Saturday, 11 November 2017

11 नवम्बर, मौलाना आज़ाद का जन्मदिन - एक स्मरण / विजय शंकर सिंह

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद 11 नवंबर 1888 को सऊदी अरब के मक्का में पैदा हुए थे. 22 फ़रवरी 1958 को इस दुनिया से रुखसत हो गए.। मौलाना आज़ाद, प्रवाह के विपरीत तैर रहे थे। 1940 में पाकिस्तान की मांग उठ गयी थी। पाकिस्तान को ले कर मुसलमानों में एक अजब उत्साह था। 1939 में सभी चुनी हुयी कांग्रेसी सरकारों ने इस्तीफा दे दिया था। कांग्रेस द्वितीय विश्व युद्ध मे भारत को बिना भारत से पूछे , युद्ध मे शामिल किये जाने से नाराज़ थी। मुस्लिम लीग ने इस्तीफा नहीं दिया था। उनकी सरकार बंगाल और पंजाब में थी, तो वे अंग्रेज़ों के साथ आ गए । उनको आश्चर्यजनक रूप से हिन्दू महासभा का समर्थन मिला। उस समय एक दूसरे का हितपोषण करने वाले जिन्ना और सावरकर साथ साथ थे। जिन्ना मुस्लिम राष्ट्र चाहते थे और सावरकर हिन्दू राष्ट्र । दोनों एक दूसरे के पूरक बने हुये थे । लेकिन कांग्रेस और गांधी इनसे अलग थे और वह देश के आज़ादी के आंदोलन की मुख्य धारा थी। उस समय जो मुस्लिम राज नेता कांग्रेस के साथ और जिन्ना के विरोध में खड़े थे, वे थे, मौलाना अबुल कलाम आजाद और सरहदी गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान ।

आज़ाद को जिन्ना पसंद नहीं करते थे । जब जब कांग्रेस की तरफ से बात चीत करने के लिये आज़ाद को जो कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे, नामित किया जाता था तो जिन्ना , मौलाना के स्थान पर किसी हिन्दू को नामित कर के भेजने की बात करते थे । जिन्ना का यही कहना था कि, वे और मुस्लिम लीग ही केवल मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करते हैं । कांग्रेस केवल हिंदू समाज का प्रतिनिधित्व करती है । यह सारा अपमान सह कर भी मौलाना आज़ाद कांग्रेस के साथ जमे रहे । अपने सहधर्मी, समाज से लांछित और अपमानित हो कर भी वह बंटवारे के खिलाफ अंत तक रहे । जब कि मौलाना अरबी और इस्लामी धर्म शास्त्र के मर्मज्ञ थे और जिन्ना तो बिल्कुल ही धार्मिक नहीं थे । यह भी अज़ीब विडम्बना है कि, धर्म पर पूरी तरह आस्था और विश्वास रखने वाले आज़ाद ने एक धर्म निरपेक्ष राज्य की बात की और दिल दिमाग से धर्म निरपेक्ष जीवन जीने वाले जिन्ना ने धर्म आधारित राज्य की नींव रखी।

वे कवि, लेखक, पत्रकार और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत की आजादी के वाद वे एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक रहे। वे 1923 में वे भारतीय नेशनल काग्रेंस के सबसे कम उम्र के प्रेसीडेंट बने। वे 1940 और 1945 के बीच के सबसे कठिन समय मे भी वे कांग्रेस के अध्यक्ष थे। इसी दौरान भारत छोड़ो आन्दोलन हुआ था। कांग्रेस के अन्य प्रमुख नेताओं की तरह उन्हें भी तीन साल जेल में बिताने पड़े थे। स्वतंत्रता के बाद वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना में उनके सबसे अविस्मरणीय कार्यों मे से एक था । उन्होंने भारत विभाजन की त्रासदी पर एक बहुत ही अच्छी पुस्तक लिखी है, India Wins Freedom . यह पुस्तक आज़ादी के पहले भारत विभाजन की अंतर्कथा बताती है। पुस्तक का एक अध्याय उनकी मृत्यु के 30 साल बाद प्रकाशित हुआ । इस पुस्तक पर विवाद भी हुआ । समकालीन इतिहास लेखन का विवादों से पुराना सम्बंध है। आज़ाद को देश के सर्वोच्च सम्मान, भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया है ।

आज मौलाना आज़ाद के जन्मदिन पर उनका विनम्र स्मरण ।
#vss

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