Wednesday, 19 October 2022

प्रवीण झा / 1857 की कहानी - एक (8)

(चित्र: रजवाड़ों का एक सतही मानचित्र जो दर्शाता है कि 1857 में कितने साथ थे, कितने नहीं)

“ब्रिटिश प्रभुत्व मुगलों से विरासत में नहीं मिला। कुछ जीत कर मिला। कुछ संधियों से मिला। कुछ उनके उपयोग से मिला।”

- उन्नीसवीं सदी के एक ब्रिटिश अधिकारी (मनु पिल्लई की पुस्तक False Allies में उद्धृत)

अब वीर-गाथाओं और बलिदान जैसे शब्दों से विराम लेते हुए, ज़मीन पर लौटता हूँ। आगे लेखन में भी वीर-रस कम ही मिलने की संभावना है। इतिहास अक्सर सपाट, कभी-कभार संवेदना-शून्य, और सर्वथा बहुआयामी होता है।

जैसे एक प्रश्न जिसे विद्यार्थी अपने वाद-विवाद में रख सकते हैं,

‘अगर डलहौज़ी पंजाब, अवध और अन्य रियासतों को नहीं मिलाते, तो आधुनिक भारत की संरचना कैसी होती?’

मैं कुछ उदाहरण विकल्प देता हूँ

क) भारत लगभग छह सौ रियासतों में बँटा होता। राजतंत्रों की समाप्ति के साथ ‘संयुक्त राज्य’ (confederacy) बन कर आधुनिक यूरोप की तरह तीस-चालीस स्वतंत्र राज्यों का रूप ले सकते थे। 

ख) किसी जन-प्रभावी व्यक्ति/तानाशाह या बड़े राज्य के शासक द्वारा सांस्कृतिक या नस्लीय एकता के हुंकार के साथ पूरे भारत को एकीकृत किया जाता, जैसे जर्मनी या इटली जैसे राज्यों का किया गया

ग) अमरीका की तरह कुछ स्वायत्त संघ संरचना (Federal Democracy) बन सकती थी, जिसमें भिन्न-भिन्न रजवाड़े लोकतांत्रिक होकर एक ‘United States of India’ बनाते

घ) रियासतों और रजवाड़ों को येन-केन-प्रकारेण खत्म कर उन्हें भारतीय संघ में मिला लिया जाता

जब हम कहते हैं कि फलाँ अंग्रेजों से मिले हुए थे, तो यह सोचना चाहिए कि कौन नहीं मिला हुआ था। जो नहीं मिले थे, उनका लक्ष्य क्या भारतीय स्वतंत्रता थी? हम अठारहवीं-उन्नीसवीं सदी की बात कर रहे हैं, जब पंजाब का अर्थ पंजाब ही था, भारत नहीं। मराठे बंगाल से लड़ रहे थे। मैसूर मराठों से। 

एक आँकड़ा रखता हूँ। 6500 वर्ग-मील में लगभग 325 रियासत और उनके राजा थे। काठियावाड़ में एक विजानोनेस रियासत आधे किलोमीटर में खत्म हो जाती थी, और मात्र दो सौ लोग रहते थे!

डलहौज़ी के विलयन या हथियाने के सौ साल बाद भी जब भारत आज़ाद हुआ तो 40 प्रतिशत क्षेत्रफल में 565 रियासत तकनीकी रूप से ब्रिटिश भारत में नहीं थे। अगर 60 प्रतिशत क्षेत्रफल में ‘ब्रिटिश भारत’ नाम की चीज़ नहीं होती, तो हज़ार से अधिक रियासतों को एक सूत्र में बाँधना होता।

ऐसा नहीं कि यह संभव नहीं था, या यह सिर्फ़ अंग्रेज़ ही कर सकते थे। भारत एक ईकाई रूप में तो सदा से मौजूद था। अंग्रेज़ जोधपुर या त्रावणकोर पर नहीं, बल्कि ‘भारत’ पर शासन करने के इरादे से आए थे। वह भले ही यह तर्क देते रहे कि भारत कोई देश नहीं, यह सैकड़ों रियासतों में बँटा हुआ है; मगर वह स्वयं एकीकरण से पहले भी ‘इंडिया’ पुकारते थे। अगर उनकी नज़र में एक देश नहीं था, तो वह सैकड़ों नाम क्यों नहीं लेते थे?

डलहौज़ी पर भारतीयों का जो भी आरोप हो, कुछ ब्रिटिशों का आरोप यह था कि वह 1857 को भाँप नहीं पाए। या यूँ कहें कि उनकी ग़लतियों की वजह से ही यह हुआ। जिस व्यक्ति ने दो बड़े राज्यों- पंजाब और अवध को ब्रिटिश भारत में जोड़ा, तीसरे बड़े राज्य कश्मीर में अपना प्यादा बिठाया, महारानी को कोहिनूर दिलाया, वह इतनी बड़ी घटना भाँप नहीं पाए? 

मैं डलहौज़ी के मन में झाँकने के लिए उनकी दिनचर्या देखने लगा, जो लगभग सभी पुस्तकों में एक जैसी वर्णित है। लिखा है, 

“वह सवा नौ बजे काम पर बैठ जाते, और सवा पाँच बजे तक लगातार बैठे रहते। भोजन भी वहीं दूसरे हाथ से काम करते हुए खाते…जब वह 43 वर्ष की उम्र में इंग्लैंड लौटे तो काम के बोझ से इतने बीमार दिख रहे थे कि चार साल बाद चल बसे।”

मुझे ताज्जुब हुआ क्योंकि मैं जब डलहौज़ी स्थान घूमने गया था तो इतनी सुंदर माहौल वाली जगह लगी कि मैंने सोचा यहाँ कभी कोई जल्दी बीमार नहीं हो सकता। बाद में पढ़ा कि डलहौज़ी स्वयं कभी डलहौज़ी गए ही नहीं। 

ऊपर दिए गए विकल्पों में मैं भारत के ‘डलहौज़ीकरण’ या विलयन (Annexation) का पक्षधर नहीं, बल्कि विकल्प ‘ग’ यानी संघीकरण (Union) पसंद करता। लेकिन, ऐसा विकल्प तो स्वयं बल्लभभाई पटेल ने नहीं चुना। यह शायद संभव नहीं था कि सैकड़ों रियासतों को स्वायत्त ईकाई रख कर संघ बनाया जाए। फिर तो कुछ यूँ स्थिति होती जैसे सभी राज्यों में धारा 370 लगी हो। 

एक राज्य था सतारा, जहाँ अंग्रेजों ने मराठों का दिल रखने के लिए (और उनका भविष्य में उपयोग करने के लिए) छत्रपति शिवाजी के वंशजों को एक छोटी गद्दी थमा दी थी। यह राज्य 1818 में आंग्ल-मराठा युद्ध के बाद अंग्रेजों ने ही बनाया, और 1849 में डलहौज़ी ने इसका बही-खाता बंद कर अपने ब्रिटिश इंडिया में मिला लिया। 

इसका कारण कहलाया ‘डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स’ (हड़प नीति)
(क्रमश:)

प्रवीण झा
Praveen Jha

1857 की कहानी - एक (7) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/10/1857-7.html

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