आज एक सुखद खबर मिली है, कि, ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बन गए हैं। ऋषि, पहले भी वहां के पीएम पद के दावेदार थे, पर लिज़ ट्रेस से चुनाव, हार गए थे। अब लिज़ ट्रेस के इस्तीफा दे देने के बाद, उनका दावा, पुख्ता हुआ और वे ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के पद पर चुन लिए गए। उन्हे बधाई और भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
ऋषि सुनक का परिवार, मूलतः अविभाजित भारत के गुजरांवाला से था,
जो अब पाकिस्तान में है। वह परिवार, वहां से नैरोबी चला गया और फिर वे सब इंग्लैंड के बस गए। ऋषि सुनक का जन्म और शिक्षा दीक्षा, ब्रिटेन में ही हुई और अब वे दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र और कभी शब्दशः, दुनिया पर राज करने वाले, ग्रेट ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बन गए हैं।
भारत की आजादी, या साम्राज्य में ही, डोमिनियन स्टेटस देने, या होमरुल देने यानी किसी भी तरह से, कुछ भी स्वतंत्र हैसियत देने का, सबसे मुखर और प्रबल विरोध विंस्टन चर्चिल ने किया था और उन्हें सदैव लगता था कि, यदि भारत को आजादी या आजादी जैसी कोई ढील दी गई तो, उसके बाद से ब्रिटिश साम्राज्य का खात्मा हो जायेगा। चर्चिल ने, कभी भी साउथ अफ्रीका, और कुछ अन्य उपनिवेशों को, स्वशासी डोमिनियान स्टेटस देने पर कभी एतराज नहीं किया, बल्कि, उन्होंने, उनकी पैरवी भी की। पर भारत की आजादी के विरोध, के लिए वह, घृणा के स्तर तक जा पहुंचे थे।
गांधी, उनके सत्याग्रह, और कांग्रेस को वह बेहद नाराजगी से देखते थे। वह भारतीयों को सदैव इस लायक समझते थे, कि यह राज ही नहीं कर सकते। और भारतीयों को लेकर वह घृणित पूर्वाग्रह उनके मन में बराबर बना रहा। उनके इस पूर्वाग्रह को देखते हुए, कुछ इतिहासकारों और चर्चिल के कुछ समकालीन ब्रिटिश नेताओं ने, चर्चिल को नस्ली भेदभाव, और रूडयार्ड किपलिंग की, द व्हाइट मैन बरडेन की मानसिकता से ग्रस्त कह कर आलोचना भी की है। गांधी के प्रति चर्चिल का दृष्टिकोण जग जाहिर है। इस पर बहुत कुछ लिखा गया है।
पर मैं दो उद्धरण देता हूं, जो चर्चिल की गांधी और भारत के लोगों के प्रति, उनकी सोच को स्पष्ट करते हैं। जब गांधी इरविन समझौता के बाद ब्रिटिश संसद में, जब इस विषय पर कि, भारत को आंशिक आजादी दी जानी चाहिए, तो गांधी जी का उल्लेख करते हुए कहा था कि,
" लंदन के इनर टेंपल में पढ़े, एक राजद्रोही बैरिस्टर, मिस्टर गांधी को, अब पूर्व (भारत) में एक प्रसिद्ध फकीर के रूप में पेश करते हुए, वाइसरीगल महल की सीढ़ियों पर, उस अर्ध-नग्न, जो अब भी, साम्राज्य के खिलाफ, सविनय अवज्ञा का एक अभियान आयोजित और संचालित करता है को, सम्राट के प्रतिनिधि के साथ बराबरी पर, समान शर्तों पर बातचीत करते हुए देखना, एक ऐसा खतरनाक और वमनकारी तमाशा है, जो केवल भारत में अशांति फैलाएगा और वहां के गोरे लोगों के सामने, भविष्य में, आने वाले खतरे को बढ़ा देगा।"
(चर्चिल, भाषण, 5, 4985, का यह अंश, चर्चिल और गांधी, एपिक राइवलरी, आर्थर हरमन)
It is alarming and also nauseating to see Mr. Gandhi, a seditious Middle Temple lawyer now posing as a fakir of a type well-known in the East, striding half-naked up the steps of the Vice-regal palace, while he is still organizing and conducting a campaign of civil disobedience, to parley on equal terms with the representative of the King-Emperor. Such a spectacle can only increase the unrest in India and the danger to which white people there are exposed.
( Charchil, Speeches, 5, 4985 , Gandhi and Charchil, The Epic Rivalary Arthur Herman)
यह अकेला ही उद्धरण नहीं है जबकि चर्चिल की, गांधी जी के प्रति नापसंदगी, बार बार, खुल कर सामने आई है। वह गांधी को अराजकता फैलाने वाला और सत्याग्रह को, अराजकता से जोड़ कर देखता था। वह गांधी के वैश्विक प्रभाव, और भारतीय जनमानस पर उनकी अद्भुत पकड़ से, हर वक्त खीजता भी रहता था।
गांधी जब गोलमेज सम्मेलन में, 1932 में भाग लेने गए तो, उनकी मुलाकात ब्रिटेन के सम्राट से कराई गई। बहुत कोशिश हुई कि, गांधी इस शाही मुलाकात में कम से कम 'ढंग' के कपड़े पहन लें। पर गांधी ने कहा वे धोती और शाल में जायेंगे। वे गए भी। जब वे सम्राट से मिल रहे थे तो, सम्राट ने बुदबुदाकर कहा कि, यह तो, लगभग नंगे हैं।
तत्कालीन, सेक्रेटरी इंडिया, सैमुअल होर के ही शब्दों में पढ़े,
"Gandhi, in turn, refused to meet the king-emperor in anything but dhoti and shawl. In the end, however, Hoare prevailed on His Majesty, and the meeting went well, although Hoare claimed he heard George V mutter something about “the little man” with “no proper clothes on.”
मुलाकात के बाद, विदा लेते समय सम्राट ने कहा,
"याद रखिए मिस्टर गांधी, मैं नहीं चाहूंगा कि, मेरे साम्राज्य पर अब कोई हमला हो।"
गांधी ने मुस्कुराते हुए कहा,
"योर मैजेस्टी का आतिथ्य, स्वीकार करने के बाद, योर मैजेस्टी के ही महल में, मुझे किसी राजनैतिक बहस में, कदापि नहीं उलझना चाहिए।"
इसे भी सैमुअल होर के ही शब्दों में पढ़े,
"The king could not resist a final jab as they parted: “Remember, Mr. Gandhi, I won’t have any attacks on my empire!” Gandhi smiled and replied, “I must not be drawn into a political argument in Your Majesty’s Palace after Your Majesty’s hospitality.” All observers, including Hoare, thought the encounter a success. The feelings of Churchill and other India hard-liners can be imagined. George Lloyd called it “tea with treason.”
(स्रोत, गांधी एंड चर्चिल, द एपिक रायवलरी, आर्थर हरमन)
आज, न गांधी हैं, न चर्चिल। दोनो अतीत बन चुके हैं। पर जिस भारतीय जन और समाज को, चर्चिल, राज करने और शासन चलाने लायक मानते भी नहीं थे, आज उसी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के पद पर एक भारतीय मूल के व्यक्ति द्वारा शपथ लेना, एक बड़ी घटना है। ऋषि सुनक आज उसी 10 डाउनिंग स्ट्रीट में रहने जा रहे हैं, जिसमे कभी, सर विंस्टन चर्चिल भी रह चुके हैं। ऋषि सुनक को, पुनः बधाई और शुभकामनाएं।
(विजय शंकर सिंह)
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