उनका दावा है कि वे सरदार के चेले हैं। सन 50 में सरदार गये थे और सन 50 में मोदी जी इस धरा पर आए थे। शिष्यत्व ग्रहण करने के लिये गुरु का समकालीन होना ज़रूरी नहीं है पर गुरु के विचारों का अनुसरण करना ज़रूरी है । पटेल ने हो सकता है उन्हें भी प्रभावित किया हो। यह भी कोई असामान्य बात नहीं है । असामान्य बात है पटेल की याद 2014 के बाद ही आना । असामान्य बात है पटेल की याद पटेल के अनुज सम मित्र नेहरू के खिलाफ उन्हें रख कर देखना है । असामान्य बात है 12 साल गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के बावजूद पटेल से जुड़े उनके स्मारकों की अनदेखी करना । पटेल को अगर वे इस लिये याद करते हैं कि उनसे पटेल समुदाय का वोट मिलेगा तो यह पटेल का दुरुपयोग करना है । गांधी, नेहरू, पटेल, सुभाष, राजेन्द्र बाबू, जेपी, लोहिया आदि आदि महानुभाव किसी न किसी जाति का जन्मना हो कर भी अपनी अपनी जाति की सोच से बहुत ऊपर उठ गये हैं । हम किसी के बारे में जो भी धारणा बनाते हैं वह अपने मानसिक सोच से ही बनाते हैं। आकाश तो अनन्त है । जिस भी खिड़की से उसे देखिएगा वह उतना ही दिखेगा जितनी बड़ी खिड़कीं होगी। यह आकाश का छोटापन नहीं है बल्कि यह खिड़की की सीमा है ।
यह भी एक विसंगति है कि भाजपा को चुनाव लड़ने के लिये उन प्रतीक पुरुषों की चर्चा करनी पड़ती है जो वैचारिक रूप से भाजपा की विचारधारा से कहीं से भी मेल नहीँ खाते हैं। बल्कि वे वैचारिक रूप से उनसे उलट है। उदाहरण के लिये भगत सिंह, सुभाष बाबू, अंबेडकर, और अब पटेल । इनमे से एक की भी सोच भाजपा से लेशमात्र भी नहीं मिलती है । भगत सिंह, मार्क्सवादी थे, सुभाष ने फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना की और वे वामपंथी खेमे के थे, अम्वेडकर तो सनातन धर्म के ही खिलाफ थे और बाद में उन्होंने सनातन धर्म का त्याग ही कर दिया और पटेल तो आरएसएस जो भाजपा का पितृ संगठन है के ही खिलाफ थे और उन्होंने उसे प्रतिबंधित भी किया था, पर इन सबका भाजपा गाहे ब गाहे इस्तेमाल करती रहती है। यह भी आपात्तिजनक नहीं है । आपात्तिजनक है, इनके विचारों से उनकी दूरी। भाजपा कभी भी चुनाव में डॉ हेडगेवार, गोलवलकर, सावरकर आदि के उद्धरणों को नहीं बताती है , जब कि ये सब महानुभाव भी देशभक्त रहे हैं और हालांकि मैं इनसे वैचारिक रूप से अलग हूँ पर देश के इतिहास में इनकी कोई न कोई भूमिका तो है ही । फिर भाजपा इनका नाम क्यों नहीं लेती है ? यह भाजपा की हीन ग्रन्थि है या इन महानुभाओं की लोक में जनस्वीकार्यता कम है यह तो मैं नहीं बता पाऊंगा पर ऐसा है ।
पटेल का चेला बनने पर और ऐसे दावे पर अगर यह चुनावी दांव नहीं है तो इस हृदय परिवर्तन का स्वागत है । पटेल केवल कुर्मी समाज के ही नहीं है वह केवल कांग्रेस के ही नहीं है , वे इस देश की एक महान विभूति हैं और आज भारत , नक़्शे पर जैसा दिखता है उसका श्रेय उन्हें ही जाता है । वे सबके थे, सबके हैं और सबके रहेंगे ।
© विजय शंकर सिंह
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