Wednesday, 1 November 2017

क़तील शिफ़ाई और उनकी एक नज़्म - खुला है झूठ का बाज़ार / विजय शंकर सिंह

खुला है झूठ का बाज़ार आओ सच बोलें,
न हो बला से ख़रीदार ,आओ सच बोलें !!

सुकूत छाया है इन्सानियत की क़द्रों पर,
यही है मौक़ा-ए-इज़हार , आओ सच बोलें !!

हमें बनाया है गवाह वक़्त ने अपना,
ब-नाम-ए-अज़्मत-ए-किरदार ,आओ सच बोलें !!

तमाम शहर में क्या एक भी नही मन्सूर,
कहेंगे क्या रसन-ओ-दार , आओ सच बोले !!

जो वस्फ़ हममें नही , क्यूँ करें किसी में तलाश,
अग़र ज़मीर है बेदार ,आओ सच बोलें !!

छुपाए से कही छुपते है दाग़ चेहरें के,
नज़र है आईना-बरदार , आओ सच बोलें !!
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#क़तील_शिफ़ाई का जन्म अविभाजित पंजाब के तहसील हरीपुर ज़िला हज़ारा जो अब पाकिस्तान में है में ,  दिसम्बर 1919 में हुआ था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा इस्लामिया मिडिल स्कूल, रावलपिंडी में हुयी थी, उसके बाद वे गवर्नमेंट हाई स्कूल में दाखिल हुए लेकिन पिता के देहान्त और कोई अभिभावक न होने के कारण उनकी शिक्षा जारी न रह सकी और पिता की छोड़ी हुई पूँजी समाप्त होते ही उन्हें तरह-तरह के व्यापार और नौकरियाँ करने पड़े। साहित्य में क़तील के पिता की बहुत रुचि थी और ‘क़तील’ के कथनानुसार,
‘‘उन्होंने शुरू में मुझे कुछ पुस्तकें लाकर दीं जिनमें ‘क़िस्सा चहार दरवेश’ ‘क़िस्सा हातिमताई’ आदि भी थीं। मैं अक्सर उन्हें पढ़ता रहता था जिससे मुझे भी लिखने का शौक़ हुआ। अतएव प्रारम्भ में मैंने कहानियाँ लिखनी शुरू कीं, लेकिन कहानियों में कठिनाई यह थी कि मुझे उन्हें नक़ल करते समय बड़ा कष्ट होता था। मैंने कहानियाँ लिखनी छोड़ दीं और नज़्में लिखने की कोशिश की।"
इस तरह एक शायर का जन्म हुआ ।

आगे उन्ही के शब्दों में,
" सबसे पहले पाठशाला के दिनों में मैंने एक नाअ़त (मुहम्मद साहिब की छन्दोबद्ध प्रशंसा) लिखी जिस पर मुझे काफ़ी प्रोत्साहन मिला और मैंने बाकायदा नज़्में लिखनी शुरू कर दीं। उन्हीं दिनों पिता का देहान्त हो गया फिर ताऊ चल बसे और एक वर्ष भी नहीं गुज़रा था कि फूफी भी उठ गईं। इन घटनाओं का मुझ पर गहरा असर हुआ और मैं बेहद भावुक हो गया। जब तक हरीपुर में रहा, परम्परागत क़िस्म की शायरी से जी बहलाता रहा लेकिन जब रावलपिंडी में आया तो साहित्य की नई धारा, जिसे प्रगतिशील धारा कहा जाता है, के अनुकरण में शैली के नए-नए प्रयोग किए। यहीं अहमद नदीम कासमी से मेरा पत्र-व्यवहार प्रारम्भ हुआ और कविता सम्बन्धी उनके परामर्शों ने मेरी बड़ी सहायता की, और जब मैं लाहौर आया तो प्रसिद्ध मासिक पत्रिका ‘अदबे-लतीफ’ के सम्पादक की हैसियत से उनका बड़ा सहयोग मिला "

क़तील उर्दू सबसे लोकप्रिय और सबसे अधिक पढ़े जाने वाले शायर हैं । प्रकाश पंडित जिन्होंने हिन्द पॉकेट बुक्स की लोकप्रिय शायरों की श्रृंखला का संपादन किया था ने उनके बारे में यह कह रहा है,
" इस प्रकार हम देखते हैं कि दूसरे महायुद्ध के बाद नई पीढ़ी के जो शायर बड़ी तेजी से उभरे और जिन्होंने उर्दू की ‘रोती-बिसूरती’ शायरी के सिर में अन्तिम कील ठोंकने, विश्व की प्रत्येक वस्तु को सामाजिक पृष्ठभूमि में देखने और उर्दू शायरी की नई डगर को अधिक-से-अधिक साफ, सुन्दर, प्रकाशमान बनाने में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, उनमें ‘क़तील’ शिफ़ाई का विशेष स्थान है। बल्कि संगीतधर्मी छंदों के चुनाव, चुस्त सम्मिश्रण और गुनगुनाते शब्दों के प्रयोग के कारण उसे शायरों के दल में से तुरन्त पहचाना जा सकता है।
समय, अनुभव और साहित्य की प्रगतिशील धारा से सम्बन्धित होने के बाद जिस परिणाम पर वह पहुँचा, उसकी आज की शायरी उसी की प्रतीक है। उसकी आज की शायरी समय के साज़ पर एक सुरीला राग है- वह राग, जिसमें प्रेम-पीड़ा, वंचना की कसक और क्रान्ति की पुकार, सभी कुछ विद्यमान है। उसकी आज की शायरी समाज, धर्म और राज्य के सुनहले कलशों पर मानवीय-बन्धुत्व के गायक का व्यंग्य है।......"

प्रकाश पंडित द्वारा क़तील शिफ़ाई के लिए कहे गए ये शब्द सही माएने में उनकी शायरी को सारगर्भित करते हैं।

© विजय शंकर सिंह

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