Friday, 10 November 2017

धूमिल - जन्मदिन पर उनका विनम्र स्मरण / विजय शंकर सिंह


                                                     

धूमिल, सुदामा पांडेय ( 9 नवम्बर 1936 से 10 फरवरी 1975 ) की यह पंक्तियां पढ़ें,

भूख से भरा हुआ आदमी,
इस मौसम का
सबसे दिलचस्प विज्ञापन है ,
और गाय सबसे सटीक नारा !!

सन 1960 के बाद की हिंदी कविता में जिस मोहभंग की शुरूआत हुई थी, धूमिल उसकी अभिव्यक्ति करने वाले अंत्यत प्रभावशाली कवि है। उनकी कविता में परंपरा, सभ्यता, सुरुचि, शालीनता और भद्रता का विरोध है, क्योंकि इन सबकी आड् मे जो ह्र्दय पलता है, उसे धूमिल पहचानते हैं। कवि धूमिल यह भी जानते हैं कि व्यवस्था अपनी रक्षा के लिये इन सबका उपयोग करती है, इसलिये वे इन सबका विरोध करते हैं। इस विरोध के कारण उनकी कविता में एक प्रकार की आक्रामकता मिलती है। किंतु उससे उनकी कविता की प्रभावशीलता बढती है। धूमिल अकविता आन्दोलन के प्रमुख कवियों में से एक हैं। धूमिल अपनी कविता के माध्यम से एक ऐसी काव्य भाषा विकसित करते है जो नई कविता के दौर की काव्य- भाषा की रुमानियत, अतिशय कल्पनाशीलता और जटिल बिंबधर्मिता से मुक्त है। उनकी भाषा काव्य-सत्य को जीवन सत्य के अधिकाधिक निकट लाती है।
धूमिल के तीन काव्य-संग्रह प्रकाशित हैं, संसद से सड़क तक, कल सुनना मुझे, सुदामा पांडे का प्रजातंत्र । उन्हें मरणोपरांत १९७९ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। धूमिल की कुछ सबसे उल्लखनीय कवितायेँ हैं- मोचीराम, बीस साल बाद । उनकी कविता मोचीराम का यह अंश पढ़े,

बाबूजी, सच कहूं,
मेरी निगाह में,
न कोई छोटा है,
न कोई बड़ा है,
मेरे लिये हर आदमी एक जोड़ी जूता है,
जो मेरे सामने मरम्मत के लिये खड़ा है ।

धूमिल से मेरी व्यक्तिगत और प्रगाढ़ परिचय रहा है। मैं उनका प्रशंसक श्रोता और पाठक रहा हूँ । 1974 से 77 तक संभवतः हर महीने में दो तीन बार उनसे मुलाकात हो ही जाती थी। धूमिल का जन्म वाराणसी के पास खेवली गांव में हुआ था। उनका मूल नाम सुदामा पांडेय था। धूमिल नाम से वे जीवन भर कवितायें लिखते रहे। सन् १९५८ मे आई टी आई (वाराणसी) से विद्युत डिप्लोमा लेकर वे वहीं विदयुत अनुदेशक बन गये। ३८ वर्ष की अल्पायु मे ही ब्रेन ट्यूमर से उनकी मृत्यु हो गई। पहली बार उनकी कविता मैंने कला संकाय ऑडिटोरियम में 1974 में मनाए गये मानस चतुश्शती समारोह में सुनी थी। फिर तो हम सब के वे प्रिय कवि हो गये। मेरे मित्र श्री प्रकाश , जो फेसबुक पर हैं उनके बहुत निकट रहे और दोनों। में बहुत बार कविता, साहित्य , वामपंथ आदि को लेकर बहसें भी होती रहती थीं। मैं एक अच्छा श्रोता तब भी था और अब भी हूँ।

धूमिल का अवसान असामायिक और दुःखद था। वे स्वस्थ दिखते थे । हंसमुख थे । कोई ज़ाहिरा तनाव भी नहीं था। सायकिल पर खूब चलते थे। यह उनके लिये एक व्यायाम भी था। पर अचानक उन्हें ब्रेन ट्यूमर हुआ और वे जब प्रसिद्धि की ओर बढ़ रहे थे,  मुक्तिबोध के बाद उन्हीं की परम्परा के हिंदी साहित्य के इस नए सितारे का अवसान हो गया ।

© विजय शंकर सिंह

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