Sunday, 6 November 2022

केवल जिहादी साहित्य का किसी के पास से मिलना, गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की धारा 20 के तहत अपराध नहीं होगा / विजय शंकर सिंह

दिल्ली में एक विशेष एनआईए अदालत ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है कि, केवल जिहादी साहित्य का किसी के पास से मिलना, गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की धारा 20 के तहत अपराध नहीं होगा। यह फैसला एनआईए बनाम मो.  अमीन उर्फ अभु याह्या और अन्य के मुकदमे में आया है। 

विशेष न्यायाधीश धर्मेश शर्मा ने कहा कि,
"केवल विशेष धार्मिक दार्शनिक दृष्टिकोण के जिहादी साहित्य को, अपने पास रखना, यूएपीए की धारा 20 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा, जब तक कि, आतंकवादी कृत्यों को अंजाम देने के लिए, इस तरह के दर्शन के, निष्पादन को दिखाने के लिए, अन्य दस्तावेज या सामग्री न हो।"

अदालत ने आगे कहा,
"इसके अलावा, यह मानने के लिए कि, केवल एक विशेष धार्मिक दर्शन वाले जिहादी साहित्य को अपने पास रखना, एक अपराध होगा, हालांकि, इस तरह के साहित्य को कानून के किसी भी प्रावधान के अंतर्गत, स्पष्ट रूप से या विशेष रूप से, प्रतिबंधित नहीं किया गया है, जब तक कि, उस सोच के क्रियान्वयन के बारे में, अभियुक्त के पास से अन्य कोई सामग्री न मिली हो, जिससे, आतंकवादी कृत्यों को किया जा सके। इस तरह का प्रस्ताव संविधान के अनुच्छेद 19 द्वारा दी गई स्वतंत्रता और अधिकारों की गारंटी के विपरीत है।"

विशेष न्यायालय, राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआईए द्वारा दायर एक आपराधिक मामले, में ग्यारह आरोपियों के संबंध में, आरोप तय कर रहा था। अदालत ने कहा कि, इंटरनेट, में तमाम जेहादी साहित्य,  इंटरनेट सहित, विभिन्न चैनलों के माध्यम से पब्लिक डोमैन में उपलब्ध हैं। इस तरह का साहित्य भले ही उसकी प्रकृति, उग्रवादी हो, को केवल अपने पास रखना, उसे पढ़ना ही अपराध का कारक नहीं हो जाता है। अपराध के लिए मेंसरिया यानी दुराशय का होना जरूरी है। दुराशाय, उस कृत्य के अंजाम देने की कोशिश से ही साबित हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट का भी यही दृष्टिकोण, सेडिशन धारा 124A आईपीसी के बारे के, केदार नाथ के मामले और उसके बाद आने वाले अनेक मामलों में आया है कि, महज लिखने, पढ़ने बोलने के आधार पर किसी को देशद्रोह का अपराधी नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि, उसने हिंसा आदि जैसा कोई वास्तविक कृत्य या योजना को अंजाम न दिया हो। अदालत का दृष्टिकोण, अनायास होने वाली सरकार या पुलिस की प्रतारणा से भी बचाएगा। 

आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश) और 121 ए (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना) और धारा 17 (आतंकवादी अधिनियम के लिए धन जुटाना), 18 (साजिश) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए मुकदमा चलाया गया था।  ), 18बी (आतंकवादी कृत्य के लिए किसी व्यक्ति की भर्ती), 20 (आतंकवादी संगठन का सदस्य होने के नाते), यूएपीए के 38, 39 और 40 का मुकदमा दर्ज किया गया था। यूएपीए की धारा 20 आतंकवादी गिरोह या संगठन का सदस्य होने के लिए सजा का प्रावधान करती है।

विशेष न्यायाधीश धर्मेश शर्मा ने कहा कि हालांकि आरोपी शायद आईएसआईएस के सदस्य बनने की इच्छा रखते थे, लेकिन यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं था कि वे सक्रिय सदस्य थे। अंत में, कोर्ट ने पाया कि आईपीसी की धारा 121-ए और यूएपीए की धारा 18, 18बी, 20 या 17 के साथ पठित 40 के तहत आरोप तय करने के लिए कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनाया गया था।

हालांकि, यह निर्धारित किया गया कि, आईपीसी की धारा 120 बी के तहत यूएपीए की धारा 2 (ओ) और 13 के साथ यूएपीए की धारा 38 और 39 के साथ-साथ आठ आरोपियों के संबंध में आरोप तय करने का मामला था। उग्रवादी साहित्य तक पहुँचाने के साथ, वे, समान विचारधारा वाले लोगों से, समर्थन माँगते हुए सक्रिय रूप से इसका प्रसार भी कर रहे थे।

एक आरोपी, ओबैद हामिद मट्टा के संबंध में, अदालत ने फैसला सुनाया कि उसने प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होने का दावा नहीं किया, बल्कि अन्य गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त रहा और इस तरह, यूएपीए की धारा 13 के साथ पठित धारा 2 (0) के तहत अपराध किया।  .

आतंकी गतिविधियों के वित्तपोषण के आरोप में गिरफ्तार, एक 26 वर्षीय आरोपी को बरी कर दिया गया क्योंकि अदालत ने पाया कि उसने कभी आईएसआईएस का सदस्य होने का दावा नहीं किया और, उसने संगठन की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए कुछ नहीं किया।

केंद्र सरकार ने गैरकानूनी क्रियाकलाप (रोकथाम) अधिनियम (Unlawful Activities Prevention Act) को लेकर जानकारी साझा की है। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि इस कानून के तहत इन चार सालों में 386 आरोपियों को देश की विभिन्न अदालतों ने रिहा कर दिया।  केंद्रीय गृह राज्यमंत्री ने बताया कि, साल 2016-2022 के दौरान यूएपीए के तहत कुल 5 हजार 27 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें से विचाराधीन लोगों की संख्या 24,134 थी. केंद्रीय मंत्री ने बताया कि इस कानून के तहत जिन लोगों के खिलाफ केस चलाया गया उनमें से 212 आरोपियों को दोषी ठहराया गया और 386 को रिहा कर दिया गया। 

(विजय शंकर सिंह)

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