सुप्रीम कोर्ट ने आज, 11 नवंबर, को राजीव गांधी हत्याकांड के सभी छह दोषियों को समय से पहले रिहा करने का आदेश दे दिया।
कोर्ट ने दोषियों नलिनी श्रीहर, रॉबर्ट पेस, रविचंद्रन, सुथेनथिरा राजा उर्फ संथान, श्रीहरन उर्फ मुरुगन और जयकुमार को रिहा करने का आदेश दिया है। पीठ ने आदेश दिया है कि,
"अपीलकर्ताओं को निर्देश दिया जाता है कि यदि किसी अन्य मामले में इसकी आवश्यकता नहीं है तो वे स्वतंत्र हैं।"
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने 17 मई को पारित निर्देश के बाद, आज आदेश पारित किया, जिसमें मामले के एक अन्य दोषी पेरारिवलन को राहत दी गई थी। पीठ ने कहा कि पेरारीवलन का आदेश वर्तमान आवेदकों पर लागू है। कोर्ट ने कहा कि,
"तमिलनाडु सरकार ने सभी दोषियों को रिहा करने की सिफारिश की है, जिस पर राज्यपाल ने कार्रवाई नहीं की है।"
पीठ ने यह भी कहा कि दोषियों ने तीन दशक से अधिक समय तक जेल में बिताया है और जेल में उनका आचरण संतोषजनक था।
पेरारीवलन मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि, छूट के मामले में राज्यपाल राज्य कैबिनेट के फैसले से बाध्य थे। यह देखते हुए कि राज्यपाल द्वारा निर्णय लेने में अत्यधिक देरी के कारण पेरारीवलन की रिहाई जरूरी हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी रिहाई का आदेश देने के लिए अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल किया।
न्यायालय का दृष्टिकोण
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० रॉबर्ट पेस के मामले में, यह देखा गया है कि उनका आचरण संतोषजनक है और वह विभिन्न बीमारियों से पीड़ित हैं।
० जयकुमार के मामले में भी उसका आचरण संतोषजनक पाया गया है। उन्होंने विभिन्न अध्ययन भी किए हैं
० सुतंथीरा राजा के मामले में भी, यह पाया गया कि, वह कई तरह की बीमारियों से पीड़ित हैं। इसके अतिरिक्त, उसने, विभिन्न लेख लिखे हैं जो न केवल प्रकाशित हुए हैं बल्कि पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं।
० जहां तक रविचंद्रन का संबंध है, उसका आचरण भी संतोषजनक पाया गया है और उसने विभिन्न अध्ययन किए हैं। उन्होंने धर्मार्थ उद्देश्यों को भी पूरा किया है।
० जहां तक नलिनी का संबंध है, वह एक महिला है और 3 दशकों से अधिक की अवधि के लिए कैद है और उसका आचरण भी संतोषजनक पाया जाता है। उसने भी विभिन्न अध्ययन भी किए हैं
० जहां तक श्रीहरन का संबंध है, उनका आचरण भी संतोषजनक पाया गया है और उन्होंने विभिन्न अध्ययन भी किए हैं।
अपीलकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े और गोपाल शंकरनारायणन पेश हुए थे। राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी पेश हुए थे।
लाइव लॉ के अनुसार, मुकदमे का विवरण इस प्रकार है।
० 1998 में राजीव गांधी की हत्या के लिए, टाडा TADA कोर्ट ने अपीलकर्ताओं सहित, 25 लोगों को मौत की सजा सुनाई थी।
० सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस केटी थॉमस की पीठ ने 19 दोषियों को बरी कर दिया, लेकिन उनमें से चार, पेरिवलन, श्रीहरन, संथान और नलिनी) की मौत की सजा को बरकरार रखा। तीन अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
० नलिनी की मौत की सजा को तमिलनाडु सरकार ने 2000 में आजीवन कारावास में बदल दिया था।
० 2014 में, सुप्रीम कोर्ट ने पेरारीवलन, श्रीहरन और संथान की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया।
० 2018 में, अन्नाद्रमुक मंत्रिमंडल ने सात दोषियों की रिहाई की सिफारिश की, लेकिन राज्यपाल ने इस छूट को अधिकृत करने से इनकार कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा पेरारीवलन की रिहाई के आदेश के बाद, नलिन और रविचंद्रन ने समय से पहले रिहाई की मांग करते हुए मद्रास उच्च न्यायालय में अपील किया। हालाँकि, मद्रास उच्च न्यायालय ने उनकी याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इसमें अनुच्छेद 142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्राप्त विशेष शक्तियों का अभाव है।
जमानत तो छोड़िए, पानी पीने के लिए एक अदद स्ट्रॉ, फादर स्टेन स्वामी को दी जाय या न दी जाय, इसे तय करने में, NIA और अदालत को हफ्तों लग गए, अब बलात्कारी और पूर्व पीएम के आतंकी हत्यारे, इस तर्क पर छोड़े जा रहे हैं, उनका चालचलन ठीक है, स्वास्थ्य खराब और वे पढ़े लिखे हैं!
कमाल है न !!
स्टेन स्वामी तो, विचाराधीन बंदी थे। स्वास्थ्य इतना खराब कि, पार्किंसन के कारण उनका हांथ कांपता था। उनकी जमानत बार बार खारिज की जाती रही क्योंकि NIA के अनुसार, उनका जुर्म संगीन था। पर वे अपराधी नहीं थे। वे एक
मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं आदिवासी हितों के लिए लड़ने वाले थे। जमानत और स्ट्रॉ की आस में, 84 वर्षीय स्टेन स्वामी ने जेल में ही दम तोड़ दिया। स्टेन स्वामी यलगार परिषद केस में जेल में थे। जमानत और गंभीरतम मामलों में, सजा काट रहे, जघन्य अपराधियों की समय पूर्व रिहाई के बारे में अदालत को एक विस्तृत और पारदर्शी निर्देश जारी करना चाहिए।
कुछ लोग यह तर्क दे रहे हैं कि, सोनिया गांधी और उनके परिवार ने, राजीव गांधी के हत्यारों को माफ कर दिया। इसलिए उनका रिहा करना कोई मुद्दा नहीं बनाना चाहिए।
सोनिया गांधी और उनके परिवार की माफी से, इस रिहाई को उचित नहीं ठहराया जा सकता है। यह एक जघन्यतम अपराध था। उनकी माफी, उनकी सदाशयता और, एक मानवीय कदम हो सकती है पर काफी का, कानून पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
कल यदि कोई व्यक्ति, अपने प्रिय की हत्या पर, अपने मानवीय मूल्यों या किसी अन्य कारण से, हत्यारों को माफ कर दे या कोई कानूनी कार्यवाही न करना चाहे तो क्या, पुलिस कोई केस दर्ज नहीं करेगी ? कानून कहता है, कि यदि कोई भी व्यक्ति मुकदमा दर्ज न कराना चाहे, तो फिर पुलिस खुद ही यह FIR दर्ज करेगी, कोई अफसर वादी बनेगा, मुकदमे की तफतीश होगी, और मुल्जिमों के खिलाफ कार्यवाही भी। यदि लोगों की मर्जी पर, मुकदमे दर्ज, तफतीश, और सजा, रिहा होते रहे तो, कानून का मतलब क्या रहेगा ?
गुजरात द्वारा 11 बलात्कारियों और सुप्रीम कोर्ट द्वारा राजीव हत्याकांड के 6 हत्यारों को, रिहा करना दुर्भाग्यपूर्ण फैसला है। राजीव के हत्यारे इसलिए रिहा कर दिए गए कि तमिलनाडु सरकार की सिफारिश थी, जिसे गवर्नर और हाइकोर्ट ने खारिज कर दिया। अदालती आदेश भले ही सुप्रीम हो, पर अनुचित है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड के आरोपियों को रिहा करने के फैसले पर कांग्रेस ने भी एतराज जताया है और कहा है कि, "राजीव हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रही नलिनी श्रीहरन और आर.पी. रविचंद्रन को समय से पहले रिहा किये जाने का कोर्ट का फैसला पूरी तरह अस्वीकार्य और गलत है।"
० विजय शंकर सिंह
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