सुप्रीम कोर्ट ने कानून मंत्री के टेलीविजन साक्षात्कार के बारे में चिंता व्यक्त की, जिसने, कानून मंत्री ने, न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना की है। जजों की नियुक्ति से जुड़ी, एक याचिका की सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष, वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने पीठ का ध्यान कानून मंत्री द्वारा, की गई तीखी टिप्पणी की ओर आकर्षित किया कि "यह मत कभी मत कहिये कि, सरकार फाइलों, (जजों के नियुक्ति की सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की संस्तुति) पर बैठी है। यदि ऐसा है तो मत संस्तुति भेजिए।"
कानून मंत्री की टिप्पणी पर असहमति व्यक्त करते हुए, जस्टिस कौल ने भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी से कहा, "कई लोगों को कानून के बारे में संदेह हो सकता है। लेकिन जब तक यह कानून (कोलेजियम सिस्टम) है, यह देश का कानून है ... मैंने सभी प्रेस रिपोर्टों को नजरअंदाज कर दिया है, लेकिन यह किसी बड़े पद पर आसीन, व्यक्ति की तरफ से आया है ... ऐसा नहीं होना चाहिए था।"
जस्टिस कौल, टाइम्स नाउ समिट में कानून मंत्री किरन रिजिजू के बयानों का जिक्र कर रहे थे। रिजिजू ने कहा कि, कॉलेजियम सिस्टम को सुप्रीम कोर्ट ने ही मंजूरी दी थी और सवाल किया था कि "जो कुछ भी संविधान से अलग है, केवल अदालतों या कुछ न्यायाधीशों द्वारा लिए गए फैसले के कारण, उसे देश का समर्थन कैसे मिल सकता है?"
न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि सरकार एनजेएसी प्रणाली को लागू नहीं करने से नाराज नजर आ रही है। न्यायाधीश ने पूछा कि क्या कॉलेजियम की सिफारिशों को लंबित रखने का यह एक कारण हो सकता है ?
यह पीठ, जिसमें जस्टिस एएस ओका भी शामिल हैं, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा भेजे गए 11 नामों को केंद्र द्वारा अनुमोदित नहीं करने के खिलाफ, 2021 में एडवोकेट्स एसोसिएशन बेंगलुरु द्वारा दायर, एक अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
जस्टिस कौल ने कहा, "आम तौर पर, हम प्रेस में दिए गए बयानों पर ध्यान नहीं देते हैं। लेकिन मुद्दा यह है कि नामों को मंजूरी नहीं दी जा रही है। सिस्टम कैसे काम करता है? हमने अपनी पीड़ा व्यक्त की है।"
न्यायाधीश ने कहा कि "जब तक कॉलेजियम प्रणाली देश का कानून है, तब तक इसका पालन किया जाना चाहिए।"
इस प्रकार उन्होंने एजी को सरकार को "पीठ की भावनाओं" को व्यक्त करने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि केंद्र सिफारिशों पर न बैठे।
"ये वे नाम हैं जो डेढ़ साल से लंबित हैं। आप नामों को क्यों नहीं अनुमोदित करते हैं। नामों को इस तरह लंबित रखकर आप क्या कहना चाह रहे हैं। आप प्रभावी रूप से मिस्टर अटॉर्नी की नियुक्ति के तरीके को विफल कर रहे हैं। का पालन किया जाना चाहिए। कई सिफारिशें 4 महीने की सीमा पार कर चुकी हैं। हमें कोई जानकारी नहीं है। हमने अवमानना नोटिस जारी नहीं करके संयम बरता है।"
पीठ ने भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि देश के कानून का पालन किया जाए। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने पीठ को आश्वासन दिया कि वह इस मामले को सुलझाने का प्रयास करेंगे। मामले की अगली सुनवाई 8 दिसंबर को होगी।
लाइव लॉ की रिपोर्टिंग पर आधारित।
(विजय शंकर सिंह)
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