कवि कुंवर नारायण का 90 साल की उम्र में बुधवार को निधन हो गया. मूलरूप से फैजाबाद के रहने वाले कुंवर नारायण पिछले करीब 51 साल से साहित्य में सक्रिय थे. उनकी पहली किताब 'चक्रव्यूह' साल 1956 में आई थी. राजनैतिक विवाद से हमेशा दूरी बनाए रखने वाले कुंवर को 41वां ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था. साल 1995 में उन्हें साहित्य अकादमी और साल 2009 में उन्हें पद्म भूषण अवार्ड मिला था । उनकी काव्ययात्रा 'चक्रव्यूह' से शुरू हुई। ... जहाँ एक ओर आत्मजयी में कुँवरनारायण जी ने मृत्यु जैसे विषय का निर्वचन किया है, वहीं इसके ठीक विपरीत 'वाजश्रवा के बहाने'कृति में अपनी विधायक संवेदना के साथ जीवन के आलोक को रेखांकित किया है।
कुँवर नारायण का जन्म १९ सितंबर 1927 को हुआ। नई कविता आंदोलन के सशक्त हस्ताक्षर कुँवर नारायण अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरा सप्तक (1959 ) के प्रमुख कवियों में रहे हैं। कुँवर नारायण को अपनी रचनाशीलता में इतिहासऔर मिथक के जरिये वर्तमान को देखने के लिए जाना जाता है। कुंवर नारायण का रचना संसार इतना व्यापक एवं जटिल है कि उसको कोई एक नाम देना सम्भव नहीं। यद्यपि कुंवर नारायण की मूल विधा कविता रही है पर इसके अलावा उन्होंने कहानी, लेख व समीक्षाओं के साथ-साथ सिनेमा, रंगमंच एवं अन्य कलाओं पर भी बखूबी लेखनी चलायी है। इसके चलते जहाँ उनके लेखन में सहज संप्रेषणीयता आई वहीं वे प्रयोगधर्मी भी बने रहे। उनकी कविताओं-कहानियों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है। ‘तनाव‘ पत्रिका के लिए उन्होंने कवाफी तथा ब्रोर्खेस की कविताओं का भी अनुवाद किया है। 2009 में कुँवर नारायण को वर्ष 2005 के लिए देश के साहित्य जगत के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
फैज़ाबाद अयोध्या के रहने वाले थे वे । अयोधया 1992 पर उन्होंने एक चर्चित कविता लिखी थी। उसे पढ़े,
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अयोध्या, 1992
( कुंवर नारायण )
( कुंवर नारायण )
हे राम,
जीवन एक कटु यथार्थ है
और तुम एक महाकाव्य !
जीवन एक कटु यथार्थ है
और तुम एक महाकाव्य !
तुम्हारे बस की नहीं
उस अविवेक पर विजय
जिसके दस बीस नहीं
अब लाखों सर - लाखों हाथ हैं,
और विभीषण भी अब
न जाने किसके साथ है.
उस अविवेक पर विजय
जिसके दस बीस नहीं
अब लाखों सर - लाखों हाथ हैं,
और विभीषण भी अब
न जाने किसके साथ है.
इससे बड़ा क्या हो सकता है
हमारा दुर्भाग्य
एक विवादित स्थल में सिमट कर
रह गया तुम्हारा साम्राज्य
हमारा दुर्भाग्य
एक विवादित स्थल में सिमट कर
रह गया तुम्हारा साम्राज्य
अयोध्या इस समय तुम्हारी अयोध्या नहीं
योद्धाओं की लंका है,
'मानस' तुम्हारा 'चरित' नहीं
चुनाव का डंका है !
योद्धाओं की लंका है,
'मानस' तुम्हारा 'चरित' नहीं
चुनाव का डंका है !
हे राम, कहां यह समय
कहां तुम्हारा त्रेता युग,
कहां तुम मर्यादा पुरुषोत्तम
कहां यह नेता-युग !
कहां तुम्हारा त्रेता युग,
कहां तुम मर्यादा पुरुषोत्तम
कहां यह नेता-युग !
सविनय निवेदन है प्रभु कि लौट जाओ
किसी पुरान - किसी धर्मग्रन्थ में
सकुशल सपत्नीक....
अबके जंगल वो जंगल नहीं
जिनमें घूमा करते थे वाल्मीक !
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किसी पुरान - किसी धर्मग्रन्थ में
सकुशल सपत्नीक....
अबके जंगल वो जंगल नहीं
जिनमें घूमा करते थे वाल्मीक !
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उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं,
कविता संग्रह - चक्रव्यूह ( 1956 ), तीसरा सप्तक( 1959 ),परिवेश : हम-तुम( 1961 ), अपने सामने ( 1979 ), कोई दूसरा नहीं( 1993 ), इन दिनों( 2002 )।
खंड काव्य - आत्मजयी ( 1965 ) और वाजश्रवा के बहाने( 2008 )।
कहानी संग्रह - आकारों के आसपास ( 1973 )।
समीक्षा विचार - आज और आज से पहले( 1998 ), मेरे साक्षात्कार ( 1999 ), साहित्य के कुछ अन्तर्विषयक संदर्भ( 2003 )।
संकलन - कुंवर नारायण-संसार (चुने हुए लेखों का संग्रह) 2002 ,कुँवर नारायण उपस्थिति (चुने हुए लेखों का संग्रह)( 2002 ), कुँवर नारायण चुनी हुई कविताएँ ( 2007 ), कुँवर नारायण- प्रतिनिधि कविताएँ ( 2008 )
ज्ञानपीठ पुरस्कार सम्मान के अलावा कुँवर नारायण को साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान, कुमार आशान पुरस्कार, प्रेमचंद पुरस्कार, राष्ट्रीय कबीर सम्मान, शलाका सम्मान, मेडल ऑफ़ वॉरसा यूनिवर्सिटी, पोलैंड और रोम के अन्तर्राष्ट्रीय प्रीमियो फ़ेरेनिया सम्मान और 2009 में पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया।
इतना कुछ था दुनिया में
लड़ने झगड़ने को
पर ऐसा मन मिला
कि ज़रा-से प्यार में डूबा रहा
और जीवन बीत गया ।
अलविदा ।
#कुंवर_नारायण
दिवंगत कवि को विनम्र श्रद्धांजलि ।
लड़ने झगड़ने को
पर ऐसा मन मिला
कि ज़रा-से प्यार में डूबा रहा
और जीवन बीत गया ।
अलविदा ।
#कुंवर_नारायण
दिवंगत कवि को विनम्र श्रद्धांजलि ।
© विजय शंकर सिंह
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