरान 13 अप्रैल तक नमक कर के खिलाफ युद्ध जारी रखा जाना चाहिए। जो लोग अब इस पवित्र कार्य में लगे हुए हैं, वे विदेशी कपड़ों के बहिष्कार और खद्दर के उपयोग के लिए, जोरदार प्रचार में खुद को समर्पित कर दें। उन्हें यथासंभव खद्दर बनाने का भी प्रयास करना चाहिए। इस संबंध में और शराबबंदी के संबंध में, मैं भारत की उन महिलाओं के लिए एक संदेश तैयार कर रहा हूं, जिन्हें बारे में, मैं अधिक से अधिक आश्वस्त हो रहा हूं, कि, जो स्वतंत्रता प्राप्ति की दिशा में पुरुषों की तुलना में अधिक, योगदान दे सकती हैं। मुझे लगता है कि वे पुरुषों की तुलना में अहिंसा के योग्य व्याख्याकार होंगी, इसलिए नहीं कि वे कमजोर हैं, जैसा कि पुरुष अपने अहंकार के कारण, उन्हें मानते हैं, बल्कि इसलिए कि, उनमें अधिक साहस या सही प्रकार और आत्म-बलिदान की असीम रूप से अधिक भावना है।"
(महात्मा गांधी, कलेकटेड वर्क्स, 49:34)
6 अप्रैल को गांधी द्वारा सभा को संबोधित करने के बाद लगभग दो तोला नमक, जो गांधी जी ने नमक कानून तोड़ कर बनाया था, उसे साफ किया गया और उस नमक को नीलाम किया गया। उसकी बोली, अहमदाबाद के एक मिल मालिक ने लगाई और, वह दो तोला नमक, मिल मालिक, सेठ रणछोड़ दास शोधन ने नीलामी में खरीदा। गांधी की दांडी यात्रा, जो, गाँव गाँव से होते हुए, गुजरी थी, उसका प्रभाव, गुजरात मे सबसे अधिक था। जनता ने, उनकी इस यात्रा में, काफी रुचि ली थी और उत्साह से भाग लिया था। पूरी यात्रा के दौरान, गांधीजी अपने सत्य और अहिंसा के पथ का प्रचार, दूर-दूर से आये हुए लोगों के बीच करते रहे और उन्होंने अपने इस सत्याग्रह में सम्मिलित हुए, सत्याग्रहियों पर सख्त अनुशासन लागू करने में भी, संकोच नहीं किया। नमक भारत की स्वतंत्रता की इच्छा का प्रतीक और नमक सत्याग्रह, जनजागरण का एक नया अभियान बन गया था। 6 अप्रैल को ही, उसी दिन 5,000 से अधिक सभाओं में कम से कम 50 लाख लोगों द्वारा पूरे भारत में नमक कानूनों को तोड़ा गया। स्वराज के लिए जो संघर्ष तेज होता जा रहा था, उसके प्रति पूरा देश, सचेत हो गया था। दांडी मार्च को विश्वव्यापी प्रचार मिला। जल्द ही सविनय अवज्ञा आंदोलन भारत के पश्चिमी, उत्तरी, मध्य, पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्रों में एक साथ फैल गया।
जैसे ही गांधी ने, दांडी में, नमक कानून तोड़ा, भारत के अन्य हिस्सों में भी, इसी तरह के उल्लंघन हो रहे थे। बंगाल में, सतीश चंद्र दासगुप्ता के नेतृत्व में स्वयंसेवक नमक बनाने के लिए सोदपुर आश्रम से कलकत्ता से सात मील दूर महिसबाथन गाँव तक चले। बंबई में के.एफ. नरीमन ने हाजी अली प्वाइंट तक, लघु यात्रा निकाला और पास के पार्क में, नमक तैयार किया। तमिलनाडु में सी. राजगोपालाचारी ने वेदारण्यम में अभियान का नेतृत्व किया। देश के सुदूर और अंदरूनी ग्रामीण क्षेत्रों में भी, नमक कानूनों का उल्लंघन हुआ। संयुक्त प्रांत कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, गणेश शंकर विद्यार्थी ने, कानपुर के श्रद्धानंद पार्क में, नमक बनाने का नेतृत्व किया।
बॉम्बे क्रॉनिकल, जिसने शुरू से ही, दांडी यात्रा और नमक सत्याग्रह पर अपनी नज़र रखा था ने, अपनी खबर में कहा, 6 अप्रैल को जो होना था, वह हो गया। अब तक (6 अप्रैल 1930 को गांधी जी द्वारा नमक कानून तोड़े जाने के बाद) भीड़ में से अन्य बहुत से लोग, समुद्र के गड्ढों में से, झुक कर अपने हाथों की हथेलियों में नमक इकट्ठा कर रहे थे। वे हंस रहे थे और गा रहे थे जैसे कि, वे किसी उत्सव पर छुट्टी मनाने आए हों। गांधी ने एक सवाल में कहा, "अब जबकि नमक कानून का तकनीकी या औपचारिक उल्लंघन किया जा चुका है, अब यह, हर किसी के लिए भी खुला है कि, वह नमक बनाकर, कानून तोड़े। सरकार से इसे खरीदने के बजाय कोई भी, जब चाहें, इसका निर्माण करने के लिए स्वतंत्र है।” "क्या होगा, यदि, सरकार आपको गिरफ्तार नहीं करती है तो ?" फ्री प्रेस के संवाददाता ने, जब गांधी जी से पूछा तो गांधी ने, प्रसन्न मुद्रा में, केवल एक वाक्य कहा, "ओह, मैं अवैध नमक का निर्माण जारी रखूंगा।"
(कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी, खंड 49, पृष्ठ 34,35)
गांधी जी को, न तो सरकार ने दांडी यात्रा के दौरान गिरफ्तार किया, और न ही, नमक कानून तोड़ने के बाद, 6 अप्रैल 1930 को, दांडी में गिरफ्तार किया। गांधी की गिरफ्तारी को लेकर, दिल्ली से लंदन तक, पक्ष और विपक्ष में बहुत सी बातें कही गई और वह एक रोचक विवाद है, जिसपर हम आगे आएंगे। सच तो यह है कि, सरकार ने उन्हें आगे भी, लगभग एक महीने तक गिरफ्तार नहीं किया, और गांधी का नमक सत्याग्रह, देश भर मे फैलता चला गया। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि, सरकार ने, अन्य सत्याग्रहियों के खिलाफ भी, वही रणनीति अपनाई, जो उसने गांधी जी की गिरफ्तारी को लेकर अपनाई थी। नमक सत्याग्रह के पूरे भारत में फैल जाने के कारण, सरकार ने अब, सत्याग्रहियों की गिरफ्तारी शुरू कर दिया। उसी दिन, 6 अप्रैल को, गांधी जी के बेटे, रामदास को, साबरमती आश्रम वासियों के एक बड़े समूह के साथ गिरफ्तार किया गया। बाद में, एक हफ्ता बाद, महात्मा गांधी के निजी सचिव और गांधी जी की अनुपस्थिति में, साबरमती आश्रम की व्यवस्था संभाल रहे, महादेव देसाई को भी गिरफ्तार कर लिया गया। इसी सत्याग्रह के सिलसिले में, कलकत्ता के मेयर ने जब, अपने साथी नागरिकों से, विदेशी कपड़े का बहिष्कार करने का आग्रह किया, तो उन्हें गिरफ्तार ही नहीं किया गया, बल्कि, छह महीने की सजा भी सुना दी गई। आर्थर हरमैन की किताब, गांधी एंड चर्चिल, द एपिक रायवलरी के अनुसार, "पूरे भारत में पांच हजार से अधिक अलग-अलग जगहों पर सत्याग्रह हुए थे। यह उपमहाद्वीप में अब तक का सबसे बड़ा और सबसे संगठित विरोध आंदोलन था।"
अब गांधी के निकट सहयोगियों ने सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व संभाल लिया था। सत्याग्रहियों की एक बड़ी भीड़ के साथ, डॉ राजेंद्र प्रसाद को, तब गिरफ्तार किया गया, जब घुड़सवार पुलिस ने, उन पर आरोप लगाया था कि वे (डॉ राजेंद्र प्रसाद), सत्याग्रह के दौरान, घोड़ों के खुरों के सामने लेट गए थे। हालांकि, घुडसवार पुलिस थम गई थी ओर चमत्कारिक रूप से, किसी को भी चोट नहीं आ पाई। लेकिन प्रदर्शनकारियों को, कांस्टेबलों द्वारा, शारीरिक रूप से उठाकर ट्रकों पर फेंकना पड़ा, ताकि जेल ले जाया जा सके, क्योंकि सत्याग्रहियों ने उठने और धरना स्थल से हटने को मना कर दिया था।
(लुई फिशर, द लाइफऑफ गांधी, 275)
16 अप्रैल को गांधी को, सूचना मिली कि, संयुक्त प्रान्त में, जवाहरलाल नेहरू को नमक कानून तोड़ने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया है। गांधी जी ने, जवाहरलाल नेहरू के पिता, मोतीलाल नेहरू को, उन्हे, एक सौभाग्यशाली पिता बताते हुए, बधाई का एक तार भेजा: "जवाहरलाल ने, (सत्याग्रह मे गिरफ्तार होकर) कांटों का ताज धारण किया है।"
(कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी, 49:102)
इस बीच, दांडी के पास सागर तट पर स्थित, आट गांव में, जहां नमक बहुतायत में उपलब्ध था, गांधी जी, व्यक्तिगत रूप से उन ग्रामीणों की, निगरानी कर रहे थे जो, अवैध नमक इकट्ठा कर रहे थे पर, इसे वे किसी को, दे नहीं पा रहे थे, क्योंकि आगे पुलिस, उनसे नमक लेने आने वालों को, गिरफ्तार कर ले रही थी। गांधी जी ने, बॉम्बे क्रॉनिकल के एक रिपोर्टर को बताया कि, "आट में "कोई हिंसा नहीं हुई थी। उनके लिए उनका नमक उनके लहू के समान प्रिय था। उन्हें उम्मीद थी कि वे अपने धैर्य और पीड़ा से, पुलिस का भी दिल बदल देंगे।"
(गांधी एंड चर्चिल, द एपिक राइवलरी पृ. 338)
अब इस आंदोलन में, गैर कांग्रेस और गैर गांधीवादी भी शामिल होने लगे। प्रसिद्ध लेखक, नीरद सी चौधरी, उस समय, कलकत्ता में 'द मंथली रिव्यू' के संपादक थे। वे एक पढ़े-लिखे, उदारवादी मानसिकता के, बंगाली बुद्धिजीवी थे तथा गांधी विचारों को लेकर वे, गांधी के प्रति संशयवादी भी रहे हैं। अपनी आत्मकथा, 'ऑटोबायोग्राफी ऑफ एन अननोन इंडियन' में उन्होंने गांधी जी के सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन को लेकर, अकसर प्रतिकूल मंतव्य लिखे हैं। नीरद सी चौधरी, बाद में इंग्लैंड में बस भी गए। ब्रिटिश साम्राज्य और अभिजात्य के प्रति उनमें स्वाभाविक अनुराग देखने को मिलता है। लेकिन, गांधी की दांडी यात्रा और सत्याग्रह के व्यापक प्रभाव से, उनका भी हृदय परिवर्तन हो गया। नीरद सी चौधरी के ही अनुसार,
"एक दोपहर, पक्षियों के कलरव और सिर के ऊपर चक्कर लगाने के साथ, मैं कलकत्ता के खारे पानी के दलदल में भटक गया। मैने देखा, गांधी के एक बंगाली अनुयायी, सतीश चंद्र दासगुप्ता ने, खारे पानी से भरे एक बर्तन को, जिसमे कीचड़ भी था, उबाला और उसमे से नमक निकाला। मैं खुद ही, कुछ पैसा देकर, नमक का एक छोटा पैकेट लेने के लिए, खुद को, मजबूर महसूस किया। लेकिन, मैने उस नमक का कभी, इस्तेमाल नहीं किया। "शायद," मैं कई साल बाद यह लिखूं कि, वह एक पवित्र नमक था, उपभोग के लिए तो बहुत ही पवित्र।"
(नीरद सी चौधरी, द ग्रेट एनार्क, 276 278)
ब्राउन की किताब, द सिविल डिसओबिडियेंस में एक अज्ञात प्रत्यक्षदर्शी के हवाले से सत्याग्रह के प्रति लोगों के उत्साह का उल्लेख किया गया है। उक्त किताब के अनुसार, "एक अन्य चश्मदीद ने बंबई के एस्प्लेनेड मैदान में, सत्याग्रहियों को समुद्र के पानी को उबालते हुए देखा, जो कांग्रेस के स्वयंसेवकों द्वारा हांथ में हांथ थामे हुए लोगों से बने घेरे से घिरा था। एक स्थान पर तो, पानी उबालने का स्थान तीन तीन गोल घेरों में, एक दूसरे का हांथ पकड़े, कांग्रेस वॉलंटियर घेरों में खड़े थे। एक जगह पर तो कम से कम ऐसे तीस घेरे थे, जहां नमक, समुद्री पानी उबाल कर, बनाया जा रहा था, जिसमे तीन घेरे सिखों के और एक महिलाओं का था।" इस घेरेबंदी की व्यवस्था ने, पुलिस को, नमक कानून तोड़ने वाले सत्याग्रहियों की गिरफ्तारी के लिए मजबूर कर दिया। पुलिस की लाठी से, बहुत सारे सत्याग्रहियों को चोटें आई थी। लेकिन, भीड़ हिंसक नहीं हुई और न, उन पर पथराव किया।"
(ब्राउन, द सिविल डिसओबिडियेंस, पृ.112)
बंबई की ही एक और घटना, कमलादेवी चट्टोपाध्याय से जुड़ी हैं, जो इस यात्रा में शामिल होने के लिए गांधी जी से मिली थीं। उन्होंने, शनिवार, 12 अप्रैल 1930, को, पिछले एक सप्ताह में अपने द्वारा बनाए गए प्रतिबंधित नमक लेकर, उसे बेचने के लिए, बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में, पहुंच गई। वहां उन्हे, लोग, ट्रेडिंग रिंग में ले गए, उनका स्वागत, 'महात्माजी की जय' के नारों से हुआ और उनकी भी, जय जयकार हुई। सत्याग्रही नमक खरीदने के लिए, शेयर बाजार के, दलालों और उनके क्लर्कों ने, कमलादेवी चट्टोपाध्याय को, चारों ओर से घेर लिया। खरीदने वाले अधिक और नमक कम पड़ गया। जिसके परिणामस्वरूप नमक के पैकेट नीलामी द्वारा बेचे जाने लगे। नीलामी, आधे घंटे तक चली, जिसमें कुल मिलाकर लगभग 4000 रुपये की वसूली हुई। अगले दिन, बॉम्बे क्रॉनिकल ने कमलादेवी चट्टोपाध्याय की एक बड़ी तस्वीर को 'प्रमुख महिला, जिसने कानून तोड़ा, के रूप में वर्णित किया।
7 अप्रैल 1930 को, जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखकर महादेव देसाई ने गुजरात के मिजाज और आंदोलन का विस्तृत वर्णन किया। महादेव देसाई, साबरमती आश्रम में मोर्चा संभाले थे, जबकि उनके बॉस, "गांधी जी, सागर तट पर, 'सभाओं को संबोधित कर रहे थे। ऐसा सघन संबोधन करते हुए, गांधी जी को, एक ही क्षेत्र में, मैने (महादेव देसाई) अपने जीवन में कम ही देखा है। दस से पंद्रह हजार लोग प्रतिदिन, 6.30 बजे गांधी जी मिलते हैं और, अंधेरा फैलने से पहले, तितर-बितर हो जाते हैं। सिर्फ (गांधी जी का) भाषण सुनने के लिए और वह उनसे (गांधी जी) जिसे स्पीकर कहलाने का कोई शौक भी नहीं है।"
अपने इस पत्र के साथ, महादेव देसाई ने, 6 अप्रैल को दांडी में गांधी द्वारा निर्मित नमक का एक अंश भी, संलग्न किया (जिसे कार द्वारा, दांडी से, साबरमती ले जाया गया था)। और यह भी लिखा कि, "इसे 'या तो स्मृति चिन्ह के रूप में रखा जाए, या नीलामी द्वारा बेच दिया जाए। इसकी कीमत, एक हजार रुपये से कम नहीं होनी चाहिए।" महादेव देसाई ने, अभी-अभी गांधी द्वारा बनाया एक पैकेट, 501 रुपये में बेचा था। उन्हें उम्मीद थी कि, जवाहरलाल, अपने बड़े करिश्मे और अपील के साथ, कम से कम उससे दुगुनी राशि में, उसे, बेच सकेंगें।"
गांधी जी के पुत्र रामदास को 6 अप्रैल को, पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका था। गुजरात के कई, अन्य सत्याग्रही भी गिरफ्तार किए जा चुके थे। अप्रैल के दूसरे सप्ताह में जमनालाल बजाज, जवाहरलाल नेहरू और देवदास गांधी को भी गिरफ्तार किया गया। सत्याग्रहियों की इन गिरफ्तारियों के जवाब में, विट्ठलभाई पटेल ने, विधान सभा के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। विट्ठलभाई ने 20 अप्रैल 1930 को वायसराय को, पत्र लिखा कि, उन्होंने हमेशा यह स्पष्ट कर दिया था कि, 'कांग्रेस और गांधी अकेले किसी भी हद तक कोई भी आंदोलन ले जाने की स्थिति में थे, और, गोलमेज सम्मेलन में, ब्रिटिश सरकार, गांधी जी और कांग्रेस नेताओं को भाग लेने के लिए राजी नहीं कर सकी।"
इन गिरफ्तारियों पर, गांधी जी ने एक दूसरा वक्तव्य जारी किया, "मुझे अब तक जो सूचनायें मिली हैं, उनसे मालूम पड़ता है कि, गुजरात ने सामूहिक अवज्ञा का जो ज्वलन्त प्रमाण दिया है, उसका सरकार पर असर होने लगा है। उसने (सरकार ने) प्रमुख व्यक्तियों को गिरफ्तार करने में कोई विलम्ब नहीं किया। मैं यह भी जानता हूं कि, ऐसी ही कृपा सरकार ने अन्य प्रान्तों के कार्यकर्त्ताओं पर भी अवश्य की होगी। इस पर उन्हें बधाई। यदि सत्याग्रहियों को सरकार, जो चाहे सो करने देती तो, आश्चर्य की ही बात होती। साथ ही यदि वह, बिना अदालती कार्रवाई के उनके जान-माल पर हाथ डालती तो वह भी पाशविकता होती। व्यवस्थित रूप से मुकदमे चलाकर सजायें देने पर कौन आपत्ति कर सकता है? कानून-भंग का यह नतीजा तो सीधा ही है । कारावास और ऐसी ही अन्य कसौटियों पर तो सत्याग्रही को उतरना ही पड़ता है उसका उद्देश्य तभी पूरा होता है जब वह स्वयं भी विचलित न हो और उसके चले जाने पर वे लोग भी न घबरायें जिनका वह प्रतिनिधि है । यही अवसर है कि सबको स्वतः अपना नेता और अपना ही अनुयायी बन जाना चाहिए।"
क्रमशः...
(विजय शंकर सिंह)
गांधी की दांडी यात्रा (12)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/10/12-7-1930.html
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