Tuesday, 7 November 2017

8 नवम्बर - नोटबंदी की बरसी - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह

नोटबंदी का भविष्य में क्या असर होता है यह तो अर्थ विशेषज्ञ ही बता पाएंगे पर दो महीने में 100 से अधिक बार कानून बदलने, एटीएम और बैंको की शाखाओं ओर बेशुमार भीड़, 150 लोगों की अकाल मृत्यु यह बात प्रमाणित करती है कि आज़ाद भारत के इतिहास में इस से बुरी बदइंतजामी वाली कोई योजना कभी नहीं लागू हुयी थी।

काला धन कितना आया, कितने लोग पकड़े गए, कौन कौन जेल गया, आदि आंकड़े सरकार ने अधिकृत रूप से अभी तक जारी नहीं किये हैं। सरकार को यह बात एक श्वेत पत्र जारी कर के बतानी चाहिये । जब काला धन दिवस मनाया जा रहा है तो यह बात देश को जानने का वैधानिक हक़ है ।

150 वे लोग मरें हैं, जो कहीं से भी काले धन के संचयी नहीं थे। वे दिहाड़ी कमाने वाले और जो कुछ भी जमा पूंजी होती थी उसे घर में ही रखने वाले निम्न मध्य वर्ग और  निम्न वर्ग के लोग थे। वे लोग, जिनके पास काले धन की नकदी थी, उनके पैसे तो बैंक वालों ने 25 से 30 % ले कर घर घर जा कर बदल दिया । इस षडयंत्र में #आरबीआई के कुछ अधिकारी सहित बैंकों के और भी लोग शामिल थे । वे तब भी मौज में थे और अब भी मौज में हैं । नोटबंदी की बरसी को काला धन विरोधी दिवस मनाएं या काला दिवस मनाएं यह तो सबकी अपनी अपनी सोच है, पर इस निर्णय से सबसे अधिक साख अगर किसी संस्था की गिरी है तो वह रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया #RBI की गिरी है । जिसकी हैसियत 8 नवम्बर के बाद सरकार के एक मातहत विभाग जैसी  हो गयी थी।

नोटबंदी पर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने अहमदाबाद में कल एक विद्वतापूर्ण भाषण दिया है। जिसमें उन्होंने निम्न बातें कहीं।
1.नोटबन्दी देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक काला दिन है
2. मैने पहले भी कहा था आज भी कह रहा हु नोटबंदी एक संगठनिक लूट है..
3.नोटबंदी और जीएसटी पर सवाल पूछने पर सरकार "टैक्स चोर" होनै का तमगा दे देती है क्या सवाल पूछना गुनाह है..??
4. सरकार जनता को देशविरोधी टैक्स चोर का तमगा न दे लोकतंत्र मे सवाल जवाब होगे
5.नोटबंदी जैसा कठोर निर्णय किसी देश ने नही लिया क्योंकि उनकौ पता है इससे भ्रष्टाचार मे लगाम नही रफ्तार आएगी.
6. मोदी सरकार ने इस ‘स्मारकीय गलती’ से कोई सबक नहीं सीखा
7.प्रधानमंत्री ने " एक कर एक राष्ट्र " का नारा 2014 मे दिया था वो संकल्पना सच क्यौ न हो सकी..?
8. क्या प्रधानमंत्री ने ब्राड गेज रेलवे का उन्नयन कर हाई स्पीड ट्रेन का विचार किया..?
9. 2016-17 मे 1.96 लाख का चीन से माल आयात होता था जो 2017-18 आते आते 2.41 लाख करोड का हो गया
10.इन जुडवा (जीएसटी और नोटबंदी)  ने देश की अर्थव्यवस्था को उथल पुथल कर दिया यह छोटे व्यापारियो पर चोट थी ।
इन विदुओँ पर गौर किया जाना चाहिये।

नोटबंदी पर जनसत्ता में छपे एक लेख के अनुसार,
" प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पिछले साल लागू की गयी नोटबंदी के पक्ष-विपक्ष में बहसों का दौर अभी थमा नहीं है। पीएम मोदी ने आठ नवंबर 2016 को तत्काल प्रभाव से उसी रात 12 बजे से 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को बंद करने की घोषणा की थी। नोटबंदी के एक साल पूरे होने पर अमेरिका के टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री भास्कर चक्रवर्ती ने हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू में मोदी सरकार के इस फैसले की समीक्षा की है। जब नोटबंदी लागू हुई तो देश की कुल नकदी का करीब 86 प्रतिशत 500 और 1000 रुपये के नोटों के रूप में था। नोटबंदी की वजह से पूरे देश में अफरा-तफरी मच गयी थी। अनगिनत लोगों की नौकरियां गईं, कइ दर्जन लोगों की मौतों के लिए नोटबंदी को जिम्मेदार ठहराया गया। प्रोफेसर भास्कर चक्रवर्ती के अनुसार नोटबंदी बगैर उचित सोच-विचार के लागू किया गया फैसला था और इससे भारतीय अर्थव्यवस्था खासकर गरीबों पर नकारात्मक असर पड़ा। भास्कर चक्रवर्ती के अनुसार नोटबंदी के फैसले से दुनिया के बाकी देश चार सबक सीख सकते हैं। "

नोटबंदी पर अमेरिका के टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री भास्कर चक्रवर्ती ने हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू में मोदी सरकार के इस फैसले की समीक्षा की है । प्रोफेसर भास्कर चक्रवर्ती के अनुसार नोटबंदी बगैर उचित सोच-विचार के लागू किया गया फैसला था और इससे भारतीय अर्थव्यवस्था खासकर गरीबों पर नकारात्मक असर पड़ा। भास्कर चक्रवर्ती के अनुसार नोटबंदी के फैसले से दुनिया के बाकी देश चार सबक सीख सकते हैं।
पहला सबक: ......सावधानी से करें विशेषज्ञों का चुनाव-
दूसरा सबक: .......बुनियादी आंकड़ों की अनदेखी न करें-
तीसका सबक: ....मानवीय व्यवहार का ध्यान रखें-
चौथा सबक: .......चांदी की डिजिटिल गोली से सावधान रहें-

अंत मे डॉ मनमोहन सिंह का यह कथन उद्धरित किये जाने योग्य है, जिसमे उन्होंने दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर है।
" अब विमुद्रिकरण पर राजनीति के लिए वक्त नही बचा है। यह समय है कि प्रधान मंत्री गलती स्वीकार करे और हमारी अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिए सभी का समर्थन मांगे। लोकतंत्र के इतिहास में कुछ क्षण ऐसे आते हैं, जब अर्थशास्त्र को राजनीति से ऊपर रखना चाहिए। भारत में एक ऐसा ही क्षण वर्तमान में है। हमें देश को सभी राजनीति से ऊपर रखना चाहिए और बेरोजगारी और असमान आर्थिक विकास की हमारी चुनौतियों का समाधान करने का प्रयास करना चाहिए। इन बड़े चुनौतियों के समाधान के लिए रचनात्मक और सहमति आधारित नीति की आवश्यकता है। इसलिए, इस पर अब बहस बेमानी है कि नोटबन्दी से होने वाले नुकसान पर मेरा आकलन सही था या गलत। मुझे खुशी होगी कि आर्थिक प्रभाव कम हो, मेरी आशंका के विपरीत। "
यह बयान उनकी एक अलग क्षवि प्रदर्शित करता है ।

क्या हमें उन 150 से भी अधिक लोगों के नोटबंदी के बदइंतजामी के कारण हुयी मौतों का शोक नहीं मनाना चाहिये ?
उन सबको श्रद्धांजलि जिन्होंने तंत्र की असंवेदनशीलता, प्रशासनिक अक्षमता, सनक, ज़िद और मूढ़ता के कारण अपनी जान दी है । सरकार आज उनके मौत की बरसी मना रही है, या अपने ज़िद अक्षमता, सनक और मूढ़ता की सालगिरह, यह तो भविष्य तय करेगा ।

© विजय शंकर सिंह

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